आपराधिक अभियोजन के कारण नौकरी से टर्मिनेट कर्मचारी अपील में बरी होने पर स्वचालित रूप से वेतन का हकदार नहीं होगा: गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया
Shahadat
15 March 2023 11:29 AM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने सोमवार को दोहराया कि जिस कर्मचारी को आपराधिक मुकदमे के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, वह इस आधार पर स्वचालित रूप से वेतन का दावा नहीं कर सकता कि उसे बाद में बरी कर दिया गया।
जस्टिस संदीप एन भट्ट की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,
"वर्तमान मामले के अजीबोगरीब तथ्यों के मद्देनजर, यह अच्छी तरह से स्थापित है कि पिछले वेतन का अनुदान कभी भी स्वचालित राहत का पालन नहीं करता है। यहां 'नो वर्क, नो पे' का सिद्धांत लागू होगा।"
याचिकाकर्ता का यह मामला था कि उसे अहमदाबाद नगर निगम (एएमसी) द्वारा स्वच्छता निरीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया और 12 मार्च, 1997 को एएमसी द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत उनके खिलाफ आरोपों के अनुसार निलंबित कर दिया गया।
तत्पश्चात याचिकाकर्ता पर सक्षम अदालत द्वारा उक्त आरोपों के लिए दिनांक 27 नवंबर, 2000 के फैसले के तहत मुकदमा चलाया गया और उसे दोषी ठहराया गया। उसे एएमसी द्वारा 31 जुलाई, 2001 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
हालांकि, अपीलीय अदालत ने याचिकाकर्ता को 27 जून, 2018 के फैसले से बरी कर दिया। इस बीच याचिकाकर्ता ने 31 जुलाई, 2017 को सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त कर ली।
बरी होने के बाद याचिकाकर्ता ने एएमसी से सेवानिवृत्ति की तारीख तक उसकी सेवा के सभी लाभों को देने का अनुरोध किया, जिसे एएमसी ने अस्वीकार कर दिया और काल्पनिक लाभ प्रदान किया।
इसलिए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि न तो विभागीय जांच शुरू की गई और न ही एएमसी द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई नोटिस या आरोप पत्र जारी किया गया।
यह आगे प्रस्तुत किया गया कि एएमसी याचिकाकर्ता के सेवानिवृत्त होने के बाद याचिकाकर्ता की ग्रेच्युटी को रोक नहीं सकती।
एएमसी के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को एएमसी द्वारा कल्पित लाभ दिए गए। तदनुसार, सभी लाभों का भुगतान किया गया, जिसे याचिकाकर्ता ने उस प्रासंगिक समय पर बिना किसी आपत्ति या विरोध के स्वीकार कर लिया।
यह भी कहा गया कि पूरी अवधि के दौरान जब याचिकाकर्ता की सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं और सेवानिवृत्ति की तारीख तक उसने कभी काम नहीं किया। इसलिए 'काम नहीं तो वेतन नहीं' के आधार पर याचिकाकर्ता मजदूरी का हकदार नहीं है, जैसा कि दावा किया गया है।
अदालत ने पाया कि निलंबन और बर्खास्तगी की अवधि को एएमसी द्वारा निरंतर-ड्यूटी के रूप में गिना जाता है। तदनुसार, याचिकाकर्ता को लाभ देने के उद्देश्य से काल्पनिक के रूप में गिना जाता है।
अदालत ने नोट किया,
"प्रतिवादी-एएमसी ने 'नो वर्क, नो पे' के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए सभी लाभों का सैद्धांतिक रूप से भुगतान किया, जैसे पेंशन, ग्रेच्युटी, लीव इनकैशमेंट आदि, जिसे याचिकाकर्ता ने बिना किसी विरोध या आपत्ति के स्वीकार कर लिया।"
अदालत ने मीनाबेन कांतिलाल श्रीमाली बनाम अहमदाबाद नगर निगम, 2016 के विशेष नागरिक आवेदन नंबर 12740 दिनांक 31 जुलाई, 2018 के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें गुजरात हाईकोर्ट ने कहा,
"जिस कर्मचारी ने उक्त विशेष अवधि के लिए काम नहीं किया, वह नियुक्ति का हकदार नहीं होगा, क्योंकि उक्त अवधि के लिए काम करने में असमर्थ था। साथ ही उक्त समय के लिए पिछले वेतन के रूप में वेतन के भाग के भुगतान से दुखी नहीं होगा... जिस कर्मचारी को आपराधिक मुकदमे के कारण सेवा से हटा दिया था, वह स्वचालित रूप से और निश्चित रूप से इस आधार पर वेतन का दावा करने में सक्षम नहीं होगा कि उसे बाद में बरी कर दिया गया।
तदनुसार, अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि पिछले वेतन का अनुदान कभी भी स्वत: राहत नहीं है और जिस कर्मचारी को आपराधिक मुकदमा चलाने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, केवल इस आधार पर वापस वेतन का दावा नहीं कर सकता कि उसे बाद में बरी कर दिया गया।
हालांकि, अदालत ने एएमसी को चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को शेष कल्पित लाभों का भुगतान करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: रजनीकांत मोतीभाई पटेल बनाम अहमदाबाद नगर निगम
कोरम: जस्टिस संदीप एन. भट्ट
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