ग्रेफाइट इंडिया का बेंगलुरु प्लांट पर 'पूर्ण स्वामित्व', राज्य सरकार को जमीन वापस नहीं कर सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

Avanish Pathak

13 Sep 2022 10:58 AM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें राज्य को मैसर्स ग्रेफाइट इंडिया लिमिटेड को आवंटित भूमि को वापस लेने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। कंपनी के कामकाज से होने वाले प्रदूषण के कारण इलाके के निवासियों द्वारा कई शिकायतों के बाद कंपनी को उक्त भूमि पर संचालन बंद करना पड़ा था।

    कार्यवाहक चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने अमृतेश एनपी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। उन्होंने याचिका में राज्य सरकार को ग्रेफाइट इंडिया को आवंटित भूमि को अन्य उद्यमियों देने या इलाके के फेफड़े के रूप में उपयोग करने के लिए वापस लेने का निर्देश देने की मांग की थी।

    पीठ ने कहा कि ग्रेफाइट इंडिया को वर्ष 1972 में अनुसूचित संपत्ति आवंटित की गई थी और वर्ष 1987 में कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड ने इसके पक्ष में एक पंजीकृत बिक्री विलेख निष्पादित किया था।

    कोर्ट ने कहा,

    "वर्ष 1987 में प्रतिवादी संख्या 4 के पक्ष में बोर्ड द्वारा अनुसूचित संपत्ति के संबंध में पूर्ण बिक्री विलेख के निष्पादन के बाद, प्रतिवादी संख्या 4 अनुसूची संपत्ति का पूर्ण मालिक बन गया था... इसलिए, याचिकाकर्ता की ओर से पेश विद्वान सीनियर काउंसल का तर्क की उद्योग बंद होने के बाद, अनुसूचित संपत्ति को सरकार को वापस कर दिया जाए या भूमि को सार्वजनिक नीलामी आदि द्वारा राज्य सरकार को बिक्री कर देना चाहिए, स्वीकार नहीं किया जा सकता है और यह खारिज किए जाने योग्य है।"

    कोर्ट ने जोड़ा,

    "इसलिए, लगभग 46 वर्षों से चौथा प्रतिवादी अनुसूची संपत्ति पर कार्य कर रहा है। ऐसा केवल ट्रिब्यूनल द्वारा पारित क्लोज़र ऑर्डर के कारण है कि प्रतिवादी संख्या 4 को अपने उद्योग को बंद करने के लिए बाध्य होना पड़ा था, जो उसने राज्य सरकार से आवश्यक अनुमति प्राप्त करने के बाद किया।

    इस पर भी विवाद नहीं है कि प्रतिवादी संख्या 4 ने अपने कर्मचारियों के बकाया का भुगतान कर दिया है, जो इसके बंद होने की तारीख तक उद्योग में काम कर रहे थे।"

    कोर्ट ने माना कि कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड विनियम, 1969, बोर्ड को भूमि के आवंटी के पक्ष में पट्टा-सह-बिक्री विलेख के साथ-साथ पूर्ण बिक्री विलेख निष्पादित करने की शक्ति प्रदान करता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "1966 के अधिनियम (कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम) और 1969 के विनियमों के प्रावधानों के संयुक्त पठन से, यह स्पष्ट है कि 1966 के अधिनियम के तहत अर्जित भूमि राज्य सरकार के पास निहित है और राज्य सरकार उस भूमि को बोर्ड को हस्तांतरित कर सकती है, जिसके लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया है और बोर्ड द्वारा भूमि विकसित किए जाने के बाद इसे बोर्ड द्वारा विनियमों के अनुसार निस्तार‌ित किया जाएगा, 1969 के विनियमों के तहत, बोर्ड को अपने द्वारा विकसित भूमि को आवेदक को पट्टे-सह-बिक्री, बिक्री या नीलामी बिक्री द्वारा आवंटित करने का अधिकार है।"

    कोर्ट ने यह जोड़ा,

    "इसलिए, हमें याचिकाकर्ता के तर्क में कोई योग्यता नहीं मिलती है कि अधिग्रहित भूमि/अनुसूची संपत्ति जो सरकार के पास निहित है और विकास के उद्देश्य से बोर्ड को हस्तांतरित की गई थी, उसे बोर्ड द्वारा किसी भी पार्टी को पट्टे पर या बेचा नहीं जा सकता है।"

    पीठ ने कहा,

    "परमादेश के एक रिट का दावा करने के प्रयोजन के लिए, याचिकाकर्ता को एक मौजूदा कानूनी रूप से लागू करने योग्य अधिकार, उसका उल्लंघन या आक्रमण या उल्लंघन स्थापित करना होगा। परमादेश की रिट जारी करने के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग विशुद्ध रूप से विवेकाधीन है और इसे निश्चित रूप से जारी नहीं किया जा सकता है।"

    इसमें कहा गया है,

    "जब याचिकाकर्ता किसी कानूनी रूप से लागू करने योग्य अधिकार या उसके उल्लंघन को स्थापित करने में विफल रहा है और जब वह यह इंगित करने में भी विफल रहा है कि प्रतिवादी-अधिकारी अपने वैधानिक कर्तव्यों का पालन करने में विफल या उपेक्षित हैं, तो याचिकाकर्ता द्वारा परमादेश की रिट जारी करने के लिए की गई प्रार्थना प्रदान नहीं की जा सकती।"

    केस टाइटल: अमृतेश एनी बनाम मुख्य सचिव

    केस नंबर: WP No.7039/2021

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 359

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