जीएसटी एक्ट के तहत कार्यवाही से पहले विभाग को मृतक के कानूनी प्रतिनिधि को नोटिस देना आवश्यक: इलाहाबाद हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
24 Nov 2023 4:18 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि वस्तु एवं सेवा कर विभाग को केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के तहत मृतक के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले मृतक के कानूनी प्रतिनिधि को नोटिस देना आवश्यक है।
याचिकाकर्ता का पति फर्म का एकमात्र मालिक था और कंसल्टेंट के रूप में सेवाएं प्रदान करने में लगा हुआ था। याचिकाकर्ता के पति के नाम पर वित्तीय वर्ष 2014-15 सेवा कर के लिए सीजीएसटी अधिनियम की धारा 142, 173, 174 के साथ पठित वित्त अधिनियम, 1994 की धारा 73(1) के प्रावधानों के तहत 8,97,716 रुपये की देनदारी लगाते हुए एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।
इसके बाद, जुर्माना आदेश पारित किया गया, जहां सीजीएसटी अधिनियम की धारा 142, 173, 174 सहपठित वित्त अधिनियम, 1994 की धारा 71(1)(सी) के तहत 10,000/- रुपये का अतिरिक्त जुर्माना लगाया गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि उनके पति की मौत की हकीकत विभाग को बता दी गई थी। हालांकि, विभाग उनके नाम पर आगे बढ़ता रहा। यह भी तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस और परिणामी आदेश कभी नहीं दिया गया। इसके अलावा, कार्यवाही को इस आधार पर चुनौती दी गई कि वित्तीय वर्ष 2014-15 के लिए कारण बताओ नोटिस संबंधित तिथि से पांच साल की अवधि के बाद जारी किया गया था। तदनुसार, कार्यवाही स्पष्ट रूप से अवैध थी और रद्द किये जाने योग्य थी।
आदेश का बचाव करते हुए विभाग के वकील ने तर्क दिया कि आदेश फर्म के नाम पर जारी किया गया था। हालांकि, यह स्वीकार किया गया कि इस तथ्य की जानकारी होने के बावजूद कि एकमात्र मालिक की मृत्यु हो गई थी, फर्म के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही के संबंध में याचिकाकर्ता को कोई नोटिस नहीं दिया गया था।
चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ ने पाया कि जुर्माना आदेश में फर्म के एकमात्र मालिक की मृत्यु के तथ्य का उल्लेख किया गया था। आगे यह देखा गया कि आदेश में यह दर्ज किया गया है कि व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया गया है, लेकिन “न तो कोई अधिकृत प्रतिनिधि उपस्थित हुआ और न ही पार्टी से कोई कम्यूनिकेशन प्राप्त हुआ, भले ही विभाग द्वारा पंजीकृत पते और पंजीकृत ई-मेल पर संचार किया गया हो।”
कोर्ट ने कहा कि जीएसटी विभाग को मामले में आगे बढ़ने से पहले याचिकाकर्ता, जो मृतक का कानूनी प्रतिनिधि है, को नोटिस देना आवश्यक है। चूंकि ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं था कि मृत निर्धारिती के कानूनी प्रतिनिधि को नोटिस दिया गया था, अदालत ने केवल जुर्माना आदेश को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने सहायक आयुक्त, केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर, डिवीजन- I, नोएडा को याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर देने के बाद नए सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: श्रीमती ललिता सुब्रमण्यन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और 3 अन्य [रिट टैक्स नंबर 1137/2023]