'हर 6 महीने में हाईकोर्ट की जुवेनाइल जस्टिस कमेटी के समक्ष बच्चों के यौन शोषण के मामलों की स्टेटस रिपोर्ट फ़ाइल करें': गुवाहाटी हाईकोर्ट ने राज्य, बाल अधिकार निकाय से कहा

Brij Nandan

27 Dec 2022 10:58 AM GMT

  • हर 6 महीने में हाईकोर्ट की जुवेनाइल जस्टिस कमेटी के समक्ष बच्चों के यौन शोषण के मामलों की स्टेटस रिपोर्ट फ़ाइल करें: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने राज्य, बाल अधिकार निकाय से कहा

    Gauhati High Court

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बच्चों के यौन शोषण से संबंधित मामलों में उचित जांच के लिए कई निर्देश जारी किए हैं।

    चीफ जस्टिस रश्मिन मनहरभाई छाया और जस्टिस सौमित्र सैकिया की खंडपीठ ने न्यूज आर्टिकल के आधार पर 2019 में पंजीकृत जनहित याचिका (पीआईएल) में आदेश पारित किया, जिसमें एक बालिका गृह की नाबालिग बालिकाओं के यौन और शारीरिक शोषण की सूचना दी गई थी।

    पूरा मामला

    20.12.2018 को, एक अंग्रेजी दैनिक 'द असम ट्रिब्यून' ने रिपोर्ट किया था कि शिवसागर स्थित स्वप्नालय चिल्ड्रन होम की तीन लड़कियों का उक्त बाल गृह के अधीक्षक द्वारा यौन और शारीरिक शोषण किया गया था, जिसके कारण पीड़ितों में से एक ने आत्महत्या का प्रयास किया गया था।

    बाल गृह से भागे पीड़ितों को बाद में बचाया गया और उन्हें बाल कल्याण समिति, शिवसागर के समक्ष पेश किया गया और उनके बयान दर्ज किए गए। यह आरोप लगाया गया कि इस घटना के लिए दो व्यक्ति, अर्थात् बाल गृह के अधीक्षक और गृहिणी जिम्मेदार थे।

    तदनुसार, उनके खिलाफ आईपीसी के प्रासंगिक प्रावधानों के साथ-साथ पॉक्सो अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इसके बाद चार्जशीट दायर की गई और सत्र न्यायालय ने सुनवाई के बाद दोनों आरोपियों को बरी कर दिया।

    सीनियर सरकारी वकील डी. नाथ द्वारा यह भी बताया गया कि राज्य ने पहले ही बरी किए जाने के आदेश के खिलाफ अपील दायर कर दी है और यह मामला अब जनवरी, 2023 में सुनवाई के लिए आने वाला है।

    हालांकि, एक प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर वकील के. गोस्वामी ने तर्क दिया कि पर्याप्त सबूत हैं। अभियोजन पक्ष द्वारा उचित तरीके से मामले का संचालन नहीं किया गया, जिसके परिणामस्वरूप आरोपा बरी हो गया।

    उन्होंने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रासंगिक प्रावधानों पर भी भरोसा किया और इस बात पर जोर दिया कि वर्तमान जैसी घटनाएं भविष्य में न हों, यह सुनिश्चित करने के लिए उचित दिशा-निर्देश पारित किए जाने चाहिए।

    दिशा-निर्देश

    कोर्ट ने बच्चों के यौन उत्पीड़न से संबंधित मामलों में उचित जांच के लिए राज्य सरकार को निम्नलिखित निर्देश पारित किए।

    1. राज्य सरकार कानून के अनुसार अपील का पालन करेगी।

    2. बाल अधिकार हिंसा से संबंधित मामले की जांच करते समय राज्य सरकार और असम राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग बाल अधिकार अधिनियम, 2005 के संरक्षण के लिए आयोग के प्रावधानों का कड़ाई से पालन करेंगे।

    3. असम राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के माध्यम से राज्य सरकार सभी हितधारकों के लिए बाल अधिकार जांच प्रक्रिया पर तत्काल प्रशिक्षण आयोजित करेगी।

    4. बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए असम राज्य आयोग केवल उस शक्ति का प्रयोग करेगा जो अधिनियम द्वारा प्रदान की जाती है और बाल अधिकार अधिनियम, 2005 में सुरक्षा के लिए प्रदान किए गए सीमित अधिकार क्षेत्र के अनुसार कार्य करेगा और इसमें शामिल नहीं होगा या खुद को जांच में शामिल नहीं करेगा और न ही जांच की सामग्री इकट्ठा करेगा।

    5. बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार और असम राज्य आयोग अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार रिपोर्ट की गई ऐसी किसी भी घटना को आगे बढ़ाएंगे और उस बच्चे के अधिकार की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे, जिसने यौन शोषण या हिंसा का सामना किया है और विभिन्न अधिनियमों के तहत परिकल्पित उचित कानूनी कदम उठाएगा।

    6. राज्य सरकार और असम राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ऐसी किसी भी घटना और की गई जांच और उस जांच के परिणाम सहित उठाए गए कदमों की रिपोर्ट हर छह महीने में गुवाहाटी हाईकोर्ट की जुवेनाइल जस्टिस कमेटी को दाखिल करेंगे, यानी साल में दो बार।

    इस तरह अपील की सुनवाई के लिए सक्षम कोर्ट के पास छोड़कर जनहित याचिका का निपटारा कर दिया गया।

    केस टाइटल: XXXX बनाम इन री-द स्टेट ऑफ असम व अन्य।

    केस नंबर: PIL (Suo Motu) नंबर 1 ऑफ 2019

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें:




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