'शैक्षणिक संस्थानों को महामारी के बाद स्थितियों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए': पटना हाईकोर्ट ने CNLU की 'लाइब्रेरी शुल्क' और 'परीक्षा शुल्क' की मांग खारिज की
LiveLaw News Network
2 Dec 2021 3:17 PM IST
पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (CNLU) की शैक्षणिक वर्ष 2020-2021 के लिए सुविधा शुल्क और परीक्षा शुल्क की मांग मनमाना और अवैध है। कोर्ट ने कहा है कि बीते साल छात्रों ने कक्षाओं में भाग नहीं लिया था और COVID-19 के कारण सुविधाओं का लाभ नहीं उठाया था।
जस्टिस पीबी बजंथरी ने कहा,
" छात्रों ने COVID-19 महामारी के दौरान कक्षाओं में भाग नहीं लिया है, इसलिए, सुविधा शुल्क और लाइब्रेरी शुल्क के भुगतान की विश्वविद्यालय की मांग इस कारण से मनमानी और अवैध है कि जब याचिकाकर्ता कक्षाओं में शामिल नहीं हो सके क्योंकि यह COVID-19 महामारी को देखते हुए उनके नियंत्रण से बाहर था, इसलिए विश्वविद्यालय के लिए COVID-19 महामारी की अवधि के दौरान छात्रों से सुविधा शुल्क और लाइब्रेरी शुल्क की मांग करना उचित नहीं है। "
मौजूदा मामले में CNLU ने सात अगस्त, 2020 को एक आधिकारिक ज्ञापन के माध्यम से छात्रों से 'ट्यूशन फीस' की मांग की थी। एनआरआई स्पॉन्सर्ड कैटेगरी के छात्रों से 94,500 से 2,62,500 रुपये तक की मांग की गई थी। इसके अलावा, 'परीक्षा शुल्क के साथ-साथ सुविधा शुल्क' की श्रेणी के तहत 15,000 रुपये और 'लाइब्रेरी शुल्क' के रूप में 5000 रुपये की मांग की गई थी।
सुनवाई के दौरान, विश्वविद्यालय की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि विश्वविद्यालय गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहा है और अकादमिक परिषद ने सुविधा शुल्क और लाइब्रेरी शुल्क के संबंध में उपरोक्त शुल्क लगाने को मंजूरी दी है।
अदालत को यह भी बताया गया कि विश्वविद्यालय छात्रावास के कमरे का किराया, मेस शुल्क और छात्रावास के बिजली शुल्क नहीं ले रहा है। वकील ने अदालत को बताया कि छात्रों को लगभग 1,02,00,000 रुपये की कुल रियायत और छूट प्रदान की गई है।
हालांकि, इन दलीलों से सहमत न होते हुए कोर्ट ने कहा कि केवल किताबों और अन्य बुनियादी ढांचे की खरीद के लिए विश्वविद्यालय को सुविधा शुल्क और लाइब्रेरी शुल्क की मांग करने का अधिकार नहीं है, खासकर जब छात्र उपरोक्त सुविधाओं से लाभान्वित नहीं होते हैं।
कोर्ट ने इंडियन स्कूल, जोधपुर बनाम राजस्थान राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया , जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने महामारी के दौरान स्कूल फीस की वसूली से संबंधित याचिकाओं के एक बैच से निपटने के दौरान कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों के प्रबंधन को महामारी के कारण लोगों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और उसी के अनुसार 'इन कठिन समय में छात्रों और उनके माता-पिता को सहायता' प्रदान करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा था कि छात्रों को प्रदान नहीं की जाने वाली सुविधाओं के भुगतान पर जोर देना मुनाफाखोरी के समान होगा, जिसे शैक्षणिक संस्थानों को टालना चाहिए।
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा,
"कानून में स्कूल प्रबंधन को उन गतिविधियों और सुविधाओं के लिए फीस लेते नहीं सुना गया है, जो वास्तव में उनके नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण छात्रों को प्रदान नहीं की गई है, या छात्रों ने प्राप्त नहीं की हैं। ऐसी गतिविधियों के ओवरहेड्स के संबंध में भी फीस की मांग करना मुनाफाखोरी और व्यावसायीकरण में लिप्त होने से कम नहीं है। यह एक सर्वविदित तथ्य है और न्यायिक नोटिस भी लिया जा सकता है कि पूर्ण लॉकडाउन के कारण शैक्षणिक वर्ष 2020-2021 के दौरान स्कूलों को काफी लंबी अवधि के लिए खोलने की अनुमति नहीं थी, जिसके कारण स्कूल प्रबंधन ने विभिन्न मदों जैसे पेट्रोल/डीजल, बिजली, रखरखाव लागत, पानी के शुल्क, स्टेशनरी शुल्क आदि पर ओवरहेड्स और आवर्ती लागत को बचाया होगा।"
छात्रों और अभिभावकों की वित्तीय कठिनाइयों को कम करने के लिए शैक्षणिक संस्थानों की आवश्यकता पर जोर देते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की,
"शैक्षणिक संस्थानों को कठोर नहीं होना चाहिए और महामारी के बाद की स्थितियों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। शैक्षिक प्रबंधन को शिक्षा प्रदान करने की धर्मार्थ गतिविधियों में शामिल माना जाता है, उम्मीद की जाती है कि स्थिति के प्रति जवाबदेह हों, छात्रों और माता-पिता को होने वाली कठिनाई को कम करने के लिए आवश्यक उपचारात्मक उपाय करें। शैक्षणिक संस्थान का जिम्मेदारी है कि वह कॉलेज के भुगतान को इस तरह से पुनर्निर्धारित करे कि एक भी छात्र को अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के अवसर से वंचित न होने पड़े.."
कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 41 पर भी भरोसा किया जो बेरोजगारी, बुढ़ापे की बीमारी और विकलांगता के कुछ मामलों में काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने का अधिकार प्रदान करता है। इसी प्रकार संविधान का अनुच्छेद 46 लोगों के कमजोर वर्गों की शिक्षा से संबंधित है।
इस प्रकार कोर्ट ने निर्देश दिया,
"सुविधा शुल्क और लाइब्रेरी शुल्क के रूप में क्रमशः 15,000/ और 5,000/ की मांग मनमानी और अवैध है और इस प्रकार की मांग को खारिज किया जाता है। प्रतिवादी-विश्वविद्यालय यदि किसी भी छात्र से सुविधा और लाइब्रेरी शुल्क के तहत शुल्क लिया है तो उसे जल्द से जल्द वापस कर दिया जाए।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट सुमीत सिंह , शुभम बजाज और सुयश रावत ने किया ।
केस शीर्षक: कार्तिकेय त्रिवेदी और अन्य बनाम चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी