धूलागढ़ दंगा कवरेज| कलकत्ता हाईकोर्ट ने कथित तौर पर 'दुश्मनी को बढ़ावा देने' के आरोप में सुधीर चौधरी, पूजा मेहता के खिलाफ दर्ज मामला रद्द किया
Shahadat
9 Aug 2023 11:09 AM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह ज़ी न्यूज़ के पूर्व संपादक (वर्तमान में आज तक के सलाहकार संपादक) सुधीर चौधरी, ज़ी न्यूज़ की पत्रकार पूजा मेहता और कैमरापर्सन तन्मय मुखर्जी के खिलाफ 2016 के धूलागढ़ कवरेज के दौरान कथित तौर पर 'दुश्मनी को बढ़ावा देने' के आरोप में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 ए के तहत दर्ज मामला रद्द किया।
जस्टिस बिभास रंजन डे की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष अदालत के समक्ष ऐसी कोई सामग्री पेश नहीं कर सका, जो आईपीसी की धारा 153ए के तहत किसी भी अपराध को आकर्षित करती हो। इसलिए मामले में आगे बढ़ने से "अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग" होगा और "न्याय के उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी"।
मूलतः मामले में एफआईआर दिसंबर 2016 में चौधरी, मेहता और मुखर्जी के खिलाफ चिरंजीत दास द्वारा दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने 13 और 14 दिसंबर को हावड़ा के धूलागढ़ में हुई 'अशांति' को 'सांप्रदायिक' कोण दे दिया। 2016 में उनके कवरेज (ज़ी न्यूज़ चैनल/प्राइमटाइम शो डीएनए पर) के परिणामस्वरूप क्षेत्र में तनाव पैदा हुआ, जिससे 'शत्रुता को बढ़ावा' मिला।
तीनों ने मामले में आपराधिक कार्यवाही को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया। इससे पहले जनवरी 2017 में हाईकोर्ट ने मामले की कार्यवाही पर रोक लगा दी।
अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर में धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वाला कुछ भी नहीं है, जैसा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए के तहत अपराध माना जाता है।
यह प्रस्तुत किया गया कि इस मामले में कथित घटना 13 और 14 दिसंबर, 2016 को दो समुदायों के बीच हुई और एफआईआर के अनुसार याचिकाकर्ताओं ने ज़ी न्यूज़ से आधिकारिक तौर पर जुड़े होने के कारण समाचार को कवर करने के लिए घटनास्थल का दौरा किया। हालांकि, जैसा कि आरोप लगाया गया कि लिखित शिकायत दर्ज नहीं की गई। 16 दिसंबर को ज़ी न्यूज़ के दौरे के बाद किसी भी अप्रिय घटना का खुलासा करें। यह भी तर्क दिया गया कि 'अशांति' की खबर को विभिन्न मीडिया ने कवर किया, लेकिन केवल ज़ी न्यूज़ के अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही शुरू की गई।
दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि ज़ी न्यूज़ आमतौर पर विशेष राजनीतिक दल को संरक्षण देता है और याचिकाकर्ताओं की ओर से मामले के जिन तथ्यों पर भरोसा किया गया, वे हमारे तथ्यों के समान नहीं हैं।
दोनों पक्षों के वकीलों को सुनने और केस डायरी का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के बाद अदालत ने पाया कि जांच अधिकारी 51 दिनों की अवधि के भीतर केवल दो व्यक्तियों के बयान दर्ज करने में सफल रहे और उन दोनों गवाहों में से कोई भी एक भी शब्द नहीं बोल सका। आईपीसी की धारा 153ए के तहत प्रावधान को आकर्षित करने के लिए दो अलग-अलग समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने का इरादा है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि एफआईआर के अनुसार, 16 दिसंबर 2016 के बाद जब याचिकाकर्ताओं ने घटनास्थल का दौरा किया तो कोई भी अप्रिय घटना नहीं हुई थी। इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष अव्यवस्था पैदा करने या लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का इरादा दिखाने वाला कोई दस्तावेज पेश नहीं कर सका।
इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मामले में कार्यवाही रद्द करने के अलावा अदालत के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। परिणामस्वरूप, कार्यवाही रद्द कर दी गई।
केस टाइटल- पूजा मेहता और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य। [सीआरआर 85/2017]
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