सतर्कता समूहों और अधिकारियों के हाथों उत्पीड़न के भय से यूपी के अंतर-धार्मिक जोड़े ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, संरक्षण का आदेश

LiveLaw News Network

19 Dec 2020 1:02 PM GMT

  • सतर्कता समूहों और अधिकारियों के हाथों उत्पीड़न के भय से यूपी के अंतर-धार्मिक जोड़े ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, संरक्षण का आदेश

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार (16 दिसंबर) को उत्तर प्रदेश के एक अंतर-धार्मिक जोड़े का बचाव किया, जिन्होंने सतर्कता समूहों, निहित स्वार्थ, और अध‌िकारियों के हाथों धमकी, भय और तीव्र उत्पीड़न की आशंका के मद्देनजर अदालत से सुरक्षा की मांग की थी।

    जस्टिस अनु मल्होत्रा ​​की खंडपीठ याचिकाकर्ता संख्या एक रेणु (बदला हुआ नाम) और याचिकाकर्ता संख्या दो रेहान (बदला हुआ नाम) की ओर से एडवोकेट वृंदा ग्रोवर, आकाश कामरा और सौतिक बनर्जी के जर‌िए दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    रेनू 21 साल की हिंदू लड़की है, जबकि रेहान 25 साल का मुस्लिम लड़का है। उनका पैतृक घर उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में है।

    याचिका

    याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि वे कोचिंग क्लासेस में एक-दूसरे से मिले और प्यार हो गया और उसके बाद, उन्होंने अपनी मर्जी से और एक दूसरे के धर्मांतरण के बिना किसी इरादे के, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत विवाह का फैसला किया।

    याचिका में कहा गया कि रेनू के माता-पिता और उसके रिश्तेदारों अंतर धार्मिक विवाह का विरोध किया और उन्होंने अपनी पसंद के एक व्यक्ति से शादी के लिए रेनू पर दबाव बनाया। याचिका में यह भी कहा गया कि रेनू को रेहान से शादी करने से रोकने के लिए रेनू के माता-पिता और रिश्तेदारों ने दोनों को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया।

    उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि रेनू के मामाओं और चाचाओं ने धमकी दी कि यदि रेनू के अपने पिता, प्रतिवादी संख्या तीन, की इच्छा के अनुसार विवाह नहीं करती है तो तो दोनों याचिकाकर्ताओं को शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाएंगे।

    याचिकाकर्ताओं ने यूपी छोड़ दिया

    इन परिस्थितियों में, 11 दिसंबर को, रेणु रेहान के साथ शाहजहांपुर के अपने पैतृक घर को छोड़कर दिल्ली चली गई।

    इसके बाद, उन्होंने एक एनजीओ धनक फॉर ह्यूमिन‌‌िटी से संपर्क किया और कानूनी सहायता, सुरक्षा और खुद के लिए शरण की मांग की, क्योंकि उनके पास कोई निवास स्थान नहीं था और उन्हें आशंका था कि उनके जीवन, अंग और स्वतंत्रता को गंभीर नुकसान हो सकता है।

    उक्त एनजीओ भारत में 'ऑनर आधारित' अपराधों और जबरन विवाह के खिलाफ काम करने के मामलों में वयस्कों की पसंद के अधिकार के प्रसार के लिए काम कर रहा है।

    याचिकाकर्ताओं द्वारा कदम उठाए गए

    याचिकाकर्ताओं ने पुलिस स्टेशन, सदर बाजार, जिला शाहजहांपुर, पुलिस अधीक्षक (शहर), शाहजहांपुर और पुलिस स्टेशन, मयूर विहार को हिंसा और जबरदस्ती का हवाला देते हुए रेणु के अपने माता-पिता के घर को छोड़ने के फैसले से अवगत कराया।

    इसके अलावा, 12.12.2020 को रेणु ने एसएचओ, पुलिस स्टेशन, मयूर विहार को एक सूचना पत्र भेजा, जिसे विधिवत प्राप्त किया था, जिसमें रेहान के साथ अपनी मर्जी से, विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करने की इच्छा व्यक्त की गई थी।

    सुरक्षा की दृष्टि से, याचिकाकर्ताओं ने एक सुर‌क्षित आवास के लिए प्रतिवादी संख्या दो (समाज कल्याण विभाग, एनसीटी दिल्ली ) से संपर्क किया। हालांकि, कथित रूप से याचिकाकर्ताओं के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया गया और 14 दिसंबर को प्रतिवादी संख्या दो उनका आवेदन ठुकरा द‌िया।

    इसलिए, भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के तत्काल और आवश्यक हस्तक्षेप की मांग की गई थी।

    प्रार्थना

    उपर्युक्त तथ्यों और परिस्थितियों के आलोक में, न्यायालय के समक्ष प्रार्थना की गई कि: -

    -प्रतिवादी संख्या एक और चार को याचिकाकर्ताओं को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जाएं और जो वर्तमान में प्रतिवादी संख्या पांच के क्षेत्राधिकार के तहत धनक ऑफ ह्यूमिन‌िटी के परिसर में रहते हैं;

    -याचिकाकर्ताओं को एक सुरक्षित घर प्रदान करने और आवास के लिए उचित व्यवस्था करने के लिए प्रतिवादी संख्या दो को दिशा-निर्देश जारी किया जाना चाहिए;

    -प्रतिवादी संख्या तीन को निर्देश दें कि वह याचिकाकर्ताओं के विवाह के फैसले को बाधित करने या हस्तक्षेप करने के लिए कोई भी कृत्य ना करें ;

    -प्रतिवादी संख्या चार को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित करें कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई प्रताड़ना की कार्रवाई न की जाए;

    -प्रतिवादी संख्या चार को यह सुनिश्चित करने के लिए कि निर्देश दिया जाए कि उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा याचिकाकर्ताओं के खिलाफ की किसी भी जांच की स्थिति में, याचिकाकर्ताओं को न्यायालय की पूर्वानुमति के बिना माननीय न्यायालय के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं लिया जाएगा। ।

    कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत‌ियां

    प्रतिवादी संख्या 1,2 4 और 5 की ओर से उप निदेशक, समाज कल्याण विभाग, डीएसडब्‍ल्यू, दिल्ली सरकार ने यह प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता सामाज कल्याण के उक्त विभाग की सहायता ले सकते हैं और फलस्वरूप, शक्ति वाहिनी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य: (2018) 7SCC 192 में माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ याचिकाकर्ताओं को सुरक्ष‌ित आवास उपलब्ध कराया जाएगा।

    यह भी बताया गया कि पुलिस स्टेशन, मयूर विहार के एसएचओ को इस मामले के बारे में पता है और मयूर विहार थाने के एसएचओ और बीट कांस्टेबल के नंबर याचिकाकर्ताओं को पहले ही दिए जा चुके हैं और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाएगी।

    कोर्ट का आदेश

    कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "चूंक‌ि प्रार्थना खंड 3, 4 और 5, कयासों के दायरे में हैं, इसलिए वर्तमान में कोई आदेश प्रदान नहीं किया जा सकता है।"

    राज्य की ओर से किए गए प्रस्तुतिकरण के मद्देनजर, न्यायालय ने कहा, राज्य यानी प्रतिवादी संख्या 1,2, 4 और 5 बाध्य रहेगी। तदनुसार, याचिका का निस्तारण किया गया।

    यूपी के अध्यादेश पर विवाद

    एक अन्य मामले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शुक्रवार (18 दिसंबर) को यूपी पुलिस द्वारा हाल ही में घोषित धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश के तहत बुक किए गए एक व्यक्ति की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।

    जस्टिस पंकज नकवी और विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने सुनवाई की अगली तारीख तक आरोपी नदीम के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं करने के लिए यूपी पुलिस को कहा है।

    कोर्ट ने कहा, "पीड़ित एक वयस्क है जो अपनी भलाई अच्छी तरह से समझती है। उसे और साथ ही याचिकाकर्ता को निजता का मौलिक अधिकार है और वयस्क होने के कारण उन्हें अपने कथित संबंधों के परिणामों के बारे में पता है।"

    उल्लेखनीय है कि मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में एक खंडपीठ ने पहले ही अध्यादेश के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं के एक बैच पर नोटिस जारी किया है और 7 जनवरी को सुनवाई की तारीख तय की है।

    28 नवंबर को उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल द्वारा उक्त अध्यादेश को लागू किए जाने के बाद पुलिस ने बरेली जिले में एक मुस्लिम व्यक्ति के खिलाफ पहला मामला दर्ज किया था।

    इसके अलावा, उत्तर प्रदेश पुलिस ने, 2 दिसंबर को, लखनऊ में एक 24 वर्षीय मुस्लिम युवक को 22 वर्षीय हिंदू महिला से शादी करने से रोक दिया था। यह समारोह हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हो रहा था और दोनों परिवारों की सहमति थी।

    पुलिस की कार्रवाई क‌थ‌ित रूप से हिंदू युवा वाहिनी के सदस्यों से प्राप्त शिकायतों पर आधारित थी।

    केस टा‌इटिलः X & Anr. v. State of GNCT Delhi & Ors. [W.P.(Crl.) No. 2118/2020 and Crl.M.A. No. 17492/2020]

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