तलाशी के दौरान परिसर बंद होने पर उसे सील करने का अधिकार नहीं: ED ने हाईकोर्ट के समक्ष स्वीकार किया
Shahadat
18 Jun 2025 12:37 PM

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष स्वीकार किया कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) की धारा 17 के अनुसार तलाशी के समय परिसर बंद होने पर उसे सील करने का अधिकार उसके पास नहीं है।
जस्टिस एम एस रमेश और जस्टिस वी लक्ष्मीनारायण की खंडपीठ फिल्म निर्माता आकाश भास्करन और व्यवसायी विक्रम रविंद्रन द्वारा उनके आवास और कार्यालय पर की गई ED की तलाशी के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी और इसे अवैध घोषित करने की मांग कर रही थी। आरोप लगाया गया कि ED ने आवासीय फ्लैट और कार्यालय को सील कर दिया था, क्योंकि तलाशी के समय यह बंद था।
खंडपीठ ने अंतरिम आवेदनों पर आदेश सुरक्षित रखा है और मुख्य याचिकाओं को चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया।
सुनवाई के दौरान जजों ने आश्चर्य जताया कि क्या ED के पास परिसर को सील करने का अधिकार है और सवाल किया कि किस प्रावधान के तहत ED को सील करने की अनुमति है।
इस पर एएसजी एसवी राजू ने स्वीकार किया कि ED के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है। राजू ने आगे कहा कि PMLA की धारा 17 के अनुसार, ED के पास बंद परिसर की सील तोड़ने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि ED ने वर्तमान मामले में ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की, क्योंकि वह स्थिति को और खराब नहीं करना चाहता था।
राजू ने कहा,
"ED के पास सील करने का अधिकार नहीं है। इस मामले में माननीय न्यायाधीश सही हैं। धारा 17 के तहत ED के पास ताला तोड़ने का अधिकार है। लेकिन हम स्थिति को और खराब नहीं करना चाहते थे।"
राजू ने अदालत को यह भी बताया कि ED नोटिस वापस लेने के लिए तैयार है और याचिकाकर्ताओं को उनके कार्यालय और आवास तक पहुंचने की अनुमति देगा।
खंडपीठ ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि यह कहने से कि ED याचिकाकर्ताओं को "अनुमति" देगा, यह अनुमान लगाया जाएगा कि ED के पास याचिकाकर्ताओं को प्रतिबंधित करने का भी अधिकार है। पीठ ने बताया कि याचिकाकर्ताओं ने दो आधारों पर वर्तमान कार्यवाही पर हमला किया था - ED का प्राधिकरण और सीलिंग।
मामले पर जब मंगलवार को सुनवाई हुई तो जजों ने इसी तरह का सवाल उठाया और मौखिक रूप से टिप्पणी की कि ED अधिकारी दिन-प्रतिदिन अपनी शक्तियों का विस्तार करके विकसित हो रहे हैं।
ED के विशेष अभियोजक एन रमेश ने खंडपीठ को सूचित किया कि तलाशी विश्वसनीय जानकारी और गवाहों के बयानों पर आधारित थी।
खंडपीठ ने तब ED से उन सामग्रियों को प्रस्तुत करने के लिए कहा था, जिन पर उसने भरोसा किया था।
इसके बाद जब ED ने दस्तावेज प्रस्तुत किए तो पीठ ने दस्तावेजों को आगे बढ़ाया और पाया कि वे ED द्वारा प्रस्तुत किए गए सबमिशन से मेल नहीं खाते।
खंडपीठ ने टिप्पणी की,
"आपके पास जो जानकारी है, वह हमें दी गई है। लेकिन यह आपके सबमिशन से मेल नहीं खाती। हमने ED से उन दस्तावेजों को प्रस्तुत करने के लिए कहा था, जिनके आधार पर याचिकाकर्ताओं के संबंध में उनके पास विश्वास करने का कारण था। यह ऐसा नहीं है। एएसजी के अनुसार, धारा 17 के तहत विश्वास करने के कारण के लिए 41 FIR आधार हैं। लेकिन यह आपके (ED के) सबमिशन से मेल नहीं खाता। नोट और सबमिशन के बीच अंतर है।"
राजू ने खंडंपीठ को बताया कि ED को नोटिस वापस लेने का निर्देश दिया गया और जब्त की गई सभी सामग्री को वापस करने का भी निर्देश दिया गया।
खंडपीठ ने दलीलों पर गौर किया और अंतरिम आवेदन पर आदेश सुरक्षित रख लिया।