सहमति से बने संबंध से उत्पन्न गर्भावस्‍था को समाप्त करते समय डॉक्टरों को पॉक्सो एक्ट के तहत रिपोर्ट में नाबालिग लड़की के नाम का खुलासा करने की जरूरत नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

Avanish Pathak

18 Aug 2023 1:37 PM IST

  • सहमति से बने संबंध से उत्पन्न गर्भावस्‍था को समाप्त करते समय डॉक्टरों को पॉक्सो एक्ट के तहत रिपोर्ट में नाबालिग लड़की के नाम का खुलासा करने की जरूरत नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि जब कोई नाबालिग सहमति से बने यौन संबंध से उत्पन्न गर्भावस्था को समाप्त करना चाहती है तो पंजीकृत चिकित्सक पोक्सो कानून की धारा 19 के तहत रिपोर्ट तैयार करने के लिए नाबालिग के नाम का खुलासा करने पर जोर नहीं दे सकता है।

    कोर्ट ने माना कि कभी-कभी नाबालिग और उनके अभिभावक मामले को आगे बढ़ाने में और खुद को कानूनी प्रक्रिया में उलझाने में रुचि नहीं रखते, ऐसे मामलों में नाबालिग के नाम का खुलासा किए बिना गर्भावस्था की समाप्ति की जा सकती है।

    जस्टिस आनंद वेंकटेश और जस्टिस सुंदर मोहन की पीठ ने मामले में छठे प्रतिवादी प्रधान मुख्य सचिव को इस मुद्दे पर विचार करने का निर्देश दिया।

    कोर्ट ने उन्हें शीर्ष न्यायालय की ओर से एक्स बनाम प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग में दिए गए फैसले का सख्ती से पालन करने के लिए एक प्रक्रिया विकसित करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट उस फैसले में नाम की जिद ना करने का निर्देश दिया था।

    इस पीठ का गठन न्यायिक पक्ष में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम और किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए किया गया था।

    अदालत ने इससे पहले डीजीपी से अदालतों/किशोर न्याय बोर्डों के समक्ष लंबित नाबालिग बच्चों के बीच सहमति से बनाए गए संबंधों से जुड़े मामले की संख्या का पता लगाने के लिए कहा था।

    जब मामला सुनवाई के लिए आया तो डीजीपी ने बताया कि चार जोन, नौ शहरों में 111 मामलों की पहचान की गई है। इनमें दो मामले रेलवे पुलिस ने दर्ज किए थे। ये ऐसे मामले हैं जो या तो जांच के चरण में हैं या जहां जांच पूरी हो चुकी है और अंतिम रिपोर्ट दायर की गई है और संबंधित क्षेत्राधिकार न्यायालय ने इसे अब तक फाइल पर नहीं लिया है।

    अदालत ने सभी सामग्रियों को इकट्ठा करने के लिए किए गए प्रयासों की सराहना की। सा‌थ ही कहा कि इससे अदालत 111 मामलों में जल्दी से निर्णय लेने और अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने में सक्षम होगी, जिससे इसमें शामिल बच्चे को लाभ होगा।

    अदालत को यह भी बताया गया कि संबंधित पुलिस अधिकारी शिकायतकर्ताओं/पीड़ित लड़की के माता-पिता से संपर्क करेंगे और उनकी सहमति लेंगे, जिससे अदालत को संबंधित कार्यवाही को रद्द करने के आदेश पारित करने की अनुमति मिलेगी।

    अदालत ने पहले भी अधिकारियों को पोटेंसी परीक्षण करने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया के साथ आने और जनवरी 2023 से उन मामलों की रिपोर्ट प्राप्त करने का निर्देश दिया था, जहां टू-फिंगर परीक्षण का कोई संदर्भ दिया गया था।

    कोई 'टू-फिंगर' परीक्षण नहीं

    अदालत ने कहा कि नवंबर 2022 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-तमिलनाडु द्वारा जारी परिपत्र के अनुसार, टू फिंगर टेस्ट या कोल्पोस्कोपी परीक्षा तब तक नहीं की जानी चाहिए जब तक कि चोटों का पता लगाने या चिकित्सा उपचार के लिए यह आवश्यक न हो।

    अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि जब इस तरह के एक विशिष्ट दिशानिर्देश दिए गए थे, तो पीड़िता की जांच करने वाले डॉक्टर को नियमित रूप से टू फिंगर टेस्ट या कोल्पोस्कोपी परीक्षा नहीं करनी चाहिए।

    नियमित रूप से पोटेंसी टेस्ट जरूरी नहीं

    इसी प्रकार, इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेंसिक मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ ए नागेंद्र कुमार की चिकित्सकीय राय मांगते हुए अदालत ने कहा कि यौन हिंसा के सभी मामलों में पोटेंसी टेस्ट की आवश्यकता नहीं होती है और जब पीड़िता में वीर्य का पता लगाया जाता है तो रक्त का नमूना डीएनए से मिलान करने के लिए पर्याप्त है।

    अदालत ने कहा कि पीड़ित लड़कियों के मेडिकल परीक्षण के संबंध में एसओपी तैयार करते समय इन टिप्पणियों को ध्यान में रखा जा सकता है।

    केस टाइटल: काजेंद्रन बनाम पुलिस अधीक्षक और अन्य

    साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (मद्रास) 231

    केस नंबर: एचसीपी 2182/2022


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