'रेप के अपराध में पेनिट्रेशन की डेप्थ मायने नहीं रखती': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने POCSO आरोपी को जमानत देने से इनकार किया
LiveLaw News Network
12 April 2022 9:54 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने पिछले हफ्ते 8 साल की बच्ची से बलात्कार के आरोपी-व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि बलात्कार के अपराध में पेनिट्रेशन की डेप्थ मायने नहीं रखती है।
जस्टिस संजय कुमार सिंह की खंडपीठ ने आगे कहा कि हमारे देश में छोटी लड़कियों की पूजा करता है, लेकिन साथ ही देश में पीडोफिलिया के मामले बढ़ रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले साल अगस्त में इस बात पर जोर दिया था कि भारत छोटी लड़कियों की पूजा करता है, लेकिन साथ ही देश में पीडोफिलिया के मामले बढ़ रहे हैं।
न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की खंडपीठ ने 13 साल की बच्ची से बलात्कार के आरोप-व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए ऐसा कहा।
क्या है पूरा मामला?
कोर्ट आईपीसी की धारा 354, 376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5/6 के तहत दर्ज एक चंद्र प्रकाश शर्मा की जमानत याचिका से निपट रहा था क्योंकि उस पर 16 जुलाई, 2021 को एक 8 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था।
कथित घटना के बाद लड़की ने घर आकर पूरी घटना अपनी मां को बताई और उसके बाद उसी दिन उसका चिकित्सकीय परीक्षण किया गया जिसमें डॉक्टर ने कहा कि बच्ची के साथ यौन हिंसा किया गया है।
पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत अपने बयानों में बयान दिया है। प्रथम सूचना रिपोर्ट में उल्लिखित अभियोजन मामले को दोहराते हुए आवेदक के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाया।
दूसरी ओर, आरोपी के वकील ने अपने बचाव में कहा कि आवेदक को इस मामले में झूठा फंसाया गया है और पीड़ित के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं पाया गया है और उसकी चिकित्सा जांच के समय कोई ताजा चोट या रक्तस्राव नहीं देखा गया है।
वकील द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में यह नहीं कहा कि आवेदक ने उसके साथ बलात्कार किया है, इसलिए उसके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है।
अंत में, यह प्रस्तुत किया गया कि आवेदक 17 जुलाई, 2021 से जेल में बंद है, और यदि उसे जमानत पर रिहा किया जाता है, तो वह जमानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं करेगा और मुकदमे में सहयोग करेगा।
न्यायालय की टिप्पणियां
शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि बलात्कार एक जघन्य अपराध है और अपराध की पीड़िता शर्मिंदगी, घृणा, अवसाद, अपराधबोध और यहां तक कि आत्महत्या की प्रवृत्ति के मनोवैज्ञानिक प्रभावों से ग्रस्त है।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की,
"बलात्कार केवल पीड़िता के खिलाफ अपराध ही नहीं है, यह समाज के खिलाफ भी अपराध है और मौलिक अधिकारों यानी मुख्य रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन का अधिकार का भी उल्लंघन है। ऐसी स्थिति में, अगर कोर्ट से सही समय पर सही फैसला नहीं लिया गया तो पीड़िता/आम आदमी का न्यायिक व्यवस्था से भरोसा उठ जाएगा।"
इस पृष्ठभूमि में, भारतीय दंड संहिता की धारा 376ए-बी के तहत प्रगणित प्रावधान को ध्यान में रखते हुए कि यदि बारह वर्ष से कम उम्र की छोटी लड़की पर एक पुरुष द्वारा बलात्कार किया जाता है, तो दोषी व्यक्ति को एक अवधि के लिए कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा जो बीस साल से कम नहीं होगा जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। इसका अर्थ है कि दोषी अपना शेष जीवन जेल में बिताएगा।
इसके साथ ही अदालत ने वर्तमान मामले में आरोपी को जमानत देने से इनकार किया।
केस का शीर्षक - चंद्र प्रकाश शर्मा बनाम यूपी राज्य एंड अन्य
केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ 172
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