महिला की गरिमा का सार उसकी लैंगिकता, केवल गंदी या अभद्र भाषा का उपयोग को उसकी गरिमा का हनन नहीं कहा जा सकता: दिल्ली कोर्ट

Avanish Pathak

10 Oct 2022 6:39 AM GMT

  • महिला की गरिमा का सार उसकी लैंगिकता, केवल गंदी या अभद्र भाषा का उपयोग को उसकी गरिमा का हनन नहीं कहा जा सकता: दिल्ली कोर्ट

    दिल्ली की एक कोर्ट ने यह देखते हुए कि एक महिला की गरिमा का "सार" (Essence of woman's modesty) उसकी लैंगिकता (Sex) है, कहा कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 509 के अर्थ में अपमानजनक या गंदी भाषा का उपयोग को किसी महिला की गरिमा का हनन नहीं माना जा सकता है।

    तीस हजारी अदालतों के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट देवांशु सजलान ने कहा कि किसी महिला की गरिमा का हनन हुआ है या नहीं, यह पता लगाने का अंतिम परीक्षण यह है कि यह जांच की जाए कि क्या अपराधी की कार्रवाई ने उसकी शालीनता की भावना को झकझोर दिया या नहीं।

    अदालत ने 2014 में दर्ज एक मामले में एक व्यक्ति को बरी करते हुए यह टिप्पणी की। मामले में आरोप लगाया गया था कि उसने एक महिला के खिलाफ गंदी भाषा का इस्तेमाल किया। महिला ने उसके एसी से पानी के रिसाव की शिकायत की थी, जिसके बाद उसने उसके साथ झगड़ा शुरू कर दिया था।

    अभिजीत जेके बनाम केरल राज्य में जज ने कहा कि धारा 509 को लागू करने के लिए, केवल एक महिला का अपमान करना पर्याप्त नहीं है और उसकी गरिमा का हनन (Insult to her modesty)आवश्यक है।

    अदालत ने 30 सितंबर को पारित एक फैसले में कहा, "इसलिए, अपमान की परिभाषा के तहत गाली-गलौज भरी भाषा/मौखिक दुर्व्यवहार नहीं शामिल है, इन्हें किसी महिला के गरिमा के हनन के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। अदालत यह नहीं मान सकती कि गंदी/अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल शिकायतकर्ता की गरिमा हनन के लिए किया गया है और अभियोजन पक्ष को इसे साबित करना आवश्यक था।"

    मामला

    3 सितंबर 2014 को शिकायतकर्ता को जब यह पता चला कि उसके घर की छत लीक हो रही है तो वह पहली मंजिल पर किराएदार के रूप में रह रहे आरोपी के घर गई और उसके एसी हो रहे पानी के रिसाव के बारे में बताया। आरोप है कि आरोपी ने उनकी बात सुनने के बजाय गाली-गलौज की, जिसके बाद आईपीसी की धारा 509 के तहत मामला दर्ज किया गया।

    अदालत ने कहा कि भले ही शिकायतकर्ता के बयान को सच माना जाए, लेकिन धारा 509 के तहत अपराध नहीं बनता है।

    यह देखते हुए कि अभियोजन पक्ष शिकायतकर्ता के साथ किए गए कथित दुर्व्यवहार की प्रकृति को साबित करने या रिकॉर्ड पर लाने में विफल रहा है, जज का विचार था कि पूरा मामला केवल "बहुत गंदी भाषा में मुझे गाली दी" वाक्यांश पर टिका है।

    "मेरी राय है कि आरोप को साबित करने के‌ ‌लिए अभियोजन पक्ष को गालियों या गंदी भाषा की प्रकृति को साबित करने की आवश्यकता थी जो कथित तौर पर आरोपी ने शिकायतकर्ता के खिलाफ इस्तेमाल की थी। इसके अभाव में, कोई साधन नहीं है, जिससे यह पता चले कि क्या कथित गालियां शिकायतकर्ता की गर‌िमा का हनन थीं।"

    अदालत ने यह भी कहा कि अभद्र या गंदी भाषा का इस्तेमाल करने के आरोप के अलावा आरोपी के अपराध की ओर इशारा करने के ‌लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है। जज ने निष्कर्ष निकाला कि शिकायतकर्ता ने जिरह में कहा था कि घटना स्थल पर पांच से छह लोग थे, जबकि इस मामले में किसी भी सार्वजनिक गवाह से पूछताछ नहीं की गई थी।

    अदालत ने आरोपी को बरी करते हुए कहा, "आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष को आईपीसी की धारा 509 के तहत अपराध को उचित संदेह से परे साबित करना आवश्यक था, जिसे करने में अभियोजन विफल रहा है।"

    केस टाइटल: राज्य बनाम अंकित शुक्ला

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