भले ही पीड़िता का आरोपी के साथ दोस्ताना व्यवहार था, लेकिन इससे सहमति के बिना यौन संबंध स्थापित करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता : जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

6 Jan 2021 3:30 PM GMT

  • भले ही पीड़िता का आरोपी के साथ दोस्ताना व्यवहार था, लेकिन इससे सहमति के बिना यौन संबंध स्थापित करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता : जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    J&K&L High Court

    भले ही शिकायतकर्ता का याचिकाकर्ता के साथ लंबे समय से दोस्ताना व्यवहार था, फिर भी याचिकाकर्ता-अभियुक्त को उसकी सहमति के बिना उसके साथ यौन संबंध बनाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता है,यह टिप्पणी करते जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने हाल ही में एक याचिकाकर्ता को आईपीसी की धारा 376 के तहत नियमित जमानत का लाभ देने से इनकार कर दिया।

    महत्वपूर्ण रूप से, न्यायमूर्ति संजय धर की खंडपीठ ने यह भी कहा कि बलात्कार के अपराध में जमानत देने से संबंधित मामलों पर अलग तरीके से विचार करने आवश्यकता होती है, क्योंकि ऐसे मामलों में उदार दृष्टिकोण अपनाकर जमानत पर अभियुक्त को रिहा करना समाज के हितों के खिलाफ होगा।

    मामले के तथ्य

    शिकायतकर्ता-पीड़िता ने न्यायिक मजिस्ट्रेट, हीरानगर के समक्ष एक शिकायत दर्ज कराई थी,जिसमें आरोप लगाया गया था कि जब वह 10 वीं कक्षा में पढ़ रही थी, तब उसकी दोस्ती याचिकाकर्ता-अभियुक्त के साथ हुई थी। उसके बाद, उसने उसकी मर्जी के खिलाफ उसके साथ अवैध संबंध विकसित किए और यह भी वादा किया कि वह उपयुक्त समय आने पर उससे शादी करेगा।

    शिकायत में आगे कहा गया था कि याचिकाकर्ता-अभियुक्त का शिकायतकर्ता के साथ यौन संबंध था और उसे यह भी धमकी दी गई थी कि अगर उसने इस संबंध में बारे में किसी को कुछ भी बताया तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

    उक्त शिकायत को थाना हीरानगर के प्रभारी के पास भेज दिया गया था, तदनुसार, आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध के लिए एफआईआर नंबर 04/2020 दर्ज की गई थी।

    मामले की जांच के बाद, पुलिस ने पाया कि आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध बनता है और इस प्रकार सक्षम न्यायालय के समक्ष चालान पेश किया गया था। याचिकाकर्ता ने जमानत देने के लिए ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन 12 अक्टूबर 2020 को पारित किए गए आदेश के तहत उसे जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।

    मामले में दिए गए तर्क

    याचिकाकर्ता ने इस आधार पर जमानत मांगी थी कि पीड़िता ने अपनी मर्जी से व स्वतंत्र सहमति से याचिकाकर्ता-अभियुक्त के साथ संबंध बनाए थे। इस तरह, यह नहीं कहा जा सकता है कि किसी गलत धारणा के कारण याचिकाकर्ता और पीड़िता के बीच यौन संबंध बने थे।

    जवाब में, राज्य ने तर्क दिया कि मामले की जांच के दौरान, यह पाया गया है कि याचिकाकर्ता और पीड़िता के बीच गहरी दोस्ती थी, जो लगभग 2 वर्षों तक चली थी और याचिकाकर्ता ने उससे शादी करने का वादा किया था।

    आगे यह भी कहा गया कि 22 अक्टूबर 2019 को याचिकाकर्ता अपनी कार में पीड़िता को बैठाकर ले गया था और उसके साथ बलात्कार किया था।

    इस प्रकार,अभियोजन पक्ष के अनुसार, आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध का मामला याचिकाकर्ता-अभियुक्त के खिलाफ बनाया गया और उसे 15 जनवरी 2020 को गिरफ्तार किया गया था। यह भी तर्क दिया गया था कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप प्रकृति में गंभीर हैं,इसलिए वह जमानत का हकदार नहीं है।

    कोर्ट का आदेश

    मामले के आरोपों, चालान और तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता के खिलाफ पीड़िता द्वारा लगाए गए आरोप वास्तविक हैं क्योंकि पीड़िता ने न केवल उसकी शिकायत में बल्कि सीआरपीसी की धारा 164-ए के तहत दर्ज कराए गए बयान में भी बार-बार कहा है कि याचिकाकर्ता ने उसकी सहमति के बिना उसके साथ संभोग किया था।

    महत्वपूर्ण रूप से, याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया था कि पीड़िता याचिकाकर्ता से तब से प्यार करती है,जब वह 10 वीं कक्षा में पढ़ रही थी और इसी प्यार व जुनून के कारण उसने याचिकाकर्ता के साथ यौन संबंध विकसित किए थे, इस तर्क का जवाब देते हुए कोर्ट ने कहा कि,

    ''पीड़िता एफआईआर दर्ज करने से कुछ महीने पहले ही बालिग हुई थी ... याचिकाकर्ता के साथ पीड़िता के पिछले यौन संबंध, यदि कोई है तो, बलात्कार का अपराध बनेगा, भले ही उसने सहमति दी हो क्योंकि उस समय वह नाबालिग थी। इस प्रकार, तथ्य यह है कि पीड़िता पर्याप्त रूप से परिपक्व नहीं हुई थी और निश्चित रूप से इस तथ्य का याचिकाकर्ता को जमानत देने से संबंधित मामले पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।''

    इस आशंका को ध्यान में रखते हुए कि यदि याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा किया गया तो वह पीड़िता को धमकी दे सकता है, अदालत उसे तत्काल चरण में जमानत देने से इनकार करती है क्योंकि ''अभी पीड़िता का बयान दर्ज होना बाकी है और ऐसे में न्याय का मार्ग का विफल हो सकता है।''

    केस का शीर्षक -अमन सगोत्रा बनाम यूपी आॅफ जम्मू एंड कश्मीर,[Bail App No. 211/2020 CrlM No. 1277 & 1699 of 2020]

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