यात्रियों के खिलाफ ट्रैफिक पुलिस की मनमानी पर गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हैरानी जताई; सभी कांस्टेबलों के लिए ट्रेनिंग कैंप आयोजित करने का निर्देश दिया

Shahadat

7 Sept 2022 11:55 AM IST

  • गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट 

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने 'छोटी गलती' के रूप में यात्री के खिलाफ यातायात कर्मियों द्वारा अधिकार और बल के कथित दुरुपयोग से जुड़ी घटना पर अपनी गंभीर नाराजगी व्यक्त की।

    चीफ जस्टिस आर.एम. छाया और जस्टिस सौमित्र सैकिया ने कहा,

    "इसमें कोई संदेह नहीं है कि अधिकारियों ने दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू कर दी है और पीड़ित की पत्नी द्वारा दर्ज एफआईआर की भी जांच कर रहे हैं। हालांकि, जैसा कि याचिका के मुख्य भाग में व्यक्त किया गया कि तुच्छ यातायात अपराध के लिए पुलिस कर्मियों को कानून अपने हाथ में लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और न ही दी जा सकती है। हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां कानून का शासन है, इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है प्रतिवादी अधिकारियों को अपने पुलिस कर्मियों को उचित ट्रेनिंग प्रदान करने और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए उन्हें नागरिक केंद्रित बनाने का प्रयास किया जाए।"

    तथ्य:

    एडवोकेट मनीष गोस्वामी द्वारा गुवाहाटी हाईकोर्ट को पत्र लिखा गया, जिसके आधार पर 17.03.2022 को गुवाहाटी शहर के पलटन बाजार में हुए पुलिस अत्याचारों के खिलाफ वर्तमान स्वतः संज्ञआन जनहित याचिका ('PIL') दर्ज की गई।

    उक्त पत्र में कहा गया कि दुर्भाग्यपूर्ण दिन गुवाहाटी के पलटन बाजार में व्यक्ति अपनी पत्नी और अपने तीन साल के बच्चे के साथ दोपहिया वाहन पर सवार था। 'मामूली' यातायात उल्लंघन के आरोप पर ड्यूटी पर तैनात पुलिस कांस्टेबल फखरुद्दीन अहमद ने उक्त दोपहिया वाहन पर सवार व्यक्ति के साथ मारपीट की। घटना में शामिल सिपाही की ऐसी हरकत कैमरे में कैद हो गई और सोशल मीडिया पर वायरल भी हो गई।

    ऐसे आरोप हैं कि बाइक सवार बीकी प्रसाद गुप्ता सड़क पर गलत साइड में वाहन चलाने के मामूली यातायात उल्लंघन पर गरमागरम बहस हुई, जिसके कारण हाथापाई हुई। इसके विपरीत रिपोर्ट से पता चलता है कि अन्य पुलिस कर्मियों ने भी इसी तरह की गतिविधियों में शामिल होने की कोशिश की।

    विवाद:

    सीनियर सरकारी वकील यू.के. नायर ने तर्क दिया कि इस जनहित याचिका को शुरू करने का उद्देश्य केवल दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करना नहीं है, बल्कि जैसा कि संचार में व्यक्त किया गया कि पुलिस कर्मियों को विशेष रूप से ट्रेंड करने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि प्रतिवादी अधिकारियों ने अपने हलफनामे में इस तरह के किसी भी कदम का संकेत नहीं दिया, इसलिए उन्होंने अदालत से यातायात कर्मियों को उचित निर्देश देने की मांग की।

    आर.के. बोरा, अतिरिक्त सीनियर सरकारी वकील, असम ने पुलिस उपायुक्त (अपराध), गुवाहाटी, असम द्वारा दायर हलफनामे पर भरोसा किया और तर्क दिया कि प्रतिवादी अधिकारियों ने शिकायत को गंभीरता से लिया और दोषी पुलिसकर्मी के खिलाफ उचित कार्रवाई की। लेकिन उन्होंने निष्पक्ष रूप से यह निवेदन किया कि राज्य सरकार मामले के विशिष्ट तथ्यों में उपयुक्त समझे जाने वाले किसी भी अन्य निर्देश का पालन करेगी।

    न्यायालय के अवलोकन और निर्देश:

    चीफ जस्टिस छाया ने बेंच के लिए बोलते हुए कहा कि हालांकि यातायात कर्मियों को यातायात को नियंत्रित करने का अधिकार है, लेकिन वे यात्रियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने के लिए निहित अधिकार का दुरुपयोग नहीं कर सकते।

    उन्होंने कहा,

    "पुलिस के पास यातायात को नियंत्रित करने का अधिकार हो सकता है लेकिन इसे नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने के उपकरण के रूप में नियंत्रित नहीं किया जा सकता। अधिकारियों द्वारा गलती करने वाले पुलिस कर्मियों के खिलाफ जो कदम उठाए जाते हैं, वे बड़े पैमाने पर नागरिकों की पीड़ा को समाप्त नहीं करते। हालांकि, यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि यातायात नियमों का कोई उल्लंघन होता है तो पुलिस कर्मी निर्दोष नागरिकों पर बल प्रयोग करने के बजाय कानून के अनुसार कार्रवाई कर सकते हैं।

    कोर्ट ने आगे कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना पुलिस कर्मियों की ट्रेनिंग की कमी के कारण हुई। यह माना गया कि ट्रैफिक जंक्शनों पर यातायात को संभालने वाले पुलिस कर्मियों को अपनी शक्ति का उपयोग करने के बजाय नागरिक केंद्रित दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है।

    तद्नुसार प्रतिवादी प्राधिकारियों को निम्नानुसार निर्देशित किया गया:

    1. शहरों में यातायात संभाल रहे सभी पुलिस कांस्टेबलों को विशेष रूप से सभी जिला स्तरों पर नागरिक केंद्रित रहने के लिए ट्रेनिंग देना;

    2. लोक सेवक के रूप में अपने पुलिस कर्मियों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में शिक्षित करना;

    3. पुलिस कर्मियों का ट्रेनिंग कैप आयोजित करके उससे संबंधित कानून का बुनियादी ज्ञान प्रदान करना। प्रतिवादी अधिकारियों को उसी के लिए असम राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (एएसएलएसए) से सहायता और मार्गदर्शन लेने का निर्देश दिया गया;

    4. भविष्य में इस तरह की किसी भी घटना से बचने के लिए राज्य सरकार को इसके लिए समिति का गठन करना चाहिए जिसमें सदस्य सचिव, असम राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (एएसएलएसए) भी शामिल हो।

    5. राज्य को इन सभी निर्देशों का ईमानदारी से पालन करने के लिए निर्देशित किया गया और सदस्य सचिव, असम राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (एएसएलएसए) को यह देखने के लिए निर्देशित किया गया कि उपरोक्त निर्देशों को उनके सही अक्षर और भावना में लागू किया गया।

    केस टाइटल: XXX बनाम असम राज्य और अन्य।

    केस नंबर: जनहित याचिका (स्तवः संज्ञान) नंबर 02/2022

    निर्णय दिनांक: 5 सितंबर, 2022

    कोरम: चीफ जस्टिस आर.एम. छाया, और जस्टिस सौमित्र सैकिया

    जजमेंट राइटर: चीफ जस्टिस आर.एम. छाया

    याचिकाकर्ता के लिए वकील: यू.के. नायर, सीनियर सरकारी वकील, गुवाहाटी हाईकोर्ट और एस.एस. हजारिका, एडवोकेट।

    प्रतिवादियों के लिए वकील: आर.के. बोरा, अतिरिक्त सीनियर सरकारी वकील, असम

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story