अधूरे हस्ताक्षर के कारण चेक का अनादर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध का गठन करता हैः जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

5 Jan 2022 5:09 AM GMT

  • अधूरे हस्ताक्षर के कारण चेक का अनादर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध का गठन करता हैः जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि अधूरे हस्ताक्षर के कारण चेक का अनादर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध का गठन करता है। जस्टिस संजय धर की पीठ ने परवेज अहमद भट नामक एक व्यक्ति और एक अन्य की याचिका पर यह टिप्पणी की।

    याचिकाकर्ताओं ने एनआई एक्ट की धारा 138 सहपठित धारा 420 आईपीसी के तहत अपराध के लिए अपने खिलाफ दायर की गई शिकायत को चुनौती दी थी। उनकी ओर से जारी चेक अपूर्ण हस्ताक्षर के कारण अनादरित हो गए ‌थे।

    विवाद

    याचिकाकर्ताओं/अभियुक्तों का तर्क था कि मौजूदा मामले में एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध का गठन नहीं होता है, क्योंकि चेक अपूर्ण हस्ताक्षर के कारण अनादरित हुए थे, न कि धन की कमी या व्यवस्था से परे होने के कारण। इस प्रकार से कोई भी शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है।

    याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलों के पक्ष में विनोद तन्ना बनाम जहीर सिद्दीकी, (2002) 7 एससीसी 541 में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्‍लेख किया। विनोद तन्ना में शीर्ष न्यायालय ने यह माना था कि चेक आदेशक (ड्रॉर) के हस्ताक्षर के अधूरे होने के कारण चेक का अनादर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत एक अपराध का गठन करता है।

    टिप्पणियां

    कोर्ट ने शुरुआत में यह कहने के लिए एनआई एक्ट की धारा 138 का हवाला दिया कि पहली बार में ऐसा प्रतीत होता है कि एनआई एक्ट की धारा 138 केवल दो स्थितियों में ही आकर्षित होती है। पहला जब आदेशक के बैंक खाते में अपर्याप्त धनराशि उपलब्ध हो और दूसरी बात यह कि यह उस बैंक के साथ किए गए समझौते द्वारा उस खाते से भुगतान की जाने वाली राशि से अधिक हो।

    हालांकि, कोर्ट ने आगे कहा कि इस प्रावधान की सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में इस प्रकार व्याख्या की है कि इसके दायरे में उन मामलों को भी शामिल किया जा सके, जहां उपरोक्त दो कारणों के अलावा अन्य कारणों से चेक का अनादर हुआ है।

    लक्ष्मी डाइकेम बनाम गुजरात राज्य और अन्य, (2012) 13 एससीसी 375 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि विनोद तन्ना मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले (जिस पर याचिकाकर्ताओं ने भरोसा किया है) इस मामले में पर इनक्यूरियम माना गया था।

    [नोट: यहां, यह ध्यान दिया जा सकता है कि लक्ष्मी डाइकेम में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे मामले का निस्तारण किया था, जिसमें बैंक द्वारा चेक इस आधार पर अनादरित किए गए थे कि आदेशक के हस्ताक्षर अपूर्ण थे और कोई इमेज नहीं मिली थी या हस्ताक्षरों का मिलान नहीं हो पाया था।

    इस मामले में कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि ऐसे मामलों में अभियुक्तों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की अनुमति दी जानी चाहिए, और हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने वाले निर्णय और आदेशों को रद्द कर दिया गया था।]

    न्यायालय ने यह भी नोट किया कि लक्ष्मी डाईकेम के मामले में दिया गया निर्णय उस समय के अनुसार नवीनतम था और इसलिए, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि मिसाल के कानून के अनुसार, लक्ष्मी डाईकेम के मामले में निर्धारित अनुपात का पालन ​​किया जाए।

    न्यायालय ने निम्न टिप्‍पणियों के साथ मौजूदा याचिका खारिज की,

    " ...लक्ष्मी डाइकेम के मामले में निर्धारित अनुपात के अनुसार, याचिकाकर्ताओं का तर्क कि मौजूदा मामले में एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध का गठन नहीं होता है क्योंकि चेक अपूर्ण हस्ताक्षर के कारण अनादरित हुए थे, न कि धन की अपर्याप्तता या व्यवस्था से अधिक होने के कारण, अस्वीकार किए जाने योग्य है।"


    केस शीर्षक - परवेज अहमद भट और अन्य बनाम फिदा मोहम्मद अयूब

    केस सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (JK) 1

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