'सड़कों का उचित रखरखाव मौलिक अधिकार': आवारा पशु के कारण सड़क दुर्घटना में हुई बेटे की मौत के लिए परिवार ने मांगा मुआवजा, इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर

LiveLaw News Network

19 Dec 2020 4:36 PM IST

  • Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

    सड़कों के उचित रखरखाव के मौलिक अधिकार पर जोर देते हुए, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के एक शोक संतप्त परिवार ने अपने बेटे अपार शुक्ला की मौत के लिए मुआवजे की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

    अपार शुक्ला की आवारा सांड के कारण हुई सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि मृत्यु तीन करणों से हुई है-

    - लापरवाही के कारण सड़क पर खुले हुए जानलेवा, पॉट होल,

    -अवासीय इलाकों में आवारा घूमते खतरनाक छुट्टा पशु,

    -स्ट्रीट-लाइट की बिजली-कटौती, जिससे सड़कों पर अंधेरा हो जाता है।

    मामले में दायर याचिका में परिवार ने सड़कों के उचित रखरखाव के दिशा-निर्देशों के साथ संबंधित नगर निगम से एक करोड़ रुपए का मुआवजा मांगा है। इस संदर्भ में याचिकाकर्ताओं ने विभिन्न नजीरों का हवाला देते हुए कहा है कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में मुआवजे की मांग के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सार्वजनिक कानून उपचार उपलब्ध है।

    पृष्ठभूमि

    अधिवक्ता शाश्वत आनंद, अंकुर आजाद और राजेश इनामदार के माध्यम से दायर याचिका के अनुसार, एक सितंबर, 2020 की रात को दोपहिया वाहन से घर लौटते समय, अपार सड़क के बीच से बाईं ओर एक गहरे पॉट-होल गिर पड़े, जो कि बिजल कटौती के कारण हुए अंधेरे के कारण बिल्कुल दिखाई नहीं दे रहा था।

    मृतक को पॉट-होल का अंदाजा तब लग पाया, जब वह इसके नजदीक पहुंच गया और लगभग पॉट-होल में गिरने लगा। खुद को गिरने से बचाने के लिए मृतक ने अपने दोपहिया वाहन को घुमाने की कोशिश की, मगर दुर्भाग्य से, वह एक सांड़ से टकरा गया। घना अंधेरा होने के कारण सांड़ भी दिखाई नहीं दे रहा था। अपार को अस्पताल ले जाया गया, जहां पहुंचने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

    दलीलें

    याचिकाकर्ताओं की दलील है कि उपरोक्त सभी पहलुओं का ध्यान रखना और रखरखाव करना नगर निगम का कानूनी और संवैधानिक कर्तव्य है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह नगर निगम की ओर से की गई घोर लापरवाही का मामला है, जो अपने दायित्व को पूरा करने में विफल रहा, जिसके कारण अपार की मौत हुई।

    इस संदर्भ में, याचिकाकर्ताओं ने स्वयं के प्रस्ताव में हाईकोर्ट बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्‍य में जस्टिस ओका के अवलोकन का उल्लेख किया, जहां यह ध्यान दिया गया था कि सड़कों के रखरखाव का अधिकार मौलिक अधिकारों का हिस्सा है और भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 के तहत गांरटीकृत है। यदि इस अधिकार के उल्लंघन के कारण नुकसान होता है तो नागरिकों को संबंधित प्राधिकरण से मुआवजे की मांग करने का अधिकार है। इस प्रकार के अधिकार की मौजूदगी, उन सभी प्राधिकरणों के लिए, जो "राज्य" की परिभाषा के तहत आते हैं, एक दायित्व निर्धारित करती है, जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत निर्धारित किया गया है।

    उक्त अवलोकन के साथ, जस्टिस ओका ने दिशा-निर्देश भी दिया था, "नगर निगम, जो पीआईएल की पक्षकार हैं, अपने अधिकार क्षेत्र की सभी सड़कों /मार्गों, पैदल रास्तों/ फुटपाथ को अच्छी और उचित स्थिति में रखना, उनकी जिम्मेदारी होगी। सड़कों और फुटपाथों को समतल और बराबर रखना नगर निगमों की जिम्मेदारी होगी। यह सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी होगी कि गड्ढों और खंदकों को ठीक से भरा जाए। गड्ढों को भरने का काम वैज्ञानिक रूप से चल रही परियोजना के रूप में किया जाएगा।"

    याचिकाकर्ताओं की दूसरी दलील यह थी कि नगरपालिका के अधिकारियों की ओर से देखभाल करने के कर्तव्य के मामले में लापरवाही बरती गई। याचिका में उत्तर प्रदेश नगर निगम अधिनियम 1959 के अध्याय V की धारा 114, धारा 227 (1) और अध्याय XII की धारा 310 का हवाला दिया गया है। इन विशेष प्रावधानों का हवाला देते हुए, याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि उत्तरदाता सड़कों के रखरखा, सुधार और आवारा पशुओं सहित किसी भी प्रकार के अवरोधों को खत्म करने के लिए बाध्य हैं।

    सड़कों पर आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या के मुद्दे की चर्चा करते हुए याचिका में निम्नलिखित मामलों का उल्लेख किया गया है- कॉमन कॉज (पंजीकृत सोसाइटी) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य। (1999) 6 एससीसी 667, और राम प्रताप यादव बनाम दिल्ली नगर निगम

    इन मामलों में कहा गया था कि सड़क पर आवारा पशुओं का संकट खतरनाक है और यह इंसानों की सुरक्षा को प्रभावित करता है।

    कॉमन कॉज (सुप्रा) में यह भी कहा गया था, "राज्य और उसकी एजेंसियों की निष्क्रियता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकार पर चोट करती है। संविधान के अनुच्छेद 48 के तहत, राज्य को, अन्य बातों के साथ, वनों और वन्यजीवों की रक्षा करने की आवश्यकता है। आवारा पशुओं के खतरे को रोकने के अपना कर्तव्य निभाने की उपेक्षा करके राज्य संविधान के अनुच्छेद 48 को लागू करने से बच रहा है। राज्य का यह कर्तव्य है कि वह राज्य नीति के निर्देशों को ध्यान में रखे, जो देश के शासन में मौलिक हैं.."

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    इस साल जनवरी में, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक शोक संतप्त परिवार को मुआवजा देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा था कि आवारा जानवर के कारण होने वाली हर दुर्घटना के लिए राज्या को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

    "यदि आवारा सांड गांव में घूमते हैं तो ग्रामीणों का यह कर्तव्य है कि वे ऐसी चोटों से खुद को सुरक्षित रखें, जो आने-जाने वाले लोगों को रास्ते में में आवारा पशुओं के अचानक आ जाने से और विशेष रूप से अंधेरे में हो सकती है। देखभाल और सावधानी का राज्य का कर्तव्य नहीं है। राज्य आवारा पशु की वजह से होने वाली हर घातक दुर्घटना के लिए भी जिम्मेदार नहीं है। "

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