जब तक ट्रस्टियों की नियुक्ति न हो तब तक मंदिर के आभूषण न पिघलाएं: मद्रास हाईकोर्ट ने स्वर्ण मुद्रीकरण योजना पर तमिलनाडु राज्य से कहा
LiveLaw News Network
29 Oct 2021 4:44 PM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को स्वर्ण मुद्रीकरण योजना के तहत मंदिरों के आभूषणों को पिघलाकर उन्हें सोने की पट्टियों बनाने पर कोई निर्णय लेने से रोक दिया। कोर्ट ने गुरुवार को दिए आदेश में कहा कि राज्य के हिंदू मंदिरों में न्यासियों की नियुक्ति तक सरकार ऐसा करने से बचें।
चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस पीडी आदिकेसवालु ने इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट की ओर से अध्यक्ष टी आर रमेश के माध्यम से दायर याचिकाओं के बैच पर फैसला सुनाया।
मौजूदा मामले में दायर याचिकाओं में राज्य विधानसभा में की गई कुछ घोषणाओं को चुनौती दी गई थी, जिनके बाद 9 सितंबर, 2021 को प्रमुख सचिव, हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (एचआर एंड सीई) विभाग ने एक अधिसूचना जारी की थी। बाद में राज्य के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के आयुक्त ने 22 सितंबर, 2021 को एक और अधिसूचना जारी की थी।
एचआर एंड सीई डिपार्टमेंट के आयुक्त ने सभी मंदिर प्राधिकरणों को मंदिरों में चढ़ावे के रूप चढ़े सोने को पिघलाने का निर्देश दिया था। सोने को बैंको में निवेश किया जाना था, ताकि ब्याज से अर्जित आय का इस्तेमाल मंदिरों के नवीनीकरण में किया जा सके।
9 सितंबर, 2021 की अधिसूचना में स्पष्ट किया गया था कि सेवानिवृत्त जजों की अध्यक्षता वाली समितियों के तत्वावधान में इस तरह की पहल की निगरानी के लिए तीन क्षेत्रीय केंद्र स्थापित किए जाएंगे।
दलीलें
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1959 (1959 अधिनियम) के अनुसार किसी भी मंदिर के प्रशासन और संपत्तियों से संबंधित निर्णय मुख्य रूप से न्यासियों द्वारा लिया जाता है और आयुक्त और मंदिर में नियुक्त फिट पर्सन की ऐसे मामलों में सीमित या पर्यवेक्षी भूमिकाएं होती हैं।
हालांकि, यह बताया गया कि ऐसे मंदिरों में काफी समय से न्यासियों की नियुक्ति नहीं की गई है। न्यासियों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी कर दिए गए हैं और इसे पूरा होने में चार से छह सप्ताह का समय लगेगा।
इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने रीलियजस इंस्टिट्यूशंस कस्टडी ऑफ जेवेल्स, वैल्यूबल्स, एंड डॉक्यूमेंट एंड डिस्पोजल रूल्स, 1959 एक्ट के तहत निर्मित, के नियम 11 से 13 पर भरोसा किया और दलील दी कि मंदिर संबंधित किसी आभूषण या अन्य कीमती वस्तुओं के निस्तारण के निर्णय का अधिकार न्यासियों के पास है।
दूसरी ओर, राज्य ने दलील दी कि मंदिरों में चढ़ाए गए सोने को पिघलाना राज्य भर में एक 'सामान्य प्रथा' है। एडवोकेट जनरल आर शुनमुगसुंदरम ने पीठ को बताया कि इस तरह की प्रक्रिया से तकरबीन 11.5 करोड़ रुपये की आय हुई है, जिनका इस्तेमाल मंदिरों के जीर्णोद्धार में किया जाएगा।
कोर्ट को को यह भी बताया गया कि एक समिति बनाई गई है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज और मद्रास हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज शामिल हैं, जो प्रत्येक मंदिर परिसर में चढ़े प्रसाद और उसकी संपत्तियों की सूची के संचालन की निगरानी करेंगे।
अवलोकन
प्रतिद्वंद्वी प्रस्तुतियों के अवलोकन के अनुसार, कोर्ट ने नोट किया कि नियम 12 आयुक्त को ट्रस्टी को निर्देश जारी करने के लिए अधिकृत करता है, "जैसा कि वस्तुओं के संरक्षण या अन्यथा के लिए आवश्यक हो सकता है; जहां वस्तुएं गहने, वाहन या अन्य कीमती वस्तुएं हो सकती हैं।"
इसी प्रकार नियम 13 ट्रस्टी को मंदिर में किसी भी आभूषण या कीमती वस्तु को पिघलाने के लिए सक्षम प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति के अधीन अधिकार देता है।
पीठ ने आगे कहा कि गठित समिति मंदिर की सभी संपत्तियों की एक सूची बनाने की प्रक्रिया को जारी रख सकती है, हालांकि न्यासियों की नियुक्ति नहीं होने को देखते हुए सोने के पिघलाने के संबंध में निर्णय करना 'बहुत जल्दी' है।
कोर्ट ने आगे कहा कि चूंकि एडवोकेट जनरल ने आश्वासन दिया है कि जल्द ही न्यासियों की नियुक्ति की जाएगी, याचिकाकर्ताओं के पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि मंदिर की संपत्ति जैसे आभूषण और अन्य कीमती सामान प्रतिकूल रूप से प्रभावित होंगे।
अदालत ने निर्देश देने के बाद याचिकाओं की सुनवाई 15 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी। इस बीच, राज्य को दायर याचिकाओं पर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया गया था।
केस शीर्षक: इंडिक कलेक्टिव ट्रस्ट और अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य