गुवाहाटी हाईकोर्ट ने POCSO मामलों से निपटने के लिए राज्य में जल्द-से-जल्द बाल हितैषी अदालतें शुरू करने के आदेश दिए

LiveLaw News Network

19 July 2021 2:58 AM GMT

  • गुवाहाटी हाईकोर्ट ने POCSO मामलों से निपटने के लिए राज्य में जल्द-से-जल्द बाल हितैषी अदालतें शुरू करने के आदेश दिए

    Gauhati High Court

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने शुक्रवार को महाधिवक्ता को राज्य सरकार के साथ इस मुद्दे को उठाने के लिए कहा कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) मामलों से निपटने के लिए राज्य में बाल हितैषी अदालतें (Child Friendly Court) जल्द से जल्द शुरू की जाएं। दरअसल, अरुणाचल प्रदेश राज्य में कोई बाल हितैषी अदालतें नहीं हैं।

    मुख्य न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति मनश रंजन पाठक की खंडपीठ एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता की दुर्दशा से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जब एक कलुंग द्वारा लापता रिपोर्ट दर्ज कराई गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसकी नाबालिग घरेलू सहायिका इस साल के 1 मार्च से गायब है।

    घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली पीड़ित लड़की के साथ घर के मालिक ने कथित तौर पर बलात्कार और यौन शोषण किया। उसे वर्ष 2017 में नेपाल से घरेलू सहायिका के रूप में लाया गया था।

    महाधिवक्ता ने न्यायालय को अवगत कराया कि अरुणाचल प्रदेश राज्य में कोई बाल हितैषी न्यायालय नहीं है, जो किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) मॉडल नियमों के नियम 54 के उप-नियम 18 के जनादेश के खिलाफ जाता है। साल 2016 में कहा गया है कि एक बाल हितैषी न्यायालय होगा जहां पॉक्सो से संबंधित मामलों को उठाया जाएगा।

    कोर्ट ने आदेश दिया कि,

    "अरुणाचल प्रदेश के महाधिवक्ता एन दत्ता इस मामले में पेश हुए हैं। हम महाधिवक्ता से अनुरोध करते हैं कि जितनी जल्दी हो सके इस मामले को राज्य सरकार के साथ उठाएं ताकि कम से कम एक बाल हितैषी न्यायालय का निर्माण किया जा सके और अरुणाचल प्रदेश राज्य में जल्द से जल्द कार्यात्मक बनाया जाए।"

    कोर्ट पिछली सुनवाई के दौरान ने नाबालिग बलात्कार पीड़िता की दुर्दशा से संबंधित स्वत: संज्ञान मामले में निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी थी और कहा थी कि यह पीड़ित लड़की के हित में नहीं होगा। दरअसल, निचली अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि पीड़िता की कस्टडी आरोपी की भाभी को दी जाए।

    कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि पीड़िता की मेडिकल जांच मेडिकल बोर्ड द्वारा कराई जानी चाहिए।

    अदालत ने राज्य प्राधिकरण को पुलिस सुरक्षा प्रदान करने का भी निर्देश दिया और संबंधित उपायुक्त को सीसीआई, रोइंग का दौरा करने और सीसीआई में उपलब्ध सुविधाओं के संबंध में जांच करने का भी निर्देश दिया।

    जांच रिपोर्ट से पता चला कि सीसीआई में पर्याप्त सुविधाएं हैं और पीड़िता को अच्छी तरह से सुरक्षा प्रदान की गी है। इसे देखते हुए कोर्ट ने निर्देश दिया कि पीड़िता फिलहाल उक्त सीसीआई में ही रहेगी।

    कोर्ट ने मामले में दाखिल मेडिकल रिपोर्ट और जांच रिपोर्ट को संज्ञान में लेते हुए सुनवाई 16 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी है।

    केस का शीर्षक: जनहित याचिका (सू मोटो)/5/2021

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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