दिल्ली दंगा- हेड कांस्टेबल रतन लाल हत्याकांड में हाईकोर्ट ने दो आरोपियों को जमानत दी, दो को जमानत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

14 Sep 2021 6:26 AM GMT

  • दिल्ली दंगा- हेड कांस्टेबल रतन लाल हत्याकांड में हाईकोर्ट ने दो आरोपियों को जमानत दी, दो को जमानत देने से इनकार किया

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या और पिछले साल दिल्ली में हुए दंगों के दौरान एक डीसीपी को सिर में चोट के मामले में शाहनवाज और मोहम्मद अय्यूब को जमानत दे दी। (एफआईआर 60/2020 पीएस दयालपुर)। हालांकि कोर्ट ने मामले में सादिक और इरशाद अली की जमानत याचिका खारिज कर दी है।

    ज‌स्टिस सुब्रमनियम प्रसाद में मामले में पिछले महीने आदेश सुरक्षित रखा था, जिसे मंगलवार को पारित किया गया। अदालत ने अभियोजन पक्ष की ओर से पेश हुए एएसजी एसवी राजू और विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद के साथ आरोप‌ियों की ओर से पेश हुए विभिन्न वकीलों को विस्तार से सुना था।

    विभिन्न आरोप‌ियों की ओर से दाखिल 11 जमानत आवेदनों में आदेश सुरक्षित रखा गया था, वहीं न्यायालय ने उनमें से चार में आदेश पारित किया। कोर्ट ने पांच आरोपियों, मोहम्‍मद आरिफ, शादाब अहमद, फुरकान, सुवलीन और तबस्सुम को इस महीने की शुरुआत में जमानत दी थी।

    एफआईएफ 60/2020 (पीएस दयालपुर) के बारे में

    एक कांस्टेबल के बयान पर एफआईआर 60/2020 दर्ज की गई थी, जिसमें कहा गया था कि पिछले साल 24 फरवरी को वह चांद बाग इलाके में अन्य स्टाफ सदस्यों के साथ ड्यूटी पर था।

    बताया गया कि दोपहर एक बजे के करीब प्रदर्शनकारी डंडा, लाठी, बेसबॉल बैट, लोहे की छड़ और पत्थर लेकर मुख्य वजीराबाद रोड पर जमा होने लगे। वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें हटने का निर्देश दिया लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया और वे हिंसक हो गए।

    आगे कहा गया कि प्रदर्शनकारियों को बार-बार चेतावनी देने के बाद भीड़ को तितर-बितर करने के लिए हल्का बल प्रयोग करना पड़ा और गैस के गोले दागे गए। कांस्टेबल के मुताबिक, हिंसक प्रदर्शनकारियों ने लोगों के साथ-साथ पुलिस कर्मियों को भी पीटना शुरू कर दिया, जिससे उन्हें खुद अपनी दाहिनी कोहनी और हाथ में चोट लग गई।

    उन्होंने यह भी कहा कि प्रदर्शनकारियों ने डीसीपी शाहदरा, एसीपी गोकुलपुरी और हेड कांस्टेबल रतन लाल पर हमला किया, जिससे वे सड़क पर गिर गए और गंभीर रूप से घायल हो गए। सभी घायलों को अस्पताल ले जाया गया, जहां यह पाया गया कि एचसी रतन लाल की चोटों के कारण मृत्यु हो चुकी थी और डीसीपी शाहदरा बेहोश थे और उन्हें सिर में चोटें आई थीं।

    सह अभियुक्तों को जमानत देते समय न्यायालय की टिप्पणियां

    मोहम्मद आरिफ के मामले में कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 149, सहप‌ाठित धारा 302 की प्रयोज्यता अस्पष्ट साक्ष्य और सामान्य आरोपों के आधार पर नहीं हो सकती है।

    जब ज़मानत देने या अस्वीकार करने के चरण में भीड़ शामिल होती है तो कोर्ट को इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले हिचकिचाना चाहिए कि गैर-कानूनी सभा का प्रत्येक सदस्य गैर-कानूनी सामान्य उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक समान आशय रखता है।

    कोर्ट ने कहा, "जमानत न्यायशास्त्र एक अभियुक्त की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के बीच की खाई को पाटने का प्रयास करता है। यह किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने और यह सुनिश्चित करने के बीच जटिल संतुलन है कि यह स्वतंत्रता जनता के बीच अशांति का कारण नहीं बनती है। यह हमारे संविधान में निहित सिद्धांतों के खिलाफ है कि एक आरोपी को मुकदमे के लंबित रहने के दौरान सलाखों के पीछे रहने की अनुमति दी जाए। इसलिए, अदालत को जमानत देने के लिए एक आवेदन पर निर्णय लेते समय इस जटिल रास्ते को बहुत सावधानी से पार करना चाहिए और इस प्रकार एक तर्कसंगत आदेश पर पहुंचने से पहले कई कारकों को ध्यान में रखा जाता है, जिससे जमानत दी जाती है या अस्वीकार की जाती है।"

    शादाब अहमद और तबस्सुम को जमानत देते हुए, कोर्ट का विचार था कि विरोध करने के एकमात्र कार्य को हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, जो इस अधिकार का प्रयोग कर रहे हैं।

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