ओछे पितृत्व परीक्षण की मांग कर पिता बच्चे को भरणपोषण देने से नहीं बच सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

Avanish Pathak

1 April 2023 3:52 PM GMT

  • ओछे पितृत्व परीक्षण की मांग कर पिता बच्चे को भरणपोषण देने से नहीं बच सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    Bombay High Court

    बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि एक बच्चे को असाधारण मामलों में पितृत्व परीक्षण से गुजरने का आदेश दिया जा सकता। और डीएनए परीक्षण की मांग करके बेटे के भरणपोषण का भुगतान करने से बचने के पिता के प्रयास को शुरुआत में ही विफल कर देना चाहिए।

    जस्टिस जीए सनप ने अपनी पत्नी से पैदा हुए बच्चे के पितृत्व परीक्षण की मांग संबंधी एक व्यक्ति की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया। आदमी ने पत्नी पर बेवफाई का आरोप नहीं लगाया था।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस मामले में पिता, जिसके पास लाभप्रद रोजगार है, अभागे बच्चे को भरणपोषण का भुगतान करने के अपने दायित्व से बचने की कोशिश कर रहा है।

    कोर्ट ने कहा,

    "भरणपोषण पाने के अधिकार से अपने बेटे के वंचित करने के लिए वह उसका डीएनए टेस्ट कराने की बात कह रहा है। मेरे विचार से, संभावित व्यापक परिणामों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय को हर संभव तरीके से शुरुआत में ही इस तरह के प्रयास को विफल करना चाहिए। ऐसे मामलों में डीएनए टेस्ट का निर्देश देने वाला आदेश आवश्यकता-आधारित होना चाहिए और एक असाधारण मामले में पारित किया जाना चाहिए।"

    अदालत ने कहा कि बच्चों को यह अधिकार है कि उनके पितृत्व पर तुच्छ सवाल न किया जाए। अदालत ने कहा कि बच्चे का परीक्षण किया जा रहा है, मां का नहीं, डीएनए परीक्षण की आवश्यकता को स्पष्ट किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "बच्चों के पास यह अधिकार है कि कानून की अदालतों में उनकी वैधता पर तुच्छ सवाल ना उठाए जाएं। डीएनए टेस्ट का आदेश इस आधार पर नहीं दिया जा सकता है कि मां, जो पितृत्व के बारे में सच्चाई को समान रूप से जानती है, को आगे आने और डीएनए टेस्ट के लिए अपनी इच्छा व्यक्त करने में एक मिनट के लिए संकोच नहीं करना चाहिए। गौरतलब है कि ऐसे में बच्चे की परीक्षा होती है मां की नहीं। इसलिए, ऐसे मामलों में एक गंभीर मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए, इस तरह के परीक्षण की पूर्ण आवश्यकता को स्पष्ट किया जाना चाहिए।"

    बच्चे ने याचिकाकर्ता का बेटा होने का दावा किया था और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरणपोषण की मांग की थी। बच्चे का जन्म 2007 में हुआ था और उसने दावा किया कि उसकी मां याचिकाकर्ता की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है। उसने दावा किया कि उसकी मां ने याचिकाकर्ता से 2005 में शादी की थी लेकिन अनबन के कारण 2009 में उसके साथ घर छोड़ दिया।

    याचिकाकर्ता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष भरण पोषण आवेदन का विरोध किया और इस बात से इनकार किया कि बच्चे की मां उसकी पत्नी है। उसने दावा किया कि उसका मां के साथ कोई यौन संबंध नहीं था। उसने मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन देकर बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की मांग की।

    बच्चे ने यह दिखाते हुए दस्तावेज प्रस्तुत किए कि उसकी मां याचिकाकर्ता की पत्नी है। हाईकोर्ट तक मुकदमेबाजी के एक दौर के बाद, जिसमें हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वह पहले भरण-पोषण आवेदन पर फैसला करे, मजिस्ट्रेट ने पक्षों के साक्ष्य दर्ज किए और बच्चे को डीएनए परीक्षण कराने का निर्देश दिया। सेशन कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया। ऐसे में याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 में यह प्रावधान है कि विवाह के भीतर पत्नी से पैदा हुए किसी भी बच्चे को पति की संतान माना जाता है, जब तक कि पति यह साबित नहीं कर देता कि उसकी पत्नी तक कोई पहुंच नहीं है।

    हाईकोर्ट ने अपर्णा अजिंक्य फिरोदिया बनाम अजिंक्य अरुण फिरोदिया में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया और कहा कि बच्चे के भविष्य पर डीएनए परीक्षण के व्यापक प्रभाव को आवेदन का फैसला करते समय नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

    हाईकोर्ट ने दोहराया कि बच्चे का हित अदालत के ध्यान में होना चाहिए। अदालत ने कहा कि बच्चा कमजोर है और उसके जन्म से पहले क्या होता है, इस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है। अदालत ने कहा कि अगर पितृत्व परीक्षण नकारात्मक पाया जाता है, तो बच्चे को जीवन भर दर्दनाक परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

    अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता का बच्चे की मां के साथ विवाह और बच्चे का जन्म कानून के अनुसार पंजीकृत है। जन्म रजिस्टर में याचिकाकर्ता का नाम बच्चे के पिता का है। आगे अपने जिरह में याचिकाकर्ता ने माना कि बच्चे की मां उसकी पत्नी है लेकिन उसने बच्चे को अपना बेटा नहीं माना।

    अदालत ने कहा कि सबूतों से, याचिकाकर्ता और बच्चे की मां के बीच विवाह प्रथम दृष्टया साबित होता है और इसलिए धारा 112 के तहत अनुमान स्थापित किया गया है।

    याचिकाकर्ता ने इस बात से इनकार नहीं किया कि उसकी पत्नी शादी से लेकर 2009 तक उसके साथ रही। उसने अपनी पत्नी पर व्यभिचार का आरोप भी नहीं लगाया। अदालत ने कहा कि यह प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त है कि डीएनए परीक्षण के लिए याचिकाकर्ता का आवेदन वास्तविक नहीं है।

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता ने डीएनए रिपोर्ट के लिए जोर देने और अनुमान का खंडन करने के लिए कोई सामग्री नहीं दिखाई है।

    केस टाइटलः X बनाम Y

    केस नंबरः आपराधिक रिट याचिका संख्या 66/2022

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