डॉक्टर की राय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत प्रासंगिक, लेकिन यह ठोस साक्ष्य का स्थान नहीं ले सकतीः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

30 Jan 2022 12:00 PM IST

  • Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

    MP High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (ग्वालियर बेंच) ने हाल ही में कहा है कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत एक डॉक्टर की राय प्रासंगिक साक्ष्य है, लेकिन यह शायद ही कभी ठोस/वास्तविक साक्ष्य की जगह ले सकता है और न ही यह निर्णायक हो सकता है क्योंकि यह केवल एक राय साक्ष्य (opinion evidence) है।

    जस्टिस राजीव कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह कहते हुए एक बल्ली चौधरी की तरफ से दायर उस आपराधिक पुनरीक्षण याचिका (criminal revision plea) को खारिज कर दिया है,जिसमें उसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307, 34 और 452 के तहत उसके खिलाफ आरोप तय करने के आदेश को चुनौती दी थी।

    संक्षेप में मामला

    संक्षेप में प्रकरण के तथ्य यह हैं कि शिकायकर्ता व उसकी बेटी (जिसके साथ एक रिंकू ने कथित रूप से छेड़खानी की थी) एक चिकित्सा औषधालय, (सीएचसी), भितरवार गए थे। जब वह इंजेक्शन रूम में गया तो उसी समय आवेदक-आरोपी (बल्ली चौधरी) अन्य सह-आरोपियों के साथ औषधालय के कमरे में आ गया और उन्होंने हॉकी स्टिक से उसके सिर पर वार किया, जिस कारण उसके सिर में चोट आ गई।

    इसी के आधार पर चौधरी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। मामले की जांच और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस ने निचली अदालत में चालान पेश कर दिया, जिसके बाद आईपीसी की धारा 307/34, 452 के तहत बल्ली चौधरी के खिलाफ आरोप तय किए गए। इसी आदेश को उसने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

    मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया कि आवेदक की ओर से शिकायतकर्ता की मृत्यु का कारण बनने का कोई इरादा नहीं था और चिकित्सक की राय के अनुसार, शिकायतकर्ता को आई चोट सामान्य तौर पर मृत्यु का कारण बनने के लिए पर्याप्त नहीं थी। इसलिए यह तर्क दिया गया कि आवेदक के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 सहपठित धारा 34 के तहत कोई मामला नहीं बनता है।

    कोर्ट का आदेश

    कोर्ट ने सोमा चक्रवर्ती बनाम राज्य(2007) 5 एससीसी 403 मामले में दिए गए फैसले सहित सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का उल्लेख किया और कहा कि आरोपों के निर्धारण के समय रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के संभावित मूल्य में नहीं जा सकते और अभियोजन द्वारा रिकॉर्ड पर लाई गई सामग्री को सत्य के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने आवेदक के उस तर्क को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि डॉक्टर ने यह नहीं कहा है कि चोट इस तरह की थी कि वह सामान्य प्रकृति में मौत का कारण बनने के लिए पर्याप्त थी।

    कोर्ट ने कहा,

    ''हालांकि साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के प्रावधानों के मद्देनजर डॉक्टर की राय प्रासंगिक है, लेकिन वह भी निर्णायक नहीं है। डॉक्टर की राय एक सबूत है और यह शायद ही कभी, मूल/वास्तविक सबूत की जगह ले सकता है और न ही यह निर्णायक हो सकता है क्योंकि यह केवल एक राय साक्ष्य है।''

    कोर्ट ने यह भी कहा कि वर्तमान मामले में आवेदक अन्य सह-आरोपियों के साथ एक सामान्य इरादे से मौके पर पहुंचा, यानी मेडिकल डिस्पेंसरी और आवेदक ने हॉकी स्टिक के जरिए शिकायतकर्ता के सिर पर चोट पहुंचाई। वहीं चिकित्सा साक्ष्य और गवाहों के साक्ष्य ने इस तथ्य को सही ठहराया है।

    कोर्ट ने कहा कि यह स्थापित किया गया है कि आरोप तय करने के समय पूरे साक्ष्य की विस्तार से सराहना करने की कोई गुंजाइश नहीं होती है और निचली अदालत ने मामले पर विचार करने के बाद ही आवेदक के खिलाफ एक प्रथम दृष्टया मामला पाया है और उसके खिलाफ आरोप तय किए हैं। इसलिए, अदालत ने तत्काल पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया।

    केस का शीर्षक - बल्ली चौधरी उर्फ राकेश बनाम मध्यप्रदेश राज्य

    केस - 2022 लाइव लॉ (एमपी) 19

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