COVID के दौरान काला बाजारी करने वालों के अत्याचारों की ओर से सरकार अपनी आंखें बंद नहीं कर सकती: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत हिरासत में लेने के आदेश की पुष्टि की

LiveLaw News Network

23 Nov 2020 9:38 AM GMT

  • COVID के दौरान काला बाजारी करने वालों के अत्याचारों की ओर से सरकार अपनी आंखें बंद नहीं कर सकती: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत हिरासत में लेने के आदेश की पुष्टि की

    Madhya Pradesh High Court

    मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक व्यापारी के खिलाफ पारित हिरासत के आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया। व्यापारी पर कथित रूप से काला बाजारी करने का आरोप है। उस पर आरोप है कि उसने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबों को वितरित किए जाने के ‌लिए आवंटित अनाज को काला बाजारी के उद्देश्य से कथित रूप से संग्रहीत किया।

    जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस शैलेन्द्र शुक्ला की खंडपीठ दीपक अग्रवाल की पत्नी नीतू अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दीपक अग्रवाल के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 3 (2) के तहत जिला मजिस्ट्रेट, नीमच ने 24 सितंबर 2020 को आदेश पारित किया था, जिसके बाद उक्त याचिका दायर की गई ‌थी।

    मामला

    याचिकाकर्ता के पति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 420, आवश्यक अपराध अधिनियम, 1955 की धारा 3 और 7 के साथ पढ़े, के तहत दो मामले दर्ज किए गए थे।

    एफआईआर में कहा गया था कि याचिकाकर्ता ने बेईमानी से खाद्यान्न निकाले, जिन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबों को वितरित किया जाना था और इसे कालाबाजारी के लिए संग्रहीत किया था।

    जिला मजिस्ट्रेट द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 3 (2) को ध्यान में रखते हुए एक रिपोर्ट पुलिस अधीक्षक को भेजी गई, और जिला मजिस्ट्रेट ने प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत आदेश पारित करने के लिए कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद एक राय बनाई।

    24 सितंबर, 2020 को एक आदेश पारित किया गया था। हिरासत के आदेश को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 3 (4) के तहत प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग के जर‌िए राज्य सरकार ने दिनांक 03 अक्टूबर, 2020 को पारित आदेश के जर‌िए मंजूरी दी।

    इसके बाद, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 9 के तहत गठित सलाहकार बोर्ड ने 20 अक्टूबर, 2020 के आदेश द्वारा हिरासत के आदेश की पुष्टि की।

    तर्क

    याचिकाकर्ता का तर्क था कि उसके पति के खिलाफ दो मामले दर्ज किए गए हैं और उसके पति को दोनों आपराधिक मामलों में 11/09/2020 और 24/09/2020 के आदेशों के जर‌िए जमानत दी गई है।

    यह तर्क दिया गया था कि प्रतिवादियों द्वारा पारित किया गया आदेश (याचिकाकर्ता के पति को हिरासत में लेने का आदेश) बिना दिमाग का इस्तेमाल किए, दिया गया आदेश है, और केवल उसके पति के खिलाफ जमानती अपराधों के पंजीकरण के आधार पर आदेश पारित किया गया है।

    दूसरी ओर, राज्य सरकार का रुख यह था कि COVID की महामारी के दौरान, लोग भूख से मर रहे हैं, लोगों के पास खाना बनाने के लिए अनाज नहीं है। अधिकांश आबादी एक दिन में केवल एक ही वक्त के भोजन पर जीवित है। उन्हें दिन में दो बार भोजन नहीं मिल पाता है, और भारत सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार नागरिकों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत खाद्यान्न की आपूर्ति के लिए हर संभव प्रयास कर रही है और याचिकाकर्ता के पति जैसे व्यक्त‌ि बेईमानी से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत वितरण के लिए आवं‌‌टित खाद्यान्नों की काला बाजारी कर रहे हैं।

    आदेश

    न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, "याचिकाकर्ता निश्चित रूप से सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा है, क्योंकि वह सार्वज‌निक वितरण प्रणाल‌ि के तहत मुफ्त वितरण के लिए आवंटित खाद्यान्न को बेईमानी से निकालने में शामिल है, विशेष रूप से COVID-19 महामारी के मद्देनजर और इसलिए, जिला मजिस्ट्रेट के सामने पर्याप्त आधार था कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत एक आदेश पारित करें।"

    इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा, "हम COVID-19 महामारी की एक असाधारण स्थिति से निपट रहे हैं, लोग भूख से मर रहे हैं। राज्य सरकार काला बाजारियों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों की ओर से अपनी आँखें मूंद नहीं सकती हैं..."

    न्यायालय ने यह भी कहा कि मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता उस खाद्यान्न का भंडारण करके, जिसे गरीबों सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मुफ्त वितर‌ित किया जाना था, आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 और भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत अपराधों के लिए निश्चित रूप से जिम्मेदार है, और COVID-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए, धारा 3 की सामग्री पूरी होती है।

    न्यायालय ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि याचिकाकर्ता के पति के गोदाम से भारी मात्रा में खाद्यान्न बरामद किया गया था और इस संदर्भ में कोर्ट ने कहा कि

    "जैसा कि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई त्रुटि नहीं है, अधिनियम के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया गया है और एक राय बनाने के लिए पर्याप्त सामग्री थी, इस न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप का सवाल ही नहीं उठता।"

    महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने टिप्पणी की,"हम COVID-19 महामारी के दौरान एक मामले से निपट रहे हैं और जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है कि लोगों के पास नौकरी नहीं है, लोग COVID-19 महामारी के कारण पीड़ित हैं, लोगों के पास खाने के लिए भोजन नहीं है और सरकारें गरीब लोगों को खाद्य आपूर्ति जारी रखने के लिए सभी संभव प्रयास कर रही हैं और ऐसे में काला-बाजारी की जा रही है, आपूर्ति को बेईमानी से गायब किया जा रहा है, मुनाफे के ‌लिए आपूर्ति का भंडारण किया जा रहा है।"

    अंत में, अदालत ने कहा कि एक राय बनाने के लिए जिला मजिस्ट्रेट के सामने पर्याप्त सामग्री थी, याचिकाकर्ता के पति के खिलाफ दर्ज मामले COVID-19 महामारी को ध्यान में रखते हुए बहुत गंभीर प्रकृति के हैं। परिणामस्वरूप, रिट याचिका को खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटिल - नीतू अग्रवाल बनाम मध्य प्रदेश और अन्य। [याचिका याचिका क्रमांक 15330/ 2020]

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