लिव इन रिलेशनशिप के दौरान पीड़िता द्वारा वहन किए गए खर्च को आपराधिक अपराध नहीं माना जाएगा: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

18 Sep 2021 7:29 AM GMT

  • लिव इन रिलेशनशिप के दौरान पीड़िता द्वारा वहन किए गए खर्च को आपराधिक अपराध नहीं माना जाएगा: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि लिव-इन रिलेशनशिप में जहां दोनों साथी एक साथ रह रहे हैं, यह एक आपराधिक अपराध नहीं होगा कि यदि खर्च अभियोक्ता या दोनों भागीदारों द्वारा वहन किया जाता है।

    न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने अभियोक्ता द्वारा दायर बलात्कार के एक मामले में एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए आरोप लगाया कि उसे दबाव में 1,25,000 रूपये खर्च करने के लिए कहा गया था।

    कोर्ट ने कहा,

    "एक लिव-इन रिलेशनशिप में जहां दोनों साथी एक साथ रह रहे हैं, ऐसा नहीं है कि केवल एक साथी को खर्च वहन करना पड़ता है। फिर यदि खर्च अभियोजन पक्ष द्वारा वहन किया जाता है या दोनों खर्च वहन करते हैं, तो यह एक आपराधिक अपराध नहीं होगा।"

    मामले के तथ्य यह है कि सितंबर 2017 में पीड़िता नौकरी की तलाश में दिल्ली आई थी, जिस दौरान उसकी मुलाकात याचिकाकर्ता से हुई। आरोप है कि याचिकाकर्ता ने पीड़िता पर उसके माता-पिता को शादी के लिए मनाने का दबाव बनाया। बाद में, उसके माता-पिता अगस्त 2019 में शादी के लिए राजी हो गए।

    उसके द्वारा यह भी आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने उसकी इच्छा के विपरीत शारीरिक संबंध स्थापित किए और दावा किया कि कोई समस्या नहीं थी, क्योंकि माता-पिता उनकी शादी के लिए सहमत हो गए थे। उसने दावा किया कि जब वह किसी चीज से इंकार करती थी तो वह उसके साथ मारपीट करता था।

    इसके अलावा, उसका मामला यह था कि वह सभी खर्च वहन करती थी जो लगभग ₹1,25,000/- था। बाद में, पक्षकारों के बीच समझौते के एवज में राशि वापस कर दी गई। इसके बाद रेप के आरोप में तत्काल प्राथमिकी दर्ज की गई।

    कोर्ट ने कहा,

    "अभियोक्ता के बयानों से ही यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता और अभियोजक दोनों लिव-इन रिलेशनशिप में थे और दोनों ने अपने परिवारों को शादी के लिए राजी किया और शुरू में यह अभियोजक का परिवार था जो सहमत नहीं था। हालांकि बाद में उसके पिता शादी के लिए सहमत हो गए। इसके बाद शादी क्यों नहीं की गई, इसका कोई कारण नहीं बताया गया है।"

    अभियोजन पक्ष के आरोपों पर कि याचिकाकर्ता द्वारा उसके साथ मारपीट की गई, अदालत ने कहा कि न तो कोई शिकायत थी और न ही एमएलसी जिससे पता चलता है कि याचिकाकर्ता उसके साथ मारपीट करता था।

    अदालत ने कहा,

    "एफआईआर में लगाए गए आरोपों की प्रकृति को देखते हुए यह अदालत याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देना उचित समझती है।"

    तद्नुसार, याचिकाकर्ता को इतनी ही राशि की एक जमानत राशि के साथ 25,000 रुपये के जमानत बांड प्रस्तुत करने के अधीन अग्रिम जमानत दी गई।

    केस शीर्षक: राहुल कुशवाहा बनाम दिल्ली के जीएनसीटी राज्य

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