'सख्त प्रावधान के बावजूद, NDPS के मामले बढ़ रहे हैं' : उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा 'नो टॉलरेंस' दृष्टिकोण अपनाना ज़रूरी
LiveLaw News Network
24 Aug 2020 7:15 PM IST
उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा है कि NDPS के मामलों को हमेशा 'नो टॉलरेंस' के कड़े रुख के साथ निपटाया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति एस के पाणिग्रही ने समानता के आधार पर एक अभियुक्त को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की है। न्यायाधीश ने कहा कि उनको ''नो-टॉलरेंस एप्रोच'' से इसलिए जबरन विचलित होना पड़ रहा है क्योंकि इस मामले में सह-अभियुक्त को पहले ही जमानत दी जा चुकी है,जबकि उसका अपराध याचिकाकर्ता की तुलना में ज्यादा गंभीर है।
न्यायाधीश ने कहा कि सख्त प्रावधानों के बावजूद, देश में एनडीपीएस अधिनियम के तहत दर्ज अपराध दर पिछले दस वर्षों के दौरान काफी अधिक बढ़ गई है।
जमानत अर्जी का निस्तारण करते हुए पीठ ने अपने आदेश की शुरूआत में डॉ ओचे ओटर्कपा का निम्नलिखित उद्धरण भी दिया है-
''नशा एक अभिशाप की तरह है और जब तक यह अभिशाप खत्म नहीं हो जाता है, तब तक इसका शिकार एक बंधन की जकड़न में रहता है।'
अदालत ने कहा कि-
मादक पदार्थों की स्मगलिंग और तस्करी ने इसे सामाजिक बीमारियों की मेजबानी से जोड़ दिया है। जिसमें अपराध में शामिल होना, अस्थिरता और परिवार,रिश्तेदार व पड़ोसियों से बनने वाले संबंधों में आने वाली गिरावट आदि शामिल हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके परिणामस्वरूप युवाओं में बड़े पैमाने पर मादक पदार्थों का सेवन किया जा रहा है। संसद ने इस उद्देश्य के साथ एनडीपीएस अधिनियम पारित किया है ताकि इसके निवारक प्रभावों को और अधिक कठोर बनाकर इस खतरे को खत्म किया जा सकें और दोषी को उचित रूप से दंडित किया जा सके। उक्त अधिनियम उत्पादन, तस्करी और उपयोग के अपराधीकरण द्वारा मादक पदार्थ की मांग और आपूर्ति दोनों को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। यह एक्ट चिकित्सा या वैज्ञानिक उद्देश्यों को छोड़कर मादक दवाओं और नशीले पदार्थों के निर्माण, उत्पादन, कब्जे में रखने, खपत, बिक्री, खरीद, व्यापार, उपयोग, आयात या निर्यात को भी प्रतिबंधित करता है।
न्यायपालिका को भी कानून का सख्ती से पालन करने की जिम्मेदारी से दी गई है ताकि ड्रग्स की तस्करी करने वालों को सजा मिल सकें और बढ़ती ट्रैफिकिंग पर लगाम लगाई जा सकें। हाल ही के वर्षों में भौगोलिक सीमाओं को पार करते हुए स्मगलिंग और तस्करी के मामले बढ़े हैं। वर्तमान मामला इस खतरनाक प्रवृत्ति के बारे चेतावनी देता है।
अदालत ने कहा कि नशीली दवाओं की लागत बहुत अधिक और बहुआयामी है,जो देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए गंभीर खतरा है। इसलिए नशीली दवाओं के दुरूपयोग के मामलों से सख्ती से व ''हार्ड आॅन क्राइम'' रवैये के जरिए निपटा जाना आवश्यक है।
पीठ ने कहा कि-
ड्रग की लत दूरगामी परिणाम वाली एक जटिल बीमारी है। वह लोग इसके बारे में अच्छे से समझते हैं जो नशीली दवाओं के आदी व्यक्तियों को जानते हैं, उनके साथ काम करते हैं और उनका सहयोग करते हैं। नशीली दवाओं के सांस्कृतिक और सामाजिक कारकों के कारण परिवार पीड़ित होते हैं- जिसमें रोग प्रक्रिया की अपनी समझ और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के कारण इसका सेवन करने वाले का व्यवहार, पारिवारिक संसाधनों को खत्म करना, जिम्मेदारियों से बचना, बीमारी, दुविधापूर्ण रिश्ते, पारस्परिक पारिवारिक रिश्तों की विकृति, हिंसा और मृत्यु आदि ऐसे तथ्य शामिल हैं जो नशीली दवाओं के दुरुपयोग के परिणाम के रूप में सामने आते हैं। नशीली दवाओं की लागत बहुत अधिक और बहुआयामी है जो देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए गंभीर खतरा है। इसलिए नशीली दवाओं के दुरुपयोग के मामलों से सख्ती से व ''हार्ड आॅन क्राइम'' रवैये के जरिए निपटा जाना आवश्यक है।
अदालत ने यह भी कहा कि एकसमान नमूनाकरण प्रक्रियाएं नहीं अपनाई जाती है। जिस कारण ड्रग के मामलों में दी जाने वाली सजा में भी भिन्नता होती है, विशेष रूप से कोडीन फॉस्फेट युक्त कफ सिरप जैसी औषधीय दवाओं के मामलों में।
न्यायाधीश ने जमानत अर्जी का निस्तारण करते हुए कहा कि-
एनडीपीएस अधिनियम के सख्त प्रावधानों को निवारक माना जाता है, परंतु इन प्रावधानों के बावजूद भी सजा दर में कुछ ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है। सख्त प्रावधानों के बावजूद, पिछले दस वर्षों के दौरान देश में एनडीपीएस अधिनियम के तहत दर्ज अपराधों की दर में अधिक वृद्धि हुई है। यह भी समान रूप से परेशान करने वाली बात है कि इस तरह के मामलों में असमान सजा का प्रावधान है जो कानून के तहत निर्धारित श्रेणीबद्ध दंड की धारणा के बिल्कुल विपरीत है, क्योंकि ड्रग की एक समान मात्रा के मामलों में कई बार अलग-अलग सजा दी जाती है।
देश में नशीली दवाओं के दुरुपयोग के मामलों के संबंध में, कानून के आवेदन की इस तरह की अस्पष्टता अभी भी बनी हुई है। एक नकारात्मक रूप से परिभाषित श्रेणी के रूप में, मध्यवर्ती मात्रा के मामलों में असमान सजा दी जाती हैं। इसका एक कारण सजा के दिशा-निर्देशों की कमी के साथ-साथ न्यायाधीशों के पास उपलब्ध दंड की विस्तृत श्रृंखला भी है। इस तरह की विसंगतियां समस्या पैदा करती हैं और इस तरह के अपराधों में सजा की दर को प्रभावित करती है।
केस का नाम- बिकाश दुरिया बनाम उड़ीसा राज्य
केस नंबर-बीएलएपीएल नंबर 2464/2020
कोरम-जस्टिस एस के पाणिग्रही