दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश का मामला: हाईकोर्ट ने गुलफिशा फातिमा की याचिका पर ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

Shahadat

11 May 2022 6:10 AM GMT

  • दिल्ली दंगों की बड़ी साजिश का मामला: हाईकोर्ट ने गुलफिशा फातिमा की याचिका पर ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को गुलफिशा फातिमा द्वारा दायर अपील पर नोटिस जारी किया। इस अपील में ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है। ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और यूएपीए के तहत आरोपों को शामिल करते हुए 2020 के दिल्ली दंगों में बड़ी साजिश का आरोप लगाते हुए एक मामले के संबंध में फातिमा की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

    जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की खंडपीठ ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 14 जुलाई को सूचीबद्ध किया।

    गुलफिशा को 11 अप्रैल, 2020 को गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। फातिमा को दंगों से जुड़े एक अन्य मामले एफआईआर नंबर 50/2020 [पीएस जाफराबाद] में जमानत मिल चुकी है।

    फातिमा की ओर से पेश वकील ने अदालत को अवगत कराया कि अपीलकर्ता अब दो साल से अधिक समय से हिरासत में है।

    तदनुसार, बेंच ने कहा कि वह अपील पर सुनवाई करेगी और एफआईआर में फातिमा के खिलाफ आरोपों पर विचार करेगी।

    पीठ एफआईआर में सह-आरोपी उमर खालिद और शारजील इमाम द्वारा दायर इसी तरह की अपील पर भी सुनवाई कर रही है, जो इस महीने सुनवाई के लिए पोस्ट की गई हैं।

    गुलफिशा को जमानत देने से इनकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह मानने के लिए उचित आधार है कि उसके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही है। इसलिए, यूएपीए की धारा 43डी के प्रतिबंध जमानत देने के लिए लागू होते है, जिसमें सीआरपीसी की धारा 437 में निहित प्रतिबंध भी शामिल है।

    तदनुसार, जमानत के सीमित उद्देश्य के लिए चार्जशीट और साथ के दस्तावेजों को देखते हुए अदालत की राय थी कि आरोपी तस्लीम अहमद और गुलफिशा फातिमा के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही है।

    अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि जब सावधानीपूर्वक दंगों का षडयंत्र रचा गया, संपत्तियों को नष्ट किया गया, आवश्यक सेवाओं में व्यवधान, पेट्रोल बम, लाठी, पत्थर आदि का उपयोग किया गया था, तो यह यूएपीएप की धारा 15(1)(ए)(i), (ii) और (iii) के तहत आएगा।

    अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि दंगों के दौरान कुल 53 लोग मारे गए। पहले चरण के दंगों में 142 लोग घायल हुए और दूसरे चरण में अन्य 608 घायल हुए।

    अभियोजन पक्ष का मामला यह भी है कि 25 मस्जिदों के करीब रणनीतिक विरोध स्थलों को चुनते हुए 2020 के धरना-प्रदर्शन की सावधानीपूर्वक योजना बनाई गई। इसलिए यह प्रस्तुत किया गया कि ये स्थल धार्मिक महत्व के स्थान है लेकिन कथित रूप से सांप्रदायिक विरोध को वैध रूप देने के लिए जानबूझकर इन्हें धर्मनिरपेक्ष नाम दिए गए थे।

    अभियोजन पक्ष ने 20 दिसंबर, 2019 की बैठक का हवाला दिया। इस बैठक में उमर खालिद ने हर्ष मंदर, यूनाइटेड अगेंस्ट हेट, स्वतंत्र नागरिक संगठन आदि के सदस्यों के साथ भाग लिया था। यह माना गया कि इस बैठक की विरोध के क्षेत्रों के लिए रणनीतियां तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका थी।

    यह भी तर्क दिया गया कि विरोध का मुद्दा सीएए या एनआरसी नहीं था बल्कि सरकार को शर्मिंदा करने और ऐसे कदम उठाने का था कि यह मामला अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में उजागर हो जाए।

    अभियोजन पक्ष के तर्कों का मुख्य जोर यह था कि डीपीएसजी ग्रुप अत्यधिक संवेदनशील ग्रुप था। इसमें हर छोटे मैसेज पर निजी तौर पर विचार-विमर्श किया जाता था और फिर अन्य मेंबर्स को भेजा जाता था। इस ग्रुप में लिया गया हर निर्णय सोच-समझकर लिया गया था।

    यह आरोप लगाया गया कि जबकि अभियोजन पक्ष का मामला यह नहीं है कि साजिश में सामने आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आरोपी बनाया जाना चाहिए और यह कि केवल एक ग्रुप का मेंबर होने से कोई आरोपी नहीं बन जाता। हालांकि, उन्होंने कहा कि अगर किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सबूत है तो उसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई का पालन करना होगा।

    इस पृष्ठभूमि में यह तर्क दिया गया कि 2020 के उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों को करने में 'षडयंत्र की साजिश' थी, जिसके पीछे यह विचार था कि व्यवस्था को पूरी तरह से पंगु बना दिया जाए।

    एफआईआर में यूएपीए की धारा 13, 16, 17, 18, आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम, 1984 की धारा 3 और 4 सहित कड़े आरोप शामिल हैं। आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत उल्लिखित विभिन्न अपराधों के तहत भी आरोप लगाए गए हैं।

    पिछले साल सितंबर में पिंजरा तोड़ के सदस्यों और जेएनयू की छात्राओं देवांगना कलिता और नताशा नरवाल, जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा और छात्र कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा के खिलाफ मुख्य आरोप पत्र दायर किया गया था।

    आरोप पत्र में कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां, जामिया समन्वय समिति के सदस्य सफूरा जरगर, मीरान हैदर और शिफा-उर-रहमान, निलंबित आप पार्षद ताहिर हुसैन, उमर खालिद, शादाब अहमद, तस्लीम अहमद, सलीम मलिक, मोहम्मद सलीम खान और अतहर खान शामिल हैं।

    इसके बाद, नवंबर में जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद और जेएनयू के छात्र शारजील इमाम के खिलाफ फरवरी में पूर्वोत्तर दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा में कथित बड़ी साजिश से जुड़े एक मामले में एक पूरक आरोप पत्र दायर किया गया था।

    केस टाइटल: गुलफिशा फातिमा बनाम राज्य

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