"पति के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करना क्रूरता": पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पति को तलाक की डिक्री दी, पत्नी को स्थायी भरणपोषण के रूप में 18 लाख रुपये दिए

Avanish Pathak

17 Oct 2022 7:06 AM GMT

  • पति के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करना क्रूरता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पति को तलाक की डिक्री दी, पत्नी को स्थायी भरणपोषण के रूप में 18 लाख रुपये दिए

    Punjab & Haryana High court

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति की ओर से दायर याचिका पर उसे तलाक ‌की डिक्री प्रदान की। उसने पत्नी को अलग रहने और उसके साथ क्रूरता करने आधार पर उसके खिलाफ याचिका दायर की थी। पत्नी ने प‌ति के खिलाफ कई झूठे और ओछे मामले दर्ज कराए थे।

    जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस निधि गुप्ता की खंडपीठ ने पत्नी को पूर्ण और अंतिम निस्तारण के रूप में अठारह लाख रुपये की राशि का स्थायी गुजारा भत्ता भी दिया। साथ ही यह नोट किया पति पहले मुकदमे के दरमियान पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 23 लाख रुपये प्रदान कर चुका है।

    कोर्ट ने आदेश में कहा,

    "भले ही पक्ष केवल नौ महीने के लिए वैवाहिक घर में रहे हों, और भले ही उनके विवाह से कोई बच्चा न हो, और भले ही इस मुकदमे के दरमियान अपीलकर्ता ने प्रतिवादी को पहले ही 23 लाख रुपये का भुगतान भरणपोषण के रूप में किया हो, हम उसे पूर्ण और अंतिम निस्तारण के रूप में केवल अठारह लाख रुपये की राशि का स्थायी गुजारा भत्ता देना उचित समझते हैं।"

    मामला

    पति/अपीलकर्ता ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत पारिवारिक न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर कर प्रतिवादी के साथ उसका विवाह क्रूरता और अलग रहने के आधार पर भंग करने की मांग की थी, जिसे अपर जिला जज, पटियाला ने मई 2017 में खारिज कर दिया था, उसी को चुनौती देते हुए वह हाईकोर्ट में चले गए।

    उन्होंने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि उन्होंने नवंबर 2012 में प्रतिवादी / पत्नी से शादी की और शादी के बाद वे केवल 9 महीने पति और पत्नी के रूप में साथ रहे और इस विवाह से कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ।

    याचिका में पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी उस पर और उसके परिवार पर हावी रहती थी और अनादर करती थी। वह बिना किसी कारण के झगड़ा करती थी। आगे यह भी आरोप लगाया गया कि वह अक्सर अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए आपत्तिजनक और अहंकारी व्यवहार करती थी।

    मामले को आगे बढ़ाने के लिए यह प्रस्तुत किया गया था कि उसकी पत्नी ने उसे सितंबर 2013 में बिना किसी उचित कारण के छोड़ दिया था और वह अपीलकर्ता के माता-पिता द्वारा दिए गए दहेज के सामान सहित अपने सभी दहेज के सामान ले गई। उसके बाद वह अपीलकर्ता के साथ नहीं रही, तदनुसार यह निवेदन किया गया था कि प्रतिवादी ने अपीलकर्ता को छोड़ दिया था।

    क्रूरता के आरोपों के बारे में पति ने बताया कि उसकी पत्नी ने अपीलकर्ता और उसके परिवार के खिलाफ असंख्य झूठी शिकायतें दर्ज कराई थीं। आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन के समक्ष भी झूठी शिकायत दर्ज कराई गई थी।

    दूसरी ओर, पत्नी ने सभी आरोपों का खंडन किया और कहा कि दरअसल उसके पति ने उसे छोड़ दिया था। उसने यह भी दावा किया कि उसका पति उसे प्रताड़ित करता था और दहेज की अवैध मांग करता था और उसे बेरहमी से पीटता था और कभी भी उसे कोई भरण-पोषण नहीं देता था।

    निष्कर्ष

    फैमिली कोर्ट की टिप्पणियों और आदेश में खामियों को देखते हुए, हाईकोर्ट ने शुरू में कहा कि पत्नी ने अपीलकर्ता और उसके परिवार के खिलाफ ‌आपत्तिजनक आरोप (जो प्रमाणित नहीं थे) लगाए थे। उसने अपने ससुर पर आरोप लगाया ‌था कि वह उसके साथ गलत व्यवहार करता था।

    कोर्ट ने कहा,

    "निश्चित रूप से इस मामले में, प्रतिवादी ने अपनी जिरह में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि उसके ससुर के खिलाफ अनुचित व्यवहार का आरोप लगाने की उसकी शिकायत पुलिस ने झूठी पाई थी, और इसलिए उसका चालान नहीं किया गया था। हालांकि निचली अदालत ने इस पहलू पर बिल्कुल भी चर्चा नहीं की।"

    इसके अलावा, अदालत ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि फैमिली कोर्ट ने मामले के कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर ध्यान नहीं दिया, जिससे पता चलता है कि पत्नी ने वास्तव में अपने पति के साथ क्रूरता की थी और स्वेच्छा से उसे छोड़ दिया था।

    कोर्ट ने कहा,

    "हमारे विचार में, वर्तमान मामले में पक्षों का आचरण इस बात का सबूत है कि पार्टियों के बीच न सुलझ पाने वाला मतभेद हैं, जिससे उनकी शादी अब एक कानूनी वस्तु बनकर रह गई है। इस पर विवाद नहीं है कि दोनों पक्ष 2013 से अलग-अलग रह रहे हैं। यहां तक ​​कि पक्षों के बीच मध्यस्थता के प्रयास भी असफल रहे हैं।"

    इन्हीं टिप्पण‌ियों के साथ अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि पूर्ण न्याय के लिए और पक्षों की पीड़ा को समाप्त करने के लिए मौजूदा अपील की अनुमति देने की आवश्यकता थी। नतीजतन, अपील की अनुमति दी गई और अतिरिक्त जिला जज, पटियाला द्वारा पारित आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया गया।

    केस टाइटल- रतनदीप सिंह आहूजा बनाम हरप्रीत कौर [FAO-M-182 of 2017]

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