'बेटी संपत्ति नहीं है, जिसे दान कर दें': बॉम्बे हाईकोर्ट ने गैंगरेप पीड़िता के पिता की ओर से स्वयंभू बाबा को दिए 'दानपत्र' पर चिंता व्यक्त की

LiveLaw News Network

28 Jan 2022 10:23 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद बेंच) ने एक मामले में जमानत पर सुनवाई करते हुए एक 'दानपत्र' देखने के बाद कहा कि एक बच्ची संपत्ति नहीं है, जिसे दान किया जा सकता है। दानपत्र के अनुसार बलात्कार पीड़िता के पिता ने कथित रूप से लड़की को एक स्वयंभू बाबा को दान कर दिया था।

    जस्टिस विभा कंकनवाड़ी ने बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को यह पता लगाने का निर्देश दिया कि क्या मामले में शामिल बच्‍ची किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अध‌िनियम की धारा 2(14) के तहत 'देखभाल और संरक्षण की जरूरत वाले बच्चे' के रूप में घोषित करने के लिए उपयुक्त है।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    "जब लड़की ने खुद बयान दिया है कि वह नाबालिग है, तो पिता को लड़की को दान में क्यों देना चाहिए? लड़की एक संपत्ति नहीं है, जो दान में दी जा सकती है ... यह न्यायालय नाबालिग भविष्य के प्रति चिंतित है और इस प्रकार के दस्तावेज को देखकर वह अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता।"

    यह दानपत्र दो ग्रामीणों की जमानत पर सुनवाई के दरमियान सामने आया, जिन पर किशोरी ने सामूहिक दुष्कर्म का आरोप लगाया था। दोनों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 376 (डी), 341, 323 और पोक्सो अधिनियम की धारा 4, 6, 8 और 12 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    हालांकि, जब आरोप‌ियों ने दस्तावेज पेश किया तब हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी। दस्तावेजों में यह दिखाया गया था कि मामला ग्रामीणों द्वारा एक स्वयंभू संत और उसके भक्तों (लड़की और उसके पिता) को मंदिर परिसर से बाहर करने के लिए पारित किए गए प्रस्तावों का नतीजा था। ग्रामीणों ने दावा किया था कि उक्त संत का गांव के युवाओं पर बुरा प्रभाव था।

    आदेश में हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी की हिरासत की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि आरोप पत्र दायर किया गया था और जांच पूरी हो गई थी। पीठ ने दानपात्र के बारे में कहा, "प्रतिवादी संख्या दो (पिता) के माध्यम से रिकॉर्ड में आया एक तथ्य ध्यान देने योग्य और परेशान करने वाला है।"

    दस्तावेज़ को 'दानपत्र' कहा गया है, जिसे लड़की के पिता और संत के बीच 100 रुपये के स्टांप पेपर पर निष्पादित किया गया है। इसमें कहा गया है कि लड़की के पिता ने अपनी बेटी को दान में बाबा को दिया है और कन्यादान भगवान की उपस्थिति में किया गया है।

    अदालत ने तब पिता को घटना के बारे में एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। वह व्यक्ति शुरू में अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए हलफनामा दाखिल करने में विफल रहा। हालांकि, बाद में उसने एक हलफनामा दायर किया था।

    जस्टिस कंकनवाड़ी ने कहा कि हलफनामा पिता ने नहीं बल्कि बाबा ने दायर किया था।

    हलफनामे के अनुसार, बाबा ने 2018 में लड़की को गोद लिया था; हालांकि गोद लेने की प्रक्रिया चल रही थी। जबकि दस्तावेज में यह कहा गया था कि लड़की पिता के साथ रह रही थी। पिता ने बेटी को गोद लेने के लिए क्यों छोड़ा, यह स्पष्ट नहीं था।

    कोर्ट ने इस बात का पर आश्चर्य व्यक्त किया कि यदि यह गोद लेने के वास्तव‌िक प्रक्रिया है तो 'दानपत्र' की क्या आवश्यकता है। अदालत ने सीडब्ल्यूसी को यह पता लगाने का निर्देश दिया कि क्या किशोर को आश्रय की आवश्यकता है।

    पीठ ने जेजे एक्ट की धारा 29 के तहत सीडब्ल्यूसी की शक्तियों को दर्ज किया। यह नोट किया गया कि सीडब्ल्यूसी देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की देखभाल, सुरक्षा, उपचार, विकास और पुनर्वास के मामलों की सुनवाई कर सकती है, साथ ही साथ उन्हें बुनियादी जरूरतों और सुरक्षा प्रदान कर सकती है।

    जस्टिस कंकनवाड़ी ने कहा कि वह 17 वर्षीय लड़की को भविष्य में किसी भी अवैध गतिविधि में शामिल होने से बचाने के लिए ये निर्देश दे रही है।

    केस श‌ीर्षक- शंकरेश्वर@ शंभू पुत्र भाऊसाहेब ढाकने बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य

    केस नंबर: बीए 1366/2021

    सिटेशनः 2022 लाइव लॉ (बीओएम) 22

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story