दहेज मृत्यु - समाज को गलत संदेश गया कि ससुराल वाले यदि पीड़िता से अलग रहते हैं तो आसानी से बच सकते हैं : मद्रास हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

21 April 2021 1:45 PM GMT

  • दहेज मृत्यु - समाज को गलत संदेश गया कि ससुराल वाले यदि पीड़िता से अलग रहते हैं तो आसानी से बच सकते हैं : मद्रास हाईकोर्ट

    Madras High Court

    आईपीसी की धारा 498-ए के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराए गए दंपति को दी गई सजा को निलंबित करने से इनकार करते हुए, मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि माता-पिता की पहली और सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अपने बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनाना है।

    न्यायमूर्ति पी वेलमुरुगन की पीठ ने यह रेखांकित किया कि महिलाओं की आत्महत्या की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं (दहेज उत्पीड़न के कारण)। पीठ ने कहा कि पीड़ित महिला के ससुराल वाले यह कहते हुए अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं कि वे अपने बेटे के साथ नहीं रह रहे थे।

    हालांकि, अदालत ने कहा कि वह अलग रहने के बावजूद भी अपने बेटे को पैसे,गहने,दोपहिया वाहन या कार आदि के जरिए दहेज मांगने के लिए प्रेरित कर रहे थे।

    न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि कई याचिकाओं में यह देखने में आया है कि ससुराल वालों की तरफ से तर्क दिया गया था कि चूंकि वे अपने बेटे और पीड़ित महिला के साथ नहीं रहते थे, इसलिए उनकी सजा को निलंबित किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    ''इसका फायदा उठाते हुए, समाज में एक गलत संदेश गया है कि माता-पिता आसानी से अपने दायित्व और कथित अपराध से बच सकते हैं।''

    दिलचस्प बात यह है कि कोर्ट ने यह भी कहा कि,

    ''एक बच्चे को जन्म देना ,उसे आश्रय देना,उसे अच्छी शिक्षा प्रदान करना, और अपने बच्चे को अच्छी नौकरी पाने के लिए प्रेरित करना पर्याप्त नहीं है। माता-पिता की पहली और सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह है कि वे अपने बच्चों को जिम्मेदार नागरिक के रूप में तैयार करें।''

    न्यायालय के समक्ष मामला

    कोर्ट के सामने याचिकाकर्ता (आरोपी 2 और 3) पहले आरोपी (मृतका के पति )के माता-पिता हैं। पहले आरोपी और मृतका की शादी 20.06.2016 को हुई थी।

    आरोप लगाया गया है कि पति के माता-पिता/याचिकाकर्ता गहने और पैसे की मांग करके मृतका की पिटाई करते थे और उसका उत्पीड़न कर रहे थे। मृतका को काफी मानसिक परेशानी दी जा रही थी, इसलिए उसने 29 सितंबर 2017 को आत्महत्या कर ली।

    इसके बाद, आरोपी पति और याचिकाकर्ता/ माता-पिता के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए और आईपीसी की 304 बी के तहत अपराध के लिए प्रतिवादी-पुलिस द्वारा मामला दर्ज किया गया था।

    याचिकाकर्ता/माता-पिता को आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दोषी पाया गया और सजा सुनाई गई। उन्होंने इसी सजा के खिलाफ आपराधिक अपील दायर की थी।

    इसी अपील के साथ वर्तमान Crl.M.P.No.2926 of 2021 को दायर करके सजा को निलंबित करने की मांग की गई थी।

    उनकी ओर से यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता/ अभियुक्त 2 और 3 कभी भी एक ही छत के नीचे (मृतक महिला के साथ) नहीं रहे थे। इसलिए उनकी तरफ से दहेज मांगने और प्रताड़ित करने की कोई संभावना नहीं है,जैसा कि अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया है।

    हालांकि, अदालत ने सजा को निलंबित करने से इनकार करते हुए कहा कि,

    ''रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री से पता चलता है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ सामग्री मौजूद है और सत्र न्यायाधीश के याचिकाकर्ताओं/अभियुक्त 2 और 3 के खिलाफ रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री पर उचित रूप से विचार करते हुए उन्हें आईपीसी की धारा 498-ए के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया था और उन्हें आईपीसी की धारा 304-बी के तहत आरोप से बरी कर दिया था।''

    आरोपियों द्वारा किए गए अपराध की प्रकृति और गंभीरता को देखते हुए, अदालत ने सजा को निलंबित नहीं किया और विविध याचिका को खारिज कर दिया।

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