[दिल्ली दंगे] गुलफिशा फातिमा ने तिहाड़ जेल स्टाफ पर उत्पीड़न का आरोप लगाया: दिल्ली अदालत ने अधीक्षक को जरूरत पड़ने पर स्टाफ बदलने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

7 Nov 2020 5:55 AM GMT

  • [दिल्ली दंगे] गुलफिशा फातिमा ने तिहाड़ जेल स्टाफ पर उत्पीड़न का आरोप लगाया: दिल्ली अदालत ने अधीक्षक को जरूरत पड़ने पर स्टाफ बदलने का निर्देश दिया

    कड़कड़डूमा कोर्ट (दिल्ली) ने गुरुवार (05 नवंबर) को तिहाड़ जेल अधीक्षक को निर्देश दिया कि जरूरत पड़ने पर स्टाफ में बदलाव किया जाए, जिसके खिलाफ आरोपी/आवेदक और छात्र कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा ने मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था।

    कड़कड़डूमा कोर्ट कोर्ट के अपर सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने कहा,

    "मामले के तथ्यों पर मैं इसे उचित समझता हूँ कि आरोप के सही होने/आरोप के गलत होने में बिना जाए जेल अधीक्षक निर्देश दें और सुनिश्चित करें कि यदि जरूरत हो, आवेदक का वार्ड बदलें या किसी टकराव से बचने के लिए स्टाफ की ड्यूटी बदलें।

    आरोप

    आरोपी/आवेदक गुलफिशा खातून के वकील द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि आरोपी 11-04-2020 से न्यायिक हिरासत में है और उसे जेल अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा । आरोप था कि जेल स्टाफ द्वारा उसके लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया, जिसकी वजह से उसे मानसिक और भावनात्मक उत्पीड़न हुआ।

    इस प्रकार प्रार्थना की गई कि जेल अधिकारियों को निर्देशित किया जाए कि वे आरोपियों को परेशान न करें और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।

    तिहाड़ जेल के जेल अधीक्षक ने दर्ज कराई स्टेटस रिपोर्ट

    इस संदर्भ में तिहाड़ जेल के जेल अधीक्षक द्वारा स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर कहा गया था कि जेल नियमों के अनुसार समय-समय पर आवेदक के विभिन्न अनुरोधों पर विचार किया गया।

    रिपोर्ट में यह कहा गया कि

    "दूध के ब्रांड के परिवर्तन, कानूनी साक्षात्कार के लिए हैडफोन, अध्ययन कक्ष आदि जैसे विभिन्न अनुरोध किए गए और उन पर विधिवत विचार किया गया ।

    प्रार्थी ने जेल कर्मचारियों द्वारा किए गए भेदभाव की शिकायत की थी और जांच करने के बाद पता चला कि नियमानुसार शाम साढ़े छह बजे के बाद जेल वार्ड के अंदर जाने के मामले को लेकर आवेदक और जेल कर्मचारियों के बीच बहस हुई थी।

    रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि आवेदन में उल्लेखित कोई अपमानजनक शब्द नहीं किए गए और वहां मौजूद दो अन्य कैदियों ने इस संबंध में अपने बयान दिए हैं ।

    रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि 15-10-2020 तक 48 मुस्लिम महिला कैदी हैं और किसी अन्य कैदी ने कभी इस तरह की शिकायत नहीं की है।

    विशेष रूप से, रिपोर्ट में कहा गया है,

    "आवेदक/महिला कैदी भी जेल कर्मचारियों पर हावी होने और जेल में उपद्रव पैदा करने की कोशिश कर रही है। उसका व्यवहार आक्रामक और परेशानी भरा है । स्टाफ को भी निर्देश दिया गया है कि वे विनम्रता से व्यवहार करें और अन्य कैदियों से बहस न करें। आवेदक को उसके व्यवहार को ठीक करने के लिए सुधारात्मक दंड भी दिया गया है ।

    कोर्ट का आदेश

    आवेदन, रिपोर्ट और दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि जेल कर्मचारियों और एक आरोपी/आवेदक के बीच कुछ बहस हुई थी ।

    "यह जेल कर्मचारियों के संस्करण बनाम आवेदक के संस्करण के बारे में है । संबंधित जेल अधीक्षक ने जांच कराई है।

    जैसा कि पहले कहा गया है,

    "मैं यह सुनिश्चित करने के लिए जेल अधीक्षक को निर्देश देने के लिए उपयुक्त समझे कि यदि जरूरत हो, तो आवेदक के वार्ड को बदलने के लिए या ड्यूटी या अन्य कदम है कि वह किसी भी टकराव से बचने के लिए फिट समझे पर कर्मचारियों को बदलने के लिए."मामले के तथ्यों पर मैं इसे उचित समझता हूँ कि आरोप के सही होने/आरोप के गलत होने में बिना जाए जेल अधीक्षक निर्देश दें और सुनिश्चित करें कि यदि जरूरत हो, आवेदक का वार्ड बदलें या किसी टकराव से बचने के लिए स्टाफ की ड्यूटी बदलें।

    उल्लेखनीय है कि छात्र कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा को कड़े गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया है।

    सितंबर में गुलफिशा फातिमा ने दिल्ली की एक अदालत के सामने आरोप लगाया था कि उन्हें जेल अधिकारियों द्वारा सांप्रदायिक कलंक और मानसिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ रहा है।

    फातिमा ने आरोप लगाया था कि जेल में स्टाफ द्वारा उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है।

    फातिमा का आरोप था कि

    "मुझे जेल में समस्या है। जब से मुझे यहां लाया गया है मैं जेल स्टाफ द्वारा लगातार भेदभाव का सामना कर रही हूं । उन्होंने मुझे एक शिक्षित आतंकवादी कहा और मुझ पर सांप्रदायिक कलंक लगा रहे हैं। मुझे यहां मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने आरोप लगाया, अगर मैं खुद को चोट पहुंचाती हूं तो इसके लिए केवल जेल अधिकारी ही जिम्मेदार होंगे।

    सोमवार को कोर्ट ने फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े एक मामले में वैधानिक जमानत की मांग करने वाली उसकी अर्जी खारिज कर दी थी।

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