भ्रष्टाचार के मामलों में प्रारम्भिक जांच के बाद ही प्राथमिकी दर्ज होनी चाहिए : केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

14 Jun 2021 4:54 AM GMT

  • भ्रष्टाचार के मामलों में प्रारम्भिक जांच के बाद ही प्राथमिकी दर्ज होनी चाहिए : केरल हाईकोर्ट

    Kerala High Court

    केरल हाईकोर्ट की एकल पीठ ने हाल ही में कुछ भ्रष्टाचार की शिकायतें दर्ज करने के निर्देश संबंधी रिट याचिका खारिज करते हुए व्यवस्था दी है कि भ्रष्टाचार के मामलों में प्रारम्भिक जांच करने के बाद ही प्राथमिकी दर्ज करने की आवश्यकता होती है।

    कोर्ट का यह निर्णय केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) डिपो के वाहन सुपरवाइजर जुडे जोसेफ की उस याचिका पर आया, जिसमें उन्होंने निगम के 2012 से 2015 तक के खातों के आंतरिक ऑडिट में सरकारी राजस्व की गंभीर हेराफेरी में शामिल कुछ अधिकारियों के खिलाफ उनके आरोपों के आधार पर प्राथमिकी दर्ज न किये जाने को चुनौती दी थी।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट एम. आर. सरीन ने दलील दी कि पुलिस ने इन शिकायतों के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर दिया है। इसलिए याचिका में प्रतिवादियों को शिकायतों पर विचार करने और उचित जांच करके उनका निपटारा करने के निर्देश देने की मांग की गयी थी।

    याचिकाकर्ता ने 'ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार [(2014) 4 2 एससीसी 1]' मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए अनुरोध किया था कि यदि शिकायत में संगीन अपराध किये जाने का खुलासा होता है तो पुलिस एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य है।

    हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर विचार करने के बाद न्यायमूर्ति वी जी अरुण ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों को उन मामलों के साथ सूचीबद्ध किया गया है, जिनमें प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारम्भिक जांच की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि चूंकि शिकायतें भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत दर्ज की गयी थी, इसलिए उक्त फैसला याचिकाकर्ता द्वारा दी गयी दलीलों का समर्थन नहीं करता।

    इतना ही नहीं, कोर्ट ने कहा कि जिन अधिकारियों के खिलाफ आरोप लगाये गये थे, याचिकाकर्ता द्वारा उन आरोपियों को पक्षकार न बनाया जाना भी मामले को कमजोर करता है तथा रिट याचिका पर विचार करने में बाधक के तौर पर कार्य करता है।

    मामले की सुनवाई के दौरान यह भी स्थापित हुआ कि रिट के अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि पीड़ित शिकायतकर्ता के पास अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत वैकल्पिक सांविधिक उपाय मौजूद हैं।

    इस प्रकार, याचिका खारिज कर दी गयी।

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