गुजरात धर्मांतरण विरोधी कानून प्रथम दृष्टया विवाह और पसंद के अधिकार में हस्तक्षेप करता है, यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: गुजरात उच्च न्यायालय [आदेश पढ़ें]

LiveLaw News Network

21 Aug 2021 12:22 PM GMT

  • गुजरात धर्मांतरण विरोधी कानून प्रथम दृष्टया विवाह और पसंद के अधिकार में हस्तक्षेप करता है, यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: गुजरात उच्च न्यायालय [आदेश पढ़ें]

    Gujarat High Court

    गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 की कठोरता से सहमति से अंतर-धार्मिक विवाह करन वाले वयस्कों की रक्षा करते हुए, गुजरात उच्च न्यायालय ने प्रथम दृष्टया देखा कि कानून "एक व्यक्ति की पसंद के अधिकार सहित विवाह की पेचीदगियों में हस्तक्षेप करता है, जिससे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होता है।"

    चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने कहा कि कानून के प्रावधानों को आमतौर पर 'लव जिहाद' कानून के रूप में जाना जाता है, यह उन पक्षों को ‌जिन्होंने वैध अंतर धार्मिक विवाह किया है, उन्हें 'गंभीर खतरे' में डाल देता है।

    पीठ ने य‌ह आदेश 19 अगस्त को दिया था, हालांकि इसे अपलोड बाद में किया गया था। आदेश को पढ़कर यह देखा जा सकता है कि न्यायालय ने उन प्रावधानों पर चिंता व्यक्त की है, जो विवाह द्वारा हर धर्मांतरण को गैरकानूनी मानते हैं।

    कोर्ट ने प्रावधानों पर गौर करने के बाद कहा, "विवाह और परिणामी धर्मांतरण को दंडात्मक प्रावधानों को आकर्षित करने वाला एक गैरकानूनी धर्मांतरण माना जाता है।"

    इसने यह भी नोट किया कि कानून उन व्यक्तियों पर सबूत का बोझ डालता है, जिन्होंने अंतर-धार्मिक विवाह में प्रवेश किया है।

    कोर्ट ने कहा, "2003 अधिनियम की धारा 6A अंतर-धार्मिक विवाह में करने वाले पक्षों पर सबूत का बोझ डालती है, ताकि यह साबित हो सके कि विवाह किसी धोखाधड़ी, प्रलोभन या जबरदस्ती के कारण नहीं हुआ था।"

    यहां, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अधिनियम की धारा 6A सबूत के बोझ से संबंधित है, जिसके तहत, यह उस व्यक्ति पर निर्दोषता के सबूत का बोझ डालता है, जिसने धर्मांतरण किया।

    आम आदमी प्रत्येक अंतर-धार्मिक विवाह को अधिनियम द्वारा निषिद्ध मान सकता है

    कोर्ट ने कहा कि गुजरात फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट 2003 जबरदस्ती या प्रलोभन या कपटपूर्ण तरीकों से धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाने के लिए लाया गया था। 2021 का संशोधन अधिनियम के दायरे में बल या प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से विवाह के कारण धर्मांतरण लाता है।

    कोर्ट ने कहा कि एडवोकेट जनरल द्वारा दी गई व्याख्या कि अधिनियम केवल लालच, बल या धोखाधड़ी के माध्यम से अंतर-धार्मिक विवाह के बाद धर्मांतरण से संबंधित है, "आम आदमी द्वारा नहीं समझा जा सकता है"।

    कोर्ट ने शफीन जहां बनाम अशोकन (हदिया केस) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार का एक अभिन्न अंग था।

    उच्च न्यायालय ने कहा कि एक आम आदमी अंतर-धार्मिक विवाह के कारण होने वाले हर धर्मांतरण को अधिनियम द्वारा निषिद्ध मान सकता है।

    संशोधन अधिनियम इस वर्ष एक अप्रैल को उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश द्वारा लाए गए "लव जिहाद विरोधी" कानूनों की तर्ज पर अधिसूचित किया गया था।

    पीठ ने यह आदेश जमीयत उलमा-ए-हिंद और मुहाहिद नफीस द्वारा दायर एक रिट याचिका में गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 के प्रावधानों को चुनौती देते हुए पारित किया।

    इस अधिनियम को व्यक्तिगत स्वायत्तता, स्वतंत्र विकल्प, धर्म की स्वतंत्रता, और गैरकानूनी भेदभाव में आक्रमण के रूप में चुनौती दी गई थी और इसलिए संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघनकारी बताया गया था।

    आदेश का ऑपरेटिव पार्ट इस प्रकार है- प्रारंभिक प्रस्तुतियां और दलीलें दर्ज करने के बाद, हमने निम्नानुसार निर्देश दिया है। इसलिए हमारी राय है कि आगे की सुनवाई तक, धारा 3, 4, 4A से 4C, 5, 6, और 6A की कठोरता केवल इसलिए संचालित नहीं होगी क्योंकि एक धर्म के व्यक्ति द्वारा दूसरे धर्म के व्यक्ति से विवाह बल या प्रलोभन या कपटपूर्ण साधनों के बिना किया गया है और ऐसे विवाहों को गैरकानूनी धर्मांतरण के उद्देश्य के लिए नहीं कहा जा सकता है। उपरोक्त अंतरिम आदेश केवल महाधिवक्ता श्री त्रिवेदी द्वारा दिए गए तर्कों के आधार पर प्रदान किया गया है, और अंतर्धार्मिक विवाह के पक्षकारों को अनावश्यक रूप से प्रताड़ित होने से बचाने के लिए प्रदान किया गया है।

    अदालत के अंतरिम आदेश द्वारा निपटाए गए प्रावधान-

    धारा 3ए किसी भी पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन, या रक्त, विवाह या गोद लेने से संबंधित किसी भी अन्य व्यक्ति को एक कथित गैरकानूनी धर्मांतरण के संबंध में FIR दर्ज करने में सक्षम बनाती है।

    धारा 4ए में गैरकानूनी धर्मांतरण के लिए 3 से 5 साल की कैद की सजा का प्रावधान है।

    धारा 4बी गैरकानूनी धर्मांतरण द्वारा विवाह को शून्य घोषित करती है।

    धारा 4सी गैरकानूनी धर्मांतरण करने वाले संगठनों के अपराधों से संबंधित है।

    धारा 6ए आरोपी पर सबूत का बोझ डालती है।

    कोर्ट ने माना है कि ये प्रावधान वयस्कों द्वारा स्वतंत्र सहमति के आधार पर अंतर-धार्मिक विवाह पर लागू नहीं होंगे।

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें





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