(दिल्ली दंगे) दिल्ली हाईकोर्ट ने 'जी न्यूज' से सोर्स पूछा, "बताएं कहां से अभियुक्त का कथित इकबालिया बयान प्राप्त हुआ"

LiveLaw News Network

16 Oct 2020 9:19 AM GMT

  • (दिल्ली दंगे) दिल्ली हाईकोर्ट ने जी न्यूज से सोर्स पूछा, बताएं कहां से अभियुक्त का कथित इकबालिया बयान प्राप्त हुआ

    दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार (15 अक्टूबर) को एक टीवी न्यूज चैनल 'जी न्यूज' को निर्देश दिया है कि वह अगली सुनवाई (यानी, 19 अक्टूबर) तक एक हलफनामा दायर करके स्पष्ट रूप से बताएं कि उनको कहां से याचिकाकर्ता (आसिफ इकबाल तन्हा) का कथित इकबालिया बयान प्राप्त हुआ था।

    न्यायमूर्ति विभु बाखरू की खंडपीठ ने यह निर्देश उस समय दिया है, जब प्रतिवादी नंबर 1 (डीसीपी स्पेशल सेल, नई दिल्ली) ने अदालत ने सूचित किया कि जांच में शामिल किसी भी पुलिसकर्मी ने जांच का कोई भी विवरण लीक नहीं किया है।

    अदालत के समक्ष यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता के कथित स्वीकारोक्ति बयान के सार्वजनिक होने से दिल्ली पुलिस भी दुखी थी, क्योंकि इसने जांच में बाधा डाली है। यह भी बताया गया कि इस मामले में सतर्कता जांच शुरू की गई है।

    गौरतलब है कि मई 2020 में जामिया मिलिया इस्लामिया के 24 वर्षीय छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उसे फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के सिलसिले में ''गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था।

    एक अधिकारी ने कहा, ''वह उमर खालिद, शारजील इमाम, मीरन हैदर और सफूर जरगर, का करीबी सहयोगी था। जो राष्ट्रीय राजधानी में एंटी-सीएए विरोध प्रदर्शन और उसके बाद हुए दंगों के प्रमुख सदस्य थे।''

    याचिकाकर्ता की शिकायत (आसिफ इकबाल तन्हा) विशेष रूप से, याचिकाकर्ता इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिखाई देने वाली विभिन्न समाचार रिपोर्टों से व्यथित है। जिनमें बताया गया था कि याचिकाकर्ता ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में होने वाले सांप्रदायिक दंगों को आयोजित करने और उकसाने की बात कबूल की है।

    इसलिए, जामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा (मामले में याचिकाकर्ता) द्वारा एक याचिका दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है कि मीडिया हाउस और सोशल-मीडिया को निर्देश दिया जाए कि उनके मामले की जांच से जुड़ी संवेदनशील जानकारी (कथित तौर पर पुलिस द्वारा चैनलों को लीक की गई जानकारी) को हटाए। हाईकोर्ट के समक्ष यह भी तर्क दिया गया है कि उक्त जानकारी को लीक करने के पीछे मकसद यह है कि याचिकाकर्ता की निष्पक्ष ट्रायल के अधिकार को प्रभावित किया जा सकें।

    गौरतलब है कि सोमवार (24 अगस्त) को आसिफ इकबाल तन्हा (याचिकाकर्ता) की तरफ से वकील सिद्धार्थ अग्रवाल, सौजन्य शंकरन, अभिनव शेखरी, सिद्धार्थ सतीजा और निकिता खेतान पेश हुए थे और न्यायमूर्ति बाखरू की खंडपीठ के समक्ष कहा था कि यह याचिका

    ''ऑन-गोइंग क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन से संबंधित अत्यधिक संवेदनशील/ गोपनीय सूचनाओं को विभिन्न समाचार आउटलेट्स द्वारा प्रकाशित करने और प्रसारण के खिलाफ दायर की गई है। जहां समाचार आउटलेट्स ने याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए कथित बयान के आधार पर विभिन्न रिपोर्ट चलाई हैं।'' इन खुलासों का ''एकमात्र उद्देश्य याचिकाकर्ता के निष्पक्ष ट्रायल के अधिकारों के उल्लंघन करना प्रतीत हो रहा है।''

    याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में विशेष रूप से प्रार्थना की है कि प्रतिवादी नंबर 3 (जी न्यूज), 4 (ओपीइंडिया), 5 और 6 और विभिन्न अन्य मीडिया एजेंसियों को निर्देश दिया जाए कि वह प्रतिवादी नंबर 2 के अधिकारियों द्वारा लीक की गई संवेदनशील/गोपनीय जानकारियों को अपने चैनल की वेबसाइट से हटाएं।

    याचिकाकर्ता ने याचिका में आगे यह भी प्रार्थना की है कि प्रतिवादी नंबर 2 के उन अधिकारियों के कदाचार की जांच की जाए, जो प्रतिवादी नंबर 3 से लेकर 6 को जानकारी लीक करने के लिए जिम्मेदार हैं।

    याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष यह भी कहा है कि पुलिस अधिकारियों ने उन्हें कुछ महत्वपूर्ण कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया था और जब वह कस्टडी में था तो उस पर कुछ बयान भी देने के लिए दबाव बनाया था।

    याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि कथित इकबालिया बयान, जो रिपोर्ट में दिखाए गए है,वह स्वेच्छा से नहीं दिए गए थे। इसलिए वह बतौर सबूत स्वीकार्य नहीं हैं।

    देवांगना कालिता का मामला

    उल्लेखनीय रूप से, तन्हा के वकीलों ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि हाल ही में न्यायमूर्ति बाखरू की कोर्ट द्वारा पारित आदेश में, दिल्ली पुलिस को पिंजड़ा तोड़ कार्यकर्ता देवांगना कालिता (एक दंगे के मामले में गिरफ्तार) से संबंधित कोई भी बयान जारी करने से रोक दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि जब तक इस मामले में कोर्ट द्वारा आरोप तय करने या न करने के संबंध में कोई फैसला नहीं किया जाता है और मामले की ट्रायल शुरू नहीं होती है,तब तक कोई बयान जारी न किया जाए।

    इस संबंध में तन्हा के वकीलों ने तर्क दिया था कि ''प्रतिवादी जांच एजेंसी के ये गैरकानूनी कार्य, इस अदालत के एकल-न्यायाधीश पीठ के स्पष्ट निर्देशों को दरकिनार करने के एक शातिर प्रयास के अलावा कुछ भी नहीं हैं।''

    इस बात पर ध्यान दिया जा सकता है कि जुलाई 2020 में, दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को पिंजड़ा तोड़ की सदस्य देवांगना कालिता के खिलाफ कोई भी बयान जारी करने से रोक दिया था। कोर्ट ने साफ कहा था कि जब तक आरोप तय के संबंध में फैसला नहीं हो जाता है और मुकदमे की सुनवाई शुरू नहीं होती है,तब तक कोई बयान जारी न किया जाए।

    कालिता के खिलाफ ऐसे बयान देने से दिल्ली पुलिस को रोकते हुए न्यायमूर्ति विभु बाखरू की एकल पीठ ने इस बात पर भी प्रकाश डाला था कि दंगों के मामले निस्संदेह संवेदनशीन प्रकृति के होते हैं।

    यह आदेश पिंजड़ा तोड़ की सदस्य देवांगना कलिता द्वारा दायर आपराधिक रिट में सुनाया गया था, जिसमें मांग की गई थी कि जांच व मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से संबंधित किसी भी आरोप को मीडिया में लीक न किया जाए।

    15 अक्टूबर को कोर्ट की कार्यवाही

    लाइव लॉ से बात करते हुए, वकील सौजन्य शंकरन (आसिफ इकबाल तन्हा का प्रतिनिधित्व करते हुए) ने पुष्टि की है कि प्रतिवादी नंबर 3 (जी न्यूज) को गुरुवार (15 अक्टूबर) को नोटिस जारी किया गया है,जिसमें उनसे पूछा गया है कि वह आसिफ इकबाल तन्हा (याचिकाकर्ता) के ''इकबालिया बयान'' के स्रोत के बारे में अदालत को अवगत कराएं क्योंकि पुलिस ने इस बयान को लीक करने की बात से इनकार किया है। आशिफ को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में पकड़ा गया था।

    केरल हाईकोर्ट की नवीनतम टिप्पणी

    गौरतलब है कि केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार (15 अक्टूबर) को चेतावनी दी थी कि किसी भी जांच की पेंडेंसी के दौरान एकत्रित सामग्री को पब्लिक/ मीडिया को देने के सामान्य चलन के खिलाफ, ''इस अदालत द्वारा कड़े कदम उठाए जाएंगे।''

    न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि सनसनीखेज मामलों में जांच अधिकारी अभियुक्तों के इकबालिया बयान को लीक कर रहे हैं और मीडिया ऐसे बयानों का व्यापक प्रचार कर रहा है, विशेषकर सनसनीखेज मामलों में।

    इस तरह की प्रैक्टिस पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए बेंच ने कहा कि,''एक जांच अधिकारी जांच के दौरान एकत्रित किसी भी सामग्री को पब्लिक या मीडिया को नहीं बता सकता है।''

    इसके अलावा, बेंच ने सभी पत्रकारों और प्रिंटर और विजुअल मीडिया के एंकरों से अनुरोध किया है कि वे पुलिस हिरासत में रहते हुए आरोपी द्वारा दिए गए इकबालिया बयान के आधार पर समाचार पत्रों की हेडलाइन बनाने या न्यूज चैनलों में ब्रेकिंग न्यूज देने से पहले ''एवीडेंस एक्ट की धारा 24 को पढ़ लें।''

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