सीबीआई कोर्ट ने डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को रणजीत सिंह हत्याकांड में दोषी ठहराया
LiveLaw News Network
8 Oct 2021 12:10 PM IST
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को सीबीआई कोर्ट ने रणजीत सिंह हत्याकांड में दोषी करार दिया है। स्पेशल सीबीआई कोर्ट के जज सुशील गर्ग ने उसे और अन्य को दोषी ठहराया। सजा की मात्रा के मुद्दे पर सुनवाई 12 अक्टूबर को होगी।
उल्लेखनीय है कि गुरमीत राम रहीम पहले से ही बलात्कार के अपराध में सजा काट रहा है। अब उसे अपने शिष्य रणजीत सिंह की हत्या का दोषी ठहराया गया है। उसके साथ ही 4 अन्य लोगों को भी हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया है। गौरतलब है कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार को रणजीत सिंह के बेटे द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें विशेष सीबीआई जज, पंचकूला के समक्ष लंबित राम रहीम सिंह के खिलाफ हत्या के मुकदमे को स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।
मृतक रणजीत सिंह के बेटे ने मामले को पंजाब, हरियाणा या चंडीगढ़ में किसी अन्य सीबीआई अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की थी। उसकी दलील थी कि सुनवाई करने रहे पीठासीन जज को आरोपी ने सीबीआई के लोक अभियोजक के माध्यम से अनुचित रूप से प्रभावित किया है।
हालांकि, उनकी याचिका को खारिज करते हुए, जस्टिस अवनीश झिंगन की पीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ता की आशंकाएं उचित नहीं हैं, बल्कि अनुमानों पर आधारित हैं। याचिका के खारिज होने से सीबीआई अदालत को फैसला सुनाने का रास्ता साफ हो गया था।
इससे पहले विशेष सीबीआई जज, पंचकूला, सुशील कुमार गर्ग 26 अगस्त को फैसला सुनाने के लिए तैयार थे, हालांकि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान की पीठ ने अदालत को ऐसा करने से रोक दिया था।
स्थानांतरण याचिका को खारिज करते हुए और यह देखते हुए कि मामले की सुनवाई निर्णय की घोषणा के चरण में है, न्यायालय ने कहा, " याचिकाकर्ता को स्थानांतरण याचिका की आड़ में अपनी पसंद की पीठ रखने या अपनी इच्छा के अनुसार मुकदमे का परिणाम प्राप्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। तकनीकी प्रगति और सोशल मीडिया की सक्रियता के साथ, ऐसे वादियों द्वारा लगाए गए आरोपों की बहुत सावधानी से जांच की जानी चाहिए। आशंकित वादी के कहने पर मुकदमे का स्थानांतरण जज को डराने और न्याय के निष्पक्ष प्रशासन में हस्तक्षेप के बराबर होगा।"
कोर्ट के समक्ष याचिका
दिवंगत रणजीत सिंह के पुत्र जगसीर सिंह ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि सुनवाई कर रहे पीठासीन न्यायाधीश प्रतिवादी संख्या 2 (सीबीआई के लोक अभियोजक) के माध्यम से अभियुक्तों द्वारा अनुचित रूप से प्रभावित हैं।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हालांकि अभियोजक सीधे मामले से जुड़ा नहीं था, लेकिन वह मुकदमे में हस्तक्षेप कर रहा था और अनुचित रुचि ले रहा था और पीठासीन अधिकारी पर अनुचित प्रभाव डाल रहा था।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायालय का विचार था कि यदि निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है तो निचली अदालत से मुकदमे को स्थानांतरित करने के लिए सीआरपीसी की धारा 407(1) के तहत हाईकोर्ट की शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि, न्यायालय ने कहा यह स्पष्ट है कि केवल आशंका के आधार पर ट्रायल स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।
इसके अलावा, इस बात पर जोर देते हुए कि मुकदमे के हस्तांतरण के लिए सीधे-सीधे फॉर्मूला नहीं हो सकता है, अदालत ने दोहराया कि आशंका उचित होनी चाहिए और काल्पनिक नहीं होनी चाहिए और स्थानांतरण की शक्ति का संयम से प्रयोग किया जाना चाहिए।
मुकदमे के दौरान लोक अभियोजक (मौजूदा मामले से संबंधित नहीं) की उपस्थिति के आरोपों के बारे में अदालत ने कहा कि सीबीआई द्वारा याचिकाओं में इसकी विधिवत व्याख्या की गई थी।
अदालत का विचार था कि चूंकि वह पंचकुला में सीबीआई कोर्ट में एक नियमित लोक अभियोजक हैं और इसलिए भी कि वरिष्ठ लोक अभियोजक और एक विशेष लोक अभियोजक को विशेष रूप से इस मामले में सीबीआई का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त किया गया है, इसलिए, अदालत ने कहा कि एक नामित लोक अभियोजक होने के नाते अदालत में उसकी उपस्थिति स्पष्ट है और अदालत में नियमित होने के कारण वह अपने सहयोगियों को सहायता दे सकता है।