आईपीसी की धारा 498A के तहत प्रेमिका या उपपत्नी पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

20 July 2021 8:47 AM GMT

  • आईपीसी की धारा 498A के तहत प्रेमिका या उपपत्नी पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता धारा 498A के तहत केवल पति के रक्त या विवाह से संबंधित रिश्तेदार पर ही मुकदमा चलाया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति चीकाती मानवेंद्रनाथ ने याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करते हुए कहा कि प्रेमिका या उपपत्नी, जो ब्लड या शादी से संबंधित नहीं है, आईपीसी की धारा 498-ए के उद्देश्य से पति की रिश्तेदार नहीं हैं।

    याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 498-ए और धारा 114 के तहत दर्ज मामले में दूसरा आरोपी बनाया गया था। वास्तविक शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसके पति, जिसे पहले आरोपी के रूप में पेश किया गया, ने याचिकाकर्ता के साथ अवैध संबंध बनाया। शिकायतकर्ता के अनुसार याचिकाकर्ता उसके पति की प्रेमिका है।

    याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता नागा प्रवीण वंकयालपति पेश हुए और प्राथमिकी को इस आधार पर रद्द करने की मांग की कि भारतीय दंड संहिता धारा 498A के तहत केवल पति के रक्त या विवाह से संबंधित रिश्तेदार पर ही मुकदमा चलाया जा सकता है। यह तर्क दिया गया कि एक प्रेमिका या उपपत्नी पर प्रावधान के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

    न्यायालय ने याचिकाकर्ता के उपरोक्त तर्क को सुनने के बाद कहा कि,

    "अब यह अच्छी तरह से स्थापित कानून है कि भारतीय दंड संहिता धारा 498A के तहत केवल पति के रक्त या विवाह से संबंधित रिश्तेदार पर ही मुकदमा चलाया जा सकता है। प्रेमिका या उपपत्नी, रक्त या शादी से जुड़े नहीं होने के कारण, आईपीसी की धारा 498-ए के उद्देश्य से पति के रिश्तेदार नहीं हैं। यू सुवेता बनाम राज्य [(2009) 6 एससीसी 757] के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि धारा 498-ए आईपीसी के तहत अपराध करने वाले व्यक्ति केवल पति और रिश्तेदार हैं। एक प्रेमिका रिश्तेदार नहीं होने के कारण आईपीसी की धारा 498-ए के तहत उन पर आरोप नहीं लगाया जा सकता है।"

    न्यायालय ने पूर्वोक्त कानूनी स्थिति के आलोक में कहा कि याचिकाकर्ता यह पता लगाने के लिए कि क्या आईपीसी की धारा 498 ए के तहत आपराधिक मुकदमा चलाना कानूनी रूप से टिकाऊ है और क्या उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द किया जाए या नहीं।

    न्यायालय ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए आदेश दिया कि केवल याचिकाकर्ता के संबंध में प्राथमिकी दर्ज करने के अनुसार आगे की कार्यवाही पर रोक लगाई जाए। जांच अधिकारी को याचिकाकर्ता के खिलाफ गिरफ्तारी सहित कोई कठोर कदम नहीं उठाने का भी निर्देश दिया गया। हालांकि सिंगल बेंच ने स्पष्ट किया कि अन्य आरोपियों के खिलाफ जांच जारी रहेगी।

    केस का शीर्षक: अनुमाला अरुणा दीपिका बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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