'संविधान मे प्रति असंतोष पैदा करना, भारत की संप्रभुता को बाधित करने के बराबर', दिल्ली पुलिस ने शारजील इमाम के ‌खिलाफ UAPA लगाते हुए कहा

LiveLaw News Network

11 July 2020 9:36 AM GMT

  • संविधान मे प्रति असंतोष पैदा करना, भारत की संप्रभुता को बाधित करने के बराबर, दिल्ली पुलिस ने शारजील इमाम के ‌खिलाफ UAPA लगाते हुए कहा

    जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्र शारजील इमाम के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम, 1967 (UAPA) की धारा 13 लगाने के ‌लिए दिल्ली पुलिस ने उनके एक कथ‌ित भाषण का हवाला दिया है, जिसमें उन्होंने भारत के संविधान को 'फासीवादी दस्तावेज' करार देते हुए, इसे खारिज़ किए जाने का आह्वान किया था।

    पुलिस ने यह कहते हुए शारजील के खिलाफ जांच की अवधि 90 दिनों से आगे बढ़ाने की मांग की है, कि उनके खिलाफ यूएपीए की धारा 13- जो कि 'गैरकानूनी गतिविधि' से संबंधित है - के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया है, जबकि पहले राजद्रोह, सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देने आदि के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।

    इमाम की हिरासत के 88 वें दिन ट्रायल कोर्ट के समक्ष दायर आवेदन में, अतिरिक्त लोक अभियोजक (एपीपी) ने कहा, "(इमाम के) 13 दिसंबर 2019 के भाषण के अनुसार, संविधान खारिज़ किए जाने योग्य है। फासीवदी दस्तावेज़ के होने के कारण इसे केवल कोर्ट में फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाना चा‌हिए, और जहां इससे फायदा हो।"

    आवेदन में कहा गया है कि शारजील ने भाषण में कहा था, "ऐसे सभी मौकों पर जहां संविधान किसी विशेष धार्मिक समुदाय को कोई लाभ नहीं दे रहा है, इसे नजरअंदाज किया जाना और अस्वीकार करना आवश्यक है।"

    आवेदन ने संविधान के खिलाफ दिए गए बयानों को यूएपीए के तहत "गैरकानूनी गतिविधि" बताते हुए कहा गया है कि वे 'भारत की संप्रभुता को बाधित करने' के बराबर हैं।

    यूएपीए की धारा 2 (ओ) के अनुसार, कोई भी कार्रवाई, चाहे वह कृत्यों से हो या शब्दों से, जो, "भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बाधित करती है या बाधित करने का इरादा रखती है, गैरकानूनी गतिविधि है।"

    आवेदन में कहा गया है, "भारत की संप्रभुता को संविधान द्वारा सुरक्षित किया गया है और संविधान के प्रति असंतोष पैदा करने का कोई भी प्रयास भारत की संप्रभुता को बाधित करने के बराबर है।" इस‌लिए, संविधान के खिलाफ इमाम के कथित बयानों का उपयोग, उन्हें भारत की संप्रभुता के विघटन से जोड़कर, यूएपीए की धारा 13 को जोड़ने के लिए किया गया है।

    यूएपीए को जोड़कर, पुलिस ने चार्जशीट जमा करने के लिए 90 दिनों का और समय मांगा और यह सुनिश्चित किया है कि एफआईआर दर्ज होने के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट न दाखिल कर पाने की की स्थिति में इमाम को डिफ़ॉल्ट जमानत का लाभ न मिले, यह नियम मूल रूप से आईपीसी अपराधों के संबंध में है ।

    आवेदन में कहा गया है कि इमाम के 13 दिसंबर के भाषण के बाद दिल्ली में दंगों हुए, इसल‌िए दंगों की साजिश में उनकी भूमिका की जांच की आवश्यकता है।

    पुलिस ने आगे कहा है कि 16 जनवरी के उनके भाषण के बाद, शहर में कई विरोध स्थल उभरने लगे, सड़कों को अवरुद्ध कर दिया गया और सीएए/एनआरसी के विरोध में बैठने के लिए टेंट लगाए गए। फरवरी, 2020 में इन्हीं जगहों से दंगों की शुरुआत हुई। पुलिस ने जोर देकर कहा है कि "बड़ी साजिश" का खुलासा करने की जरूरत है।

    आवेदन में आगे कहा गया है कि लॉकडाउन ने जांच की गति को प्रभावित किया, और यह कि इमाम के दोस्तों, उसके व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्यों, उन लोगों से पूछताछ करने की जरूरत है, जिन्होंने पैम्फलेट छापने के लिए पैसे की व्यवस्था की थी आदि। उनके मोबाइल और लैपटॉप की फोरेंसिक जांच की रिपोर्ट, और धारा 196 सीआरपीसी और यूएपीए की 45 के तहत मंजूरी का इंतजार किया गया था।

    इमाम को 28 जनवरी को बिहार के जहानाबाद जिले से पिछले साल दिसंबर में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें जामिया मिलिया इस्लामिया के पास सीएए के खिलाफ हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन के मामले में गिरफ्तार किया गया था।

    गिरफ्तारी से 90 दिनों की वैधानिक अवधि 27 अप्रैल को समाप्त हो गई थी।

    25 अप्रैल को, रोस्टर जज, पटियाला हाउस कोर्ट्स, नई दिल्ली ने विस्तार की अनुमति दी ‌थी। शुक्रवार 10 जुलाई को, दिल्ली हाईकोर्ट ने उस आदेश के खिलाफ इमाम की चुनौती को खारिज कर दिया, और कहा थ कि जांच पूरी करने के लिए अधिक समय देने के "अच्छे और न्यायसंगत आधार" ‌हैं।

    हाईकोर्ट ने इमाम की वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका एम जॉन के तर्क को खारिज कर दिया, कि विस्तार के लिए आवेदन सुनने से पहले आरोपी को नोटिस दिया जाना चाहिए था।

    जस्टिस वी कामेश्वर राव की पीठ ने सैयद शाहिद यूसुफ बनाम एनआईए, संजय दत्त बनाम राज्य (1994) 5 एससीसी 410) आदि का हवाला देते हुए कहा था, "सुश्री जॉन की दलील कि अभियुक्त को एपीपी की अर्जी/रिपोर्ट का विरोध करने का अधिकार है, बरकरार रखने योग्य नहीं है।"

    आवेदन पत्र देने से पहले, जांच अधिकारी ने 24 अप्रैल को इमाम के वकील को व्हाट्सएप के माध्यम से एक नोटिस दिया था। लेकिन वकील ने कहा कि जब तक अदालत नोटिस जारी नहीं करती, वह मामले में उपस्थित नहीं हो सकती हैं।

    कोर्ट ने कहा था कि नोटिस अभियुक्त को नहीं दिया जाना, आवेदन के विस्तार की सुनवाई के समय न्यायालय के समक्ष उसे पेश नही किया जाना, किसी काम का नहीं है, क्योंकि अभियुक्त के पास आवेदन का विरोध करने का कोई अधिकार नहीं था।

    हाईकोर्ट ने सुश्री जॉन के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि 88 वें दिन आवेदन दाखिल करना "दुर्भावनापूर्ण" है।

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