जरूरतमंद अधिवक्ताओं, क्लर्कों की अंतरिम मदद न कर पाने का मामलाः मद्रास हाईकोर्ट ने बीसीआई, बीसीटीएनपी को राज्य से मिले अनुदान और सभी वित्तीय जानकार‌ियों का खुलासा करने को कहा

LiveLaw News Network

2 July 2020 10:24 AM GMT

  • जरूरतमंद अधिवक्ताओं, क्लर्कों की अंतरिम मदद न कर पाने का मामलाः मद्रास हाईकोर्ट ने बीसीआई, बीसीटीएनपी को राज्य से मिले अनुदान और सभी वित्तीय जानकार‌ियों का खुलासा करने को कहा

    Madras High Court

    मद्रास हाईकोर्ट ने बुधवार को बीसीआई और बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु एंड पुदुचेरी को निर्देश दिया कि वे 2018-2019 और 2019-2020 की अवधि के लिए अपने ऑडिटेड वित्तीय विवरण दाखिल करें।

    जस्टिस एम सत्य नारायणन और अनीता सुमंत की डिवीजन बेंच ने कहा कि वित्त संबंधी जानकारियां पूरी होनी चाहिए, जिसमें (i) आय और व्यय / लाभ और हानि (ii) बैलेंस शीट, (iii) बैंक खाते और शेष राशि (iv) सावधि जमा का विवरण शामिल होना आवश्यक है।

    न्यायालय ने आदेश दिया कि पिछले पांच वर्षों में राज्य की ओर से बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु को दिए गए अनुदान का विवरण भी 22 जुलाई तक दाखिल किया जाए।

    पीठ एक वरिष्ठ अधिवक्ता की ओर से दायर जनहित याचिका पर विचार कर रही थी, जिनमें उत्तरदाताओं, बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु और पुदुचेरी (BCTNP) और तमिलनाडु राज्य को अधिवक्ताओं और पंजीकृत अधिवक्ता लिपिकों को COVID 19 की महामारी के मद्देनजर, अंतरिम सहायता के रूप में, क्रमशः 50,000/ - रुपए, और 25,000/- रुपए का भुगतान करने का निर्देश देने की मांग की गई ‌थी। जिस आधार पर यह प्रार्थना की गई थी वह यह था कि पूर्वोक्त राशियां, किसी भी स्थिति में, बार काउंसिल द्वारा ट्रस्ट में रखे गए कल्याण कोषों में से स्वयं के लाभ के लिए निर्धारित राशि का केवल एक हिस्सा, जिसे कुछ निश्चित परिस्थितियों में अधिवक्ताओं और अधिवक्ता-लिपिकों को भुगतान किया जाना है।

    तदनुसार, न्यायालय ने 16 जून को आदेश दिया था कि राज्य बार काउंसिल, जल्द से जल्द, अपने विनियमों में, संशोधन के माध्यम से, इन ‌निराशाजनक और कठिन दिनों में जरूरतमंद अधिवक्ताओं के लिए "अंतरिम वेतन भुगतान" के प्रावधान को शामिल करे। यह देखते हुए कि नियमावली यह तय करती है कि केवल विशिष्ट परिस्थितियों और घटनाओं के होने पर ही, संबंधित व्यक्ति को भुगतान किया जाएगा, और अंतरिम भुगतान के लिए कोई प्रावधान नहीं है, पीठ ने कहा था, "हम इस प्रकार, दुर्भाग्य से, इस संबंध में याचिकाकर्ता की प्रार्थना को सीधे स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है, लेकिन उत्तरदाताओं को दिशानिर्देश जारी करते हैं कि हमारी पूर्वोक्त सिफारिश पर विचार करें और इस संबंध में सकारात्मक और आवश्यक कार्रवाई करें।"

    पीठ का मानना ​​था कि BCTNP के प्रयास अधिक आक्रामक होने चाहिए। यह प्रति अधिवक्ता 4000/- रुपए के भुगतान से संतुष्ट नहीं हो सकता। यह नोट किया गया कि किसी भी स्‍थ‌िति में, क्लर्कों को बिल्कुल भी भुगतान नहीं किया गया है।

    "हालांकि अंतरिम भुगतान के लिए अब तक कोई प्रावधान उपलब्ध नहीं है, वर्तमान परिस्थितियों में अधिनियम/प्रासंगिक नियमों के प्रावधानों के लिए तत्काल संशोधन करने की आवश्यकता है, जो BCTNP को ट्रस्ट द्वारा अधिवक्ताओं के लिए कल्याण कोष के रूप में रखे गए पैसों के कुछ हिस्से को, अंतर‌िम उपाय के रूप में, जारी करने में सक्षम बनाए।"

    बुधवार को, जब मामला अनुपालन के लिए आया, तो पीठ को सूचित किया गया कि कोर्ट के दिनांक 16 जून 2020 के आदेश के तहत जारी किए गए निर्देशों के संबंध में उत्तरदाताओं द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

    कोर्ट ने कहा, "बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के साथ-साथ बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु और पुदुचेरी (BCTN&P) अपनी भूमिका के लिए, यह विवाद नहीं करते हैं कि उन्होंने हमारे पहले के आदेश के अनुसार अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है और अपनी निष्क्रियता के लिए राष्ट्रीय और राज्य लॉकडाउन का हवाला देते हैं।"

    पीठ ने महाधिवक्ता से यह भी सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि सुनवाई की अगली तिथि से पहले दोनों अधिवक्ताओं और अधिवक्ता लिपिकों से संबंधित कल्याण निधि ट्रस्ट समितियों की वर्चुअल बैठकें आयोजित की जाएं।

    16 जून को, पीठ ने फैसला सुनाया था, "हालांकि धन प्रेषण के लिए कई स्थितियों पर विचार किया जा सकता है, जैसे वर्तमान हालात हैं, अंतरिम भुगतान को ट्रस्टियों के विवेक के निर्भर करने को परिकल्पित नहीं किया गया है और न ही प्रदान किया गया है। हालांकि, बीसीआई विनियमन 41 (3) बार काउंसिल ऑफ इंडिया एडवोकेट्स वेलफेयर फंड कमेटी द्वारा एकत्र की गई कुल राशि का 80% राज्य के लिए संबंधित राज्य बार काउंसिल द्वारा प्रायोजित कल्याण योजनाओं के संबंध में अधिवक्ताओं के कल्याण के लिए उपयोग करने की अनुमति देता है।"

    इस प्रकार, भुगतान की व्यवस्था प्रदान करने के लिए राज्य नियमों में विशिष्ट और उपयुक्त संशोधन/ प्रावधान किया जाना चाहिए, बीसीआई विनियमों ने एक ऐसी स्थिति की परिकल्पना की है, जहां राज्य अधिवक्ताओं के लिए कल्याणकारी योजना बना और प्रायोजित कर सकते हैं, इस संबंध में बीसीआई की सहमति मांगने और प्राप्त करने के बाद, एकत्र की गई राशि का उपयोग कर सकते हैं।

    न्यायालय ने उल्लेख किया था कि विनियमन 44A(6) भी स्टेट बार काउंसिल को बीसीआई के साथ मिलकर इस तरह की योजना को लागू करने का प्रावधान करता करता है और यह बीसीआई की अनिवार्य निगरानी के अधीन है।

    न्यायालय ने इस अवसर पर उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट की तारीफ की, जिसने यह देखते हुए कि उत्तर प्रदेश अधिवक्ता कल्याण कोष अधिनियम के तहत गठित ट्रस्टी कमेटी की देनदारियां, उपलब्ध कोष से अधिक हैं, यूपी एडवोकेट्स वेलफेयर एक्ट, 1974 की धारा 5 को लागू किया, और कहा कि समिति अपनी शक्तियों का प्रयोग अधिवक्ताओं की सहायता के लिए धन उधार लेने के लिए कर सकती है।

    मद्रास उच्च न्यायालय ने 16 जून को कहा था, "तमिलनाडु एडवोकेट्स वेलफेयर फंड एक्ट, 1987 में भी धारा 10 में इसी तरह का प्रावधान है।"

    रिट याच‌िका नंबरः 7419 of 2020 and WMP No.8886 of 2020

    डॉ एई चेलइया बनाम द बार काउंसिल ऑफ थमिजनाडु एंड पुदुचेरी, एंड के चेयरमैन और सदस्य।

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