'बेहतरीन आदेश': केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के COVID-19 के इलाज के लिए निजी अस्पतालों में प्रति दिन वार्ड की कीमत 3000 रुपये के भीतर तय करने के आदेश की सराहना की

LiveLaw News Network

10 May 2021 1:06 PM GMT

  • बेहतरीन आदेश: केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के COVID-19 के इलाज के लिए निजी अस्पतालों में प्रति दिन वार्ड की कीमत 3000 रुपये के भीतर तय करने के आदेश की सराहना की

    केरल हाईकोर्ट ने निजी अस्पतालों में COVID-19 उपचार की कीमत को युक्तिसंगत बनाने के उपायों पर चर्चा करने के दौरान केरल सरकार द्वारा निजी अस्पतालों में COVID-19 के उपचार के लिए कीमत तय करने के नवीनतम आदेश की सराहना की।

    जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस डॉ. कौसर एडापागथ की पीठ ने कहा कि सरकार के आदेश ने इस संबंध में न्यायालय के बोझ को काफी हद तक कम कर दिया।

    कोर्ट को आज की सुनवाई में राज्य के अटॉर्नी जनरल ने सूचित किया कि अस्पतालों और स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं-मान्यता प्राप्त अस्पतालों (एनएबीएच अस्पतालों) और गैर-एनएबीएच अस्पताल के सामान्य वार्डों के प्रति दिन की कीमत क्रमशः 2910 और 2645 रुपये निर्धारित की जाएगी। इसमें ऑक्सीजन, चिकित्सा और ड्रग्स, निर्सिंग और बोर्डिंग चार्ज आदि शामिल होंगे और सीटी, एचआरसीटी आदि को बाहर रखा जाएगा। पीपीई किट, दवाओं और इस तरह के अन्य टेस्ट की कीमत को अधिकतम खुदरा मूल्य या किसी अन्य अधिसूचना या आदेश के रूप में नियंत्रित किया जाएगा जब प्रकाशित किया जाए।

    राज्य के अटॉर्नी जनरल ने जोर दिया कि सरकार के पिछले आदेश के अनुसार RT-PCR की कीमत 500 रुपये होगी।

    नए आदेश के अनुसार केरल क्लीनिकल प्रतिष्ठान अधिनियम और नियम के तहत जिला चिकित्सा अधिकारी और अधिकारी शिकायत निवारण अधिकारियों के रूप में काम करेंगे और जैसा कि राज्य के ऑटर्नी जनरल के अनुसार इलाज के लिए कीमतें निर्धारित की गईं हैं इन कीमतों के मामलों की जांच करना होगा।



    कोर्ट ने मौखिक रूप से नए आदेश को शानदार बताते हुए कहा कि इसे अगले दो सप्ताह तक क्रियान्वित करने की अनुमति दी जाती है और फिर न्यायालय इसका जायजा लेगा कि और क्या परिवर्तन आवश्यक है।

    कोर्ट ने जनहित याचिका का निपटारा करते हुए अपने फैसले में कहा कि,

    "हमने बहुत बारीकी से सरकारी आदेश की जांच की है। हम सरकार के आदेश से अधिक प्रसन्न हैं। हम इन कीमतों को बेहद उचित मानते हैं।"

    कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि तय की गई कीमतें वास्तविक कीमतों के अनुसार है।

    कोर्ट ने केरल क्लिनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत कोविड उपचार करने के सरकार के निर्णय की सराहना की।

    बेंच ने पिछली सुनवाई में राज्य सरकार के विचार के लिए उपायों की एक सूची प्रस्तावित की थी।

    कोर्ट ने मौखिक रूप से प्रस्तुत एक महत्वपूर्ण उपाय बताया कि क्या राज्य सरकार आंध्र प्रदेश में अपनाए जाने वाले मॉडल की तर्ज पर गैर-निजी अस्पतालों में 50% बेड ले सकता है।

    केरल सरकार ने पहले अधिसूचित किया कि गैर-निजी अस्पतालों में 50% बेड COVID-19 उपचार के लिए समर्पित होंगे। सरकार द्वारा कोविड अस्पतालों के रूप में नामित अस्पतालों (सूचिबद्ध अस्पतालों) में कोविड के लिए 50% बेड पहले से ही सरकार के नियंत्रण में हैं।

    अदालत ने गैर-अपात्र अस्पतालों को कोविड के इलाज के लिए 50% बेड अलग रखने के लिए राज्य के अटॉर्नी को पता लगाने का निर्देश दिया।

    जस्टिस रामचंद्रन ने कहा कि.

    "अस्पतालों में 50% रिक्त बेड वास्तव में अनियमित हैं और सरकार द्वारा 50% रिक्तियां अब भी निजी अस्पतालों में अनियंत्रित हैं। अस्पतालों में और 50% रिक्त बेड भी हैं, जिनके लिए कोई कीमत निर्धारित नहीं है। दूसरे शब्दों में निजी अस्पतालों में 50% रिक्तियां आज भी पूरी तरह से अनियंत्रित हैं।

    अदालत ने राज्य के अटॉर्नी को निर्देश दिया कि वह उन 50% बेड के लिए कीमत तय करने के बारे में निर्देश प्राप्त करें जो सरकार के कोविड -19 के अस्पतालों में सरकार के अंतर्गत नहीं हैं और इसके साथ ही गैर-सूचीबद्ध अस्पतालों में कोविड के बेड के लिए भी कीमत निर्धारित करें। कोर्ट ने कहा कि कीमत राज्य स्वास्थ्य एजेंसी द्वारा तय किया जा सकता है।

    कोर्ट द्वारा प्रस्तावित अन्य उपाय

    1. राज्य में COVID-19 संबंधित प्रश्नों के लिए एक सामान्य टोल फ्री नंबर स्थापित करना होगा।

    2. निर्धारित उपचार प्रोटोकॉल और रोगियों की विभिन्न श्रेणियों के प्रबंधन - रोगी प्रबंधन प्रणाली से संबंधित प्रणाली विकसित करना होगा।

    3. पैथोलॉजी की कीमतें निर्धारित करना।

    4. डॉक्टर / नर्स के परामर्श की कीमत निर्धारित करना।

    5. निजी अस्पतालों को सुनिश्चित करना कि सरकार द्वारा निर्धारित 500 रुपये की कीमत से आरटी-पीसीआर टेस्ट किए जाएं।

    अदालत ने राज्य के अटॉर्नी को यह भी निर्देश दिया कि वह अस्पतालों के बाहर से लाए गए चिकित्सा उपकरणों की कीमत की सूचना दें। दरअसल, वकील एडवोकेट हरिराज ने कीमतों में असमानता की ओर इशारा किया।

    याचिकाकर्ता के एडवोकेट सुरेशकुमार ने प्रस्तावित एक अन्य सुझाव में निजी अस्पतालों में कोविड के इलाज के कीमत की निगरानी के लिए सेक्टोरल मजिस्ट्रेट नियुक्त किया जाए। डिवीजन बेंच ने राज्य के अटॉर्नी को यह सुझाव अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

    कोर्ट को राज्य अटॉर्नी केवी सोहन ने पिछले सप्ताह सुनवाई की शुरुआत में सूचित किया कि राज्य सरकार ने बुधवार को निजी अस्पतालों के प्रबंधन के लिए बैठक बुलाई गई। इसमें निजी अस्पतालों द्वारा COVID-19 के इलाज के लिए कीमत तय करना था।

    राज्य के अटॉर्नी ने कहा कि यह निर्णय प्रत्येक अस्पताल द्वारा ली जा रही कीमत को जल्द ही एक सरकारी आदेश में अधिसूचित किया जाएगा।

    राज्य के अटॉर्नी ने एक अतिरिक्त प्रस्तुतिकरण में कहा कि सरकार जिला स्तर पर एक प्राधिकरण स्थापित करेगी और निर्धारित कीमतों के उल्लंघन पर निर्णय लेने के लिए अपीलीय प्राधिकार होगी। उन्होंने कहा कि अपीलीय प्राधिकारी के आदेश अनुच्छेद 226 के तहत न्यायिक समीक्षा के लिए उत्तरदायी होंगे।

    न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने इन उपायों की सराहना करते हुए कहा कि, " बहुत अच्छा! हम आपके आदेश की सराहना करते हैं, हम इस सोच की पूरी तरह से सराहना करते हैं!"

    कोर्ट ने गुरुवार को कोर्ट के मंगलवार के आदेश को ध्यान में रखा कि यह गंभीरता के साथ COVID-19 उपचार के मुद्दे को उठाया जाएगा। केरल उच्च न्यायालय ने राज्य के निजी अस्पतालों, प्रयोगशालाओं और डायगलॉस्टिक केंद्रों में COVID-19 उपचार की कीमत को तर्कसंगत बनाने के उपायों पर चर्चा करने के लिए एक विशेष बैठक बुलाई। कोर्ट ने यह जनहित याचिका का निपटारा करते हुए कहा। अदालत के समक्ष याचिका वकील साबू थॉमस ने अधिवक्ता सीएन श्रीकुमार, एडवोकेट मंजू पॉल और एडवोकेट सुरेशकुमार सी. के माध्यम से दायर की थी। याचिका में कहा गया कि निजी चिकित्सा केंद्रों और टेस्ट केंद्र द्वारा महामारी की स्थिति और डर का फायदा उठाते हुए अधिक कीमत वसूला जा रहा है।

    एडवोकेट थॉमस ने कहा कि राज्य सरकार COVID-19 रोगियों के इलाज के लिए निजी अस्पतालों द्वारा लिए जा रहे अधिक कीमत को नियमित करने के लिए उचित कार्रवाई या उपचारात्मक उपाय करने के लिए बाध्य है।

    बेंच ने याचिकाकर्ता के सबमिशन को देखते हुए अपनी चिंता व्यक्त की और कहा कि, "जिस तरह से निजी अस्पताल द्वारा इलाज के नाम पर मुनाफाखोरी की जा रही है इसे रोकना राज्य का कर्तव्य है।"

    पीठ ने कहा कि नियमन अधिक महत्वपूर्ण हो गया क्योंकि नागरिकों के पास इसकी कोई जानकारी नहीं है कि कीमत क्या है।

    कोर्ट ने कहा कि, "इसके साथ वैज्ञानिक और स्वीकार्य कार्यप्रणाली के आधार पर कीमत तय की जानी आवश्यक है।"

    कोर्ट ने अंत में कहा कि, "कीमत का निर्धारण निश्चित रूप से केवल राज्य द्वारा ही किया जा सकता है।"

    सरकारी आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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