"मैं स्वयं और अपनी संपत्ति का बचाव कर रहा था", पुलिस हमले के शिकार एटा के अधिवक्ता ने इलाहाबाद एचसी से कहा, जमानत मिली
Sparsh Upadhyay
25 March 2021 3:47 PM IST
"Was Defending Myself As Well As My Property", Etah Advocate Who Was Assaulted By UP Police Submits Before Allahabad HC
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार (24 मार्च) को एटा के उस अधिवक्ता/विशेष अभियोजक राजेंद्र शर्मा को जमानत दे दी जिन्हे दिसंबर 2020 में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा हमले का सामना करना पड़ा था।
कथित तौर पर, इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में उनके रिश्तेदारों को भी परेशान किया गया और अपमानित किया गया था।
यहाँ यह ध्यान दिया जाए कि पुलिस ने उनके एक घर का दरवाजा तोड़ा, और आवेदक-शर्मा (जो कि एडवोकेट की पोशाक में थे) को घसीट कर ले गए और उनके साथ बेरहमी से मारपीट की। इस घटना का वीडियो वायरल हो गया था।
न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की पीठ एटा के अधिवक्ता राजेंद्र शर्मा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने कहा कि वह पूरी तरह निर्दोष हैं और उन्हें धारा -144, 149, 149, 289, 336, 504, 506, 506, 353, 307 आई.पी.सी. और आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 7 के तहत दर्ज वर्तमान मामले में झूठे तौर पर फंसाया गया है।
सामने रखे गए तर्क
यह प्रस्तुत किया गया था कि उन्हें जून, 2002 में जिला एटा में राज्य सरकार द्वारा एडीजीसी के पद पर नियुक्त किया गया था और 2020 तक उक्त पद पर उन्होंने काम किया और फिर, उन्हें राज्य सरकार द्वारा 04.09.2020 को विशेष अभियोजक नियुक्त किया गया और अब तक वह उक्त पोस्ट पर जारी हैं।
यह आगे प्रस्तुत किया गया था कि आवेदक एक घर का मालिक है और उस दुर्भाग्यपूर्ण तारीख पर, उसे असामाजिक तत्वों ने घेर लिया गया था। वास्तव में, यह तर्क दिया गया था कि भीड़ आवेदक के घर पर अवैध कब्जा करने की कोशिश कर रही थी, इसलिए, अपनी संपत्ति के साथ-साथ खुद की रक्षा करने के लिए, उसने अपने लाइसेंसी पिस्तौल का इस्तेमाल किया जिससे उसके बेटे को भी चोट लगी।
इसके बाद यह प्रस्तुत किया गया था कि इस मामले से पहले, आवेदक का तीन मामलों का आपराधिक इतिहास रहा था, जिसमें से वह दो मामलों में बरी हो गया था और एक मामले में कार्यवाही समाप्त कर दी गई थी।
अंत में, उनके वकील द्वारा यह दावा किया गया कि वह 21 दिसंबर 2020 से जेल में हैं और यदि उन्हें जमानत दी गई थी, तो वे जमानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेंगे।
दूसरी तरफ, पीड़ित पक्ष के लिए अतिरिक्त महाधिवक्ता और वरिष्ठ वकील ने जमानत के लिए प्रार्थना का विरोध किया, लेकिन इस तथ्य पर विवाद नहीं कर सके कि आवेदक को पहले राज्य सरकार द्वारा ADGC के रूप में नियुक्त किया गया था और आज भी वह विशेष अभियोजक के रूप में काम कर रहा है।
कोर्ट का आदेश
दाताराम सिंह बनाम मामले में शीर्ष अदालत के आदेश के साथ-साथ रिकॉर्ड पर सामग्री को ध्यान में रखते हुए अदालत ने अधिवक्ता राजेन्द्र शर्मा को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।
केस की पृष्ठभूमि
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस घटना का संज्ञान लिया था और उसके बाद अदालत ने इस घटना की पूरी रिपोर्ट मांगी थी, जिसमें एटा के एक प्रैक्टिसिंग एडवोकेट राजेंद्र शर्मा को पुलिस ने पीटा था और उनके रिश्तेदारों को भी परेशान किया था और अपमानित किया था ।
गौरतलब है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने पुलिस हमले की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया था और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और भारत के मुख्य न्यायाधीश से मामले में स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह किया था। SCBA ने भी पुलिस हमले की निंदा की थी।
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