"विकलांग व्यक्ति के साक्ष्य तुच्छ नहीं, कानून में ऐसा कोई भेदभाव नहीं": मद्रास हाईकोर्ट ने सजा के फैसले को बरकरार रखा
LiveLaw News Network
12 July 2021 5:15 PM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने बुधवार को एक निचली अदालत के उस फैसले की पुष्टि की है,जिसके तहत एक नेत्रहीन महिला के अपहरण और यौन उत्पीड़न के मामले में एक ऑटो-रिक्शा चालक को दोषी करार देने के बाद सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।
पीड़िता की गवाही की प्रोबेटिव वैल्यू (प्रमाणन-मूल्य)पर विचार करते हुए, न्यायमूर्ति आरएमटी टीका रमन ने कहा कि,
''कानून सक्षम व्यक्ति के साक्ष्य और विकलांग व्यक्ति(अलग तरह से सक्षम) के साक्ष्य के बीच भेदभाव नहीं करता है। केवल विकलांगता के तथ्य के कारण, उसके साक्ष्य को सक्षम व्यक्ति के साक्ष्य की प्रकृति की तुलना में हीन नहीं माना जा सकता है। ऐसा करने से समानता के अधिकार के संविधान सिद्धांत की उपेक्षा हो सकती है।''
जज ने आगे कहा,
''पीडब्ल्यू-1 के पास अंधा होने के कारण दृष्टि की कमी है, लेकिन उसके बयान में दृष्टि थी और इसलिए, यह न्यायालय मानता है कि पीडब्ल्यू-1 की गवाही साक्ष्य में स्वीकार्य है।''
पीड़िता एक दृष्टिबाधित महिला है, जो तमिलनाडु के विल्लीवाक्कम में एक संस्थान में अंग्रेजी संगीत सीखने आई थी। 21 मार्च, 2020 को याचिकाकर्ता पीड़िता को संबंधित संगीत संस्थान में ले जाने के बजाय उसे सुनसान जगह पर ले गया और वहां उसका यौन शोषण करना शुरू कर दिया। जब पीड़िता ने शोर मचाना शुरू किया तो याचिकाकर्ता ने उसे यह कहते हुए धमकी दी कि अगर उसने सहयोग नहीं किया तो वह उसे जान से मार देगा।
तदनुसार, याचिकाकर्ता-अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 366 (अपहरण) के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था और महिला न्यायालय, चेन्नई ने उसे सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। इसके अलावा, निचली अदालत ने याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 354 (एक महिला का शील भंग करने का इरादा) और धारा 506 (ii) (आपराधिक धमकी) के तहत भी दोषी ठहराया था और उसे 4 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई था। उपरोक्त कारावास की सजाएं साथ-साथ चलने का आदेश दिया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि कानून के मुताबिक आरोपी की पहचान साबित नहीं हुई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मौजूदा मामले में पीड़िता एक दृष्टिबाधित महिला है और इस तरह उसके साक्ष्य को 'चश्मदीद गवाह' की गवाही नहीं कहा जा सकता है। इस प्रकार पीड़िता 'सुनी हुई बात वाली गवाह' है और इस कारण कानून में उसकी गवाही अस्वीकार्य है।
इस तरह की दलील को खारिज करते हुए, अदालत ने कहा कि आरोपी द्वारा पीड़िता के शरीर पर किए गए यौन हमले को केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि वह एक नेत्रहीन व्यक्ति है।
कोर्ट ने कहा कि,
''इस मामले में, पीडब्ल्यू-1 के अंधेपन का मतलब था कि उसका दुनिया के साथ कोई दृश्य संपर्क नहीं था। इसलिए अपने आसपास के लोगों की पहचान करने का उसका प्राथमिक तरीका, उनकी आवाज को पहचानना है और इसलिए पीडब्ल्यू-1 की गवाही उस पीड़िता के समान वजन की हकदार है, जो अपीलकर्ता को देखकर पहचान करने में सक्षम होती।''
यह अवलोकन सुप्रीम कोर्ट के पाटन जमाल वली बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के फैसले के अनुरूप है, जहां एक डिवीजन बेंच ने आपराधिक न्याय प्रणाली को ज्यादा से ज्यादा विकलांग-अनुकूल बनाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे। यह कहा गया था कि एक विकलांग पीड़िता की गवाही या उस मामले के एक विकलांग गवाह की गवाही को सिर्फ इसलिए कमजोर या हीन नहीं माना जा सकता है कि क्योंकि ऐसा व्यक्ति अपने सक्षम समकक्षों की तुलना में दुनिया के साथ एक अलग तरीके से बातचीत करता है।
तत्काल मामले में, हाईकोर्ट ने पाया कि अन्य चश्मदीद गवाहों ने भी आरोपी को अपराध स्थल पर पीड़िता के साथ देखा था। तदनुसार, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि,
''पीडब्लू-3, पीडब्लू-5, पीडब्लू-7 और पीडब्लू-8 वो स्वतंत्र गवाह हैं, जो सड़क के पास रहने वाले पड़ोसी हैं, जिनकी आरोपी के साथ कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है या वह उससे पूर्व परिचित नहीं है। इसलिए उनके पास आरोपी को इस मामले में झूठा फंसाने के लिए कोई वजह नहीं थी।''
चूंकि याचिकाकर्ता दोषसिद्धि की तारीख से न्यायिक हिरासत में था,इसलिए याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से अनुरोध किया कि आरोपी द्वारा जेल में बिताए गए दिनों की अवधि को ध्यान में रखते हुए उसकी सजा को कम कर दिया जाए।
कोर्ट ने इस तरह की याचिका को खारिज करते हुए कहा,
''पीड़ित लड़की के शरीर पर आरोपी द्वारा किए गए यौन हमले को ध्यान में रखते हुए, इस न्यायालय ने पाया है कि अपीलकर्ता ऑटो मैन/ आरोपी एक ''हृदयहीन व्यक्ति'' प्रतीत होता है, जिसने दृष्टिबाधित व्यक्ति की लाचारी का फायदा उठाया और उसके शरीर पर यौन हमला करने के अपराध को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। न्यायालय ने पीडब्ल्यू-1 की स्थिति और आरोपी के अपराध पर विचार करते हुए यह भी पाया है कि अभियुक्त सजा में किसी भी तरह की रियायत का हकदार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं पर यौन हमले बढ़ रहे हैं और पीड़ित लड़की एक नेत्रहीन व्यक्ति है, इसलिए सिद्ध आरोपों के लिए सत्र न्यायाधीश द्वारा दी गई सजा न्यायसंगत और उचित प्रतीत होती है और इसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता है।''
तदनुसार, न्यायालय ने महिला कोर्ट द्वारा आरोपी को दोषी करार देने और उसे सजा देने के फैसले की पुष्टि की। वहीं तमिलनाडु राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव को निर्देश दिया गया है कि वह तमिलनाडु पीड़ित मुआवजा योजना के अनुसार पीड़िता को 1,00,000 रुपये का मुआवजा प्रदान करे।
केस का शीर्षकः अंबू सेलवन बनाम राज्य
आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें