कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन करे और स्वतंत्रता का आनंद भी ले, ऐसा संवैधानिक योजना में शामिल नहींः दिल्ली हाईकोर्ट

Avanish Pathak

6 Aug 2022 9:35 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दंगा मामले में एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा, "ऐसी धारणा बनाने का कोई भी प्रयास कि कोई कानून को धोखा दे सकता है और फिर भी वह स्वतंत्रता का आनंद ले सकता है, संवैधानिक योजना में शामिल लहीं है।"

    जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने कहा कि जब कोई व्यक्ति मनमाना व्यवहार करता है तो समाज उसे अस्वीकार कर देता है और उसने कानूनी नतीजे भुगतने पड़ते हैं।

    कोर्ट ने उक्त टिप्पणियां भारतीय दंड संहिता की धारा 145, 147, 148, 149, 186, 353, 308 और 505, सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की रोकथाम अधिनियम, 1984 की धारा 3 और 4 के तहत दर्ज एफआईआर के मामले में सुनवाई करते हुए की।

    याचिकाकर्ता पूर्वांचल नव निर्माण संगठन का अध्यक्ष है। उसका मामला था कि 7 जुलाई को एक गरीब महिला राधा देवी की हत्या की निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया गया था।

    यह तर्क दिया गया कि चूंकि याचिकाकर्ता इलाके की जानी-मानी हस्ती थी और प्रदर्शनकारियों में से एक भी थी, इसलिए उसे मामले में गलत तरीके से फंसाया गया था। यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता वास्तव में प्रदर्शनकारियों को किसी भी हिंसा का उपयोग नहीं करने या उनकी सीमा पार न करने के लिए कहा रहा था।

    दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि COVID -19 महामारी के कारण पुलिस विभाग द्वारा विरोध प्रदर्शन के अनुरोध को इस तथ्य को देखते हुए कि क्षेत्र में कानून और व्यवस्था की स्थिति बहुत अनुकूल नहीं थी, अस्वीकार कर दिया गया था।

    यह आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता के कहने पर बिना अनुमति के लगभग 300-350 लोगों की भीड़ जमा हो गई और उसने अनियंत्रित भीड़ के सदस्यों के साथ जबरदस्ती बैरिकेडिंग लाइन तोड़ दी।

    इसके अलावा, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि भीड़ ने पुलिस स्टेशन के मुख्य प्रवेश द्वार पर पथराव करना शुरू कर दिया, एक ईआरवी (आपातकालीन प्रतिक्रिया वाहन) सहित दो पुलिस जिप्सियों को क्षतिग्रस्त कर दिया और कुल 10 पुलिस अधिकारी घायल हो गए

    अदालत ने कहा उसे यह भी देखना है कि आपराधिक कानून का उचित प्रवर्तन हो और यह भी सुनिश्चित हो कि कानून लक्षित उत्पीड़न का कारण न बने।

    अदालत का विचार था कि याचिकाकर्ता से अभी तक वसूली नहीं हुई है और अन्य साजिशकर्ताओं की भूमिका की जांच की जानी बाकी है।

    अदालत ने कहा,

    "जांच अधिकारी ने मौजूदा आवेदक को हिरासत में लेकर पूछताछ करने पर जोर दिया है। मामले के उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों के तहत, यह अदालत इस स्तर पर अग्रिम जमानत पर आवेदक को बाहर करना उचित नहीं समझती।"

    तदनुसार याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: संतोष कुमार झा बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार स्थायी वकील के माध्यम से

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