पति के साथ झगड़ा, गुस्सा, कोरोना महामारी, काउंसलर के इस्तीफे को वापस लेने की अनुमति देने का आधार नहीं: बॉम्बे हाई कोर्ट

LiveLaw News Network

21 Feb 2021 12:45 PM GMT

  • पति के साथ झगड़ा, गुस्सा, कोरोना महामारी, काउंसलर के इस्तीफे को वापस लेने की अनुमति देने का आधार नहीं: बॉम्बे हाई कोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक पूर्व काउंसलर की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि महामारी के दौरान किए गए सामाजिक कार्य, गुस्सा और अवसाद के आधार का उपयोग एक काउंसलर (Councillor) को महाराष्ट्र नगर निगम अधिनियम, 1959 के तहत अपना इस्तीफा वापस लेने की अनुमति देने के लिए नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस एसजे कथावाला और जस्टिस आरआई छागला की खंडपीठ ने कहा कि एमएमसी एक्ट के अध्याय II की धारा 7 के तहत एक काउंसलर की सीट उस क्षण से खाली हो जाती है, जिस क्षण आयुक्त को इस्तीफा नोटिस दिया जाता है। इसलिए, कमिश्नर को इस्तीफा वापिस लेने की अनुमति न देने के लिए दोष नहीं दिया जा सकता है क्योंकि यह सारहीन था।

    आदेश में कहा गया है कि,

    ''प्रतिवादी नंबर-दो के आयुक्त(नगर निगम भिवंडी, निजामपुर) को कानून में यह अधिकार नहीं है कि वह याचिकाकर्ता को केवल इस आधार पर अपना इस्तीफा वापस लेने की अनुमति दे क्योंकि याचिकाकर्ता अपने पति के साथ हुई लड़ाई के कारण नाराज और उदास थी। यहां तक कि उसका एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता होना या वर्तमान महामारी के दौरान जरूरतमंदों की मदद करने के लिए सबसे आगे रहना भी धारा 7 के तहत इस मामले मेें उसका बचाव नहीं कर सकते हैं क्योंकि यह धारा 'काउंसलर द्वारा पद से इस्तीफा देने' से संबंधित है।''

    पृष्ठभूमि

    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की सदस्य फरजाना इस्माइल रंगरेज (मिर्ची) ने 26 अक्टूबर, 2020 को दिए गए अपने त्याग पत्र को वापस लेने की अनुमति देने के लिए नगर निगम भिवंडी को निर्देश देने की मांग करते हुए हाईकोर्ट से संपर्क किया था। रंगरेज ने कहा था कि वह निगम के अलग-अलग वार्ड से दो बार काउंसलर का चुनाव जीत चुकी है। उसकी दूसरी बार का पांच साल का कार्यकाल 2022 में समाप्त होना था।

    उसने दावा किया कि अपने पति के साथ झगड़ा होने के बाद वह बहुत गुस्से में और उदास थी और उसने नगर आयुक्त को अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसके बाद, उनके पति और परिवार के सदस्यों ने उन्हें शांत किया और उन्हें इस्तीफा वापस लेने के लिए मना लिया। उसने फिर निगम से संपर्क किया और 3 नवंबर, 2020 को आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान अपना इस्तीफा वापस लेने की पेशकश की। इस आयोजन की निगम ने वीडियो भी बनाई थी।

    इसके बाद उसे पता चला कि निगम ने टाउन प्लानिंग डिपार्टमेंट के माध्यम से राज्य को एक पत्र जारी किया था ताकि एमएमसी एक्ट के अनुसार कार्रवाई की जा सकें, साथ ही राज्य चुनाव आयोग को भी इसी तरह का पत्र जारी किया गया था।

    इसके बाद रंगरेज ने हाईकोर्ट से संपर्क किया क्योंकि उसे डर था कि फिर से चुनाव करवाया जाएगा और उसका कार्यालय उससे ले लिया जाएगा। रंगरेज की तरफ वरिष्ठ अधिवक्ता अतुल दामले पेश हुए और दलील दी कि आयुक्त ने गलती की है क्योंकि उन्होंने सरकार व राज्य चुनाव आयोग के संज्ञान में यह बात नहीं लाई कि याचिकाकर्ता ने अपना इस्तीफा वापस लेने की पेशकश की है।

    एमएमसी एक्ट के अध्याय II की धारा 7 के अनुसार

    धारा 7. काउंसलर द्वारा पद का त्याग

    ''कोई भी काउंसलर आयुक्त को लिखित रूप में नोटिस देकर किसी भी समय अपने कार्यालय से इस्तीफा दे सकता है और इस तरह के नोटिस दिए जाने पर, उसका कार्यालय नोटिस की तारीख से खाली हो जाएगा।''

    पीठ ने कहा कि यह खंड स्पष्ट करता है कि किसी भी काउंसलर द्वारा आयुक्त को लिखित रूप में त्यागपत्र देने के बाद, नोटिस के समय से ही सीट खाली हो जाती है। इसके अलावा, एक बार दिए गए इस्तीफे को वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है।

    पीठ ने कहा कि रंगरेज ने किसी विशेष तारीख का भी उल्लेख नहीं किया है जिससे उसका इस्तीफा प्रभावी होगा।

    पीठ ने कहा कि,

    ''त्यागपत्र प्राप्त होने के तुरंत बाद उनकी सीट खाली होने के कारण, आयुक्त ने 2 दिसंबर 2020 को प्रतिवादी नंबर 1- महाराष्ट्र राज्य और/ या प्रतिवादी नंबर 3- राज्य निर्वाचन आयोग को लिखे अपने पत्र में इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया कि याचिकाकर्ता ने अपना त्यागपत्र वापस ले लिया था। इस तथ्य का उल्लेख न करना किसी भी तरह से आयुक्त की ओर से दुर्भावनापूर्ण, या प्रतिशोधी आचरण नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि उसके इस्तीफे को वापस लेने का कोई नतीजा नहीं निकला था।''

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