गुजरात हाईकोर्ट ने पॉक्सो दोषी की सजा निलंबित की, कहा-दोषी और पीड़िता के बीच प्रेम संबंध था, दोनों पति-पत्नी के रूप में भी रहे

Avanish Pathak

3 March 2023 1:10 PM GMT

  • गुजरात हाईकोर्ट ने पॉक्सो दोषी की सजा निलंबित की, कहा-दोषी और पीड़िता के बीच प्रेम संबंध था, दोनों पति-पत्नी के रूप में भी रहे

    Gujarat High Court

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में पोक्सो एक्ट के तहत एक दोषी को इस आधार पर जमानत दे दी कि उसके और पीड़िता के बीच प्रेम था, और पकड़े जाने से पहले तक दोनों पति और पत्नी के रूप में रह रहे थे।

    मामले में दोषी ठहराए गए युवक ने 12 दिसंबर, 2022 के फैसले और आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।

    उसे पोक्सो कोर्ट, गांधी नगर ने धारा 363 (अपहरण के लिए सजा), धारा 366 (अपहरण या शादी के लिए मजबूर करने के लिए महिला को प्रलोभित करना, आदि) धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा) और पोक्सो एक्ट, 2012 की धारा 4 और धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।

    शुरु में यह रेखांकित किया गया कि आईपीसी की धारा 363 और 366 के तहत मामला दर्ज किया गया था और जांच के दरमियान पोक्सो एक्ट की धारा 4 और 6 को जोड़ा गया था।

    आवेदक की ओर से पेश वकील, भाविक आर समानी ने कहा कि मामला आवेदक के बीच प्रेम संबंध का था, जिसकी उम्र लगभग 21 वर्ष थी, जबकि अभियोजक भी अपराध की तारीख के अनुसार 17 वर्ष, 2 महीने और 23 दिन की थी।

    यह आगे प्रस्तुत किया गया कि आवेदक मुकदमे के दरमियान नियमित जमानत पर था और अपील में कुछ समय लगने की संभावना है, इसलिए, सजा को निलंबित करके आवेदक को स्थायी जमानत दी जानी चाहिए।

    राज्य की ओर से पेश हुए एपीपी तीर्थराज पंड्या ने इस आधार पर जमानत अर्जी का विरोध किया कि दोषसिद्धि ठोस साक्ष्य के आधार पर दर्ज की गई है। अदालत ने देखा कि आवेदक वर्तमान में 23 वर्ष की आयु का है और आवेदक की अपील पहले ही स्वीकार कर ली गई है।

    जस्टिस एवाई कोगजे की पीठ ने कहा,

    "अभियोजक की ओर से पेश साक्ष्यों को देखने के बाद यह समझ आता है प्रासंगिक समय में दोनों के बीच प्रेम संबंध है और उस समय, आवेदक की आयु लगभग 21 वर्ष थी और अभियोजक की आयु 17 वर्ष थी। साक्ष्य उस तरीके को भी इंगित करता है, जिसमें आवेदक और अभियोजन पक्ष मिले थे और पति और पत्नी के रूप में रहते थे....।

    अदालत ने आगे कहा कि आवेदक का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।

    अदालत ने भगवान राम शिंदे गोसाई बनाम गुजरात राज्य (1999) 4 SCC 421 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया और शर्तों पर आवेदक की जमानत अर्जी मंजूर कर ली। इसने आपराधिक अपील के अंतिम निस्तारण तक ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई आवेदक की सजा को भी निलंबित कर दिया।

    केस टाइटल: रवि हरेशभाई पाटनी बनाम गुजरात राज्य

    कोरम: जस्टिस एवाई कोगजे

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