कन्नाया कैथोलिक चर्च की अंतर्विवाह ना करने पर निष्कासन की प्रथा असंवैधानिक, यीशू की शिक्षाओं के खिलाफः केरला कोर्ट

LiveLaw News Network

26 May 2021 10:30 AM GMT

  • कन्नाया कैथोलिक चर्च की अंतर्विवाह ना करने पर निष्कासन की प्रथा असंवैधानिक, यीशू की शिक्षाओं के खिलाफः केरला कोर्ट

    केरल की एक सिविल कोर्ट ने एक फैसला में कहा है कि कन्नाया कैथोलिक चर्च द्वारा समुदाय से बाहर विवाह करने के कारण किसी सदस्य को निष्कासित करने की प्रथा संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (विवाह का अध‌िकार) के खिलाफ है।

    कोट्टायम के अतिरिक्त उप न्यायालय ने माना कि चर्च में बाध्यकारी अंतर्विवाह की प्रथा विवाह के अधिकार का उल्लंघन है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार का एक पहलू है। कोर्ट ने माना कि अंतर्विवाह का उल्लंघन करने के लिए कन्नाया चर्च द्वारा किसी सदस्य की सदस्यता समाप्त करना संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत ‌दिए गए अधिकार का उल्लंघन है।

    अतिरिक्त उप न्यायाधीश, सुधीश कुमार एस द्वारा दिए गए फैसले में कहा गया, "सरलतापूर्वक यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दूसरे प्रतिवादी (आर्चेपार्ची ऑफ कोट्टायम ) में अंतर्विवाह की कथित प्रथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त विवाह के अधिकार का उल्लंघन है, जिसे एक साथ सामान्य कानून अधिकार और मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी जा सकती है। अंतर्विवाह का उल्लंघन करने पर दूसरे प्रतिवादी में सदस्यता का समाप्त करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत दिए गए अधिकार का उल्लंघन है।"

    न्यायालय ने सुधारवादियों के एक समूह की ओर से दायर दीवानी के एक मुकदमे का फैसला सुनाते हुए उक्त फैसला दिया। समूह ने चर्च में बाध्यकारी अंतर्विवाह की प्रथा का विरोध किया था। (कन्नाया कैथोलिक नविकरण समिति और अन्य बनाम द मेट्रोपॉलिटन आर्कबिशप, आर्चेपार्ची ऑफ कोट्टायम)।

    कन्नाया चर्च सिरो-मालाबार कैथोलिक चर्च का एक संप्रदाय है। कन्नाया समुदाय को पैतृक विरासत पर गर्व रहता है। वे खुद को सीरियाई ईसाइयों से जोड़ते हैं और मानते हैं कि वे चौथी शताब्दी में दक्षिण मेसापोटामिया से केरल आए थे। वे अपने अद्वितीय वंश के कारण अन्य कैथोलिकों से खुद को अलग करते हैं, और सख्ती से सजातीय विवाह का पालन करते हैं, और इसका उल्लंघन करने वालों को समुदाय से निष्कासन कर देते हैं, भले ही विवाहित व्यक्ति भी किसी अन्य चर्च का कैथोलिक हो।

    वादी ने 2015 में यह कहते हुए मुकदमा दायर किया था कि दूसरे चर्च के कैथोलिक से शादी करने पर कन्नाया चर्च की सदस्यता समाप्त करने की प्रथा "अपवित्र" "असंवैधानिक", "अनैतिक" और "अमानवीय" है। वादी ने घोषणा की मांग की थी कि अंतर्विवाह की प्रथा असंवैधानिक और अवैध है, और साथ ही अंतर्विवाह का उल्लंघन करने कारण निष्कासित सदस्यों को वापस लाने का निर्देशा दिया जाए और कोट्टायम डायोस‌िस (जो कि कन्नया कैथोलिकों का डायोसिस है) को इस प्रथा का पालन करने से रोकने के लिए निर्देश दिए जाएं।

    वादी द्वारा मांगी गई सभी राहतों के पक्ष में आदेश देते हुए सिविल कोर्ट ने कहा कि "वादी ने स्थापित किया है कि कोट्टायम डायोसिस" बाध्यकारी अंतर्विवाह का अनुपालन कर रहा है, जो बाइबिल, कैनन कानूनों, विशेष कानूनों, आस्था के अनुच्छेद, भारतीय संविधान और अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों का उल्लंघन है।

    विवाह का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न अंग

    केएस पुट्टस्वामी मामले (जो निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानता है), हादिया मामले (जिसमें शादी के अधिकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा माना गया है) की की मिसालों का जिक्र करते हुए, कोर्ट ने माना कि विवाह का अधिकार संविधान के तहत दिए गए जीवन के अध‌िकार के तहत निर्धारित व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न अंग है। और कोट्टायम डायोसिस एक प्रथा की आड़ में इसे कम नहीं कर सकता है।

    कोर्ट ने कहा कि विवाह का अधिकार भी नागरिक अधिकार है और इसकी रक्षा के लिए एक मुकदमा सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 9 के अनुसार सुनवाई योग्य हो सकता है।

    कन्नया कैथोलिक एक अलग धार्मिक संप्रदाय नहीं है

    कोर्ट ने फैसला में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत संरक्षण का दावा करने के लिए कन्नाया कैथोलिक एक अलग धार्मिक संप्रदाय नहीं है।

    "इसमें कोई संदेह नहीं है कि कन्नाया कैथोलिक समुदाय का एक सामान्य संगठन और एक विशिष्ट नाम है। लेकिन इसमें बहुत महत्वपूर्ण घटक का अभाव है - विश्वासों या सिद्धांतों की प्रणाली जिसे वे अपने आध्यात्मिक कल्याण के लिए अनुकूल मानते हैं, अर्थात सामान्य विश्वास। कन्नाया कैथोलिक सीरो मालाबार चर्च या कैथोलिक चर्च के किसी अन्य सदस्य की तरह आध्यात्मिक कल्याण के लिए यीशु मसीह और उनके संदेशों में विश्वास करते हैं। "

    अंतर्विवाह का बाइबल में कोई आधार नहीं है; "धार्मिक मामला" नहीं

    कोर्ट ने यह भी कहा कि अंतर्विवाह की प्रथा की जड़ें ईसा मसीह की शिक्षाओं और पवित्र बाइबल के धर्मग्रंथों में नहीं हैं।

    "ईश्वरीय कानून ने ईसाइयों के धार्मिक कल्याण के लिए अनुकूल एक आवश्यक अभ्यास के रूप में अंतर्विवाह की प्रथा को मान्यता नहीं दी। यीशु मसीह ने अपने अनुयायियों को बिना शर्त प्रेम के रूप में भगवान को स्वीकार करने के लिए अपने दिमाग में बिना किसी भेदभाव के रहने की सलाह दी। इसलिए भेदभाव के माध्यम से अंतर्विवाह को दूसरे प्रतिवादी या कन्नाया कैथोलिक के धार्मिक संबंध के रूप में नहीं माना जा सकता है।

    ईसाई धर्म को अपनाने के बाद कन्नया समुदाय कैथोलिक चर्च द्वारा स्वीकार किए गए ईश्वरीय कानून से पीछे नहीं हट सकता है। इसके अलावा कन्नया समुदाय के पास यीशु मसीह की तुलना में कोई आध्यात्मिक शिक्षक नहीं है।"

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