दिल्ली दंगा : कोर्ट ने छह लोगों को डकैती के आरोप से आरोपमुक्त किया, दंगा और गैरकानूनी रूप से जमा होने के आरोप बरकरार रखे

Sharafat

9 Aug 2022 4:25 PM GMT

  • दिल्ली दंगा : कोर्ट ने छह लोगों को डकैती के आरोप से आरोपमुक्त किया, दंगा और गैरकानूनी रूप से जमा होने के आरोप बरकरार रखे

    दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के दंगों के मामले में छह लोगों को डकैती के आरोपों से आरोपमुक्त मुक्त कर दिया, जबकि उनके खिलाफ दंगा करने और गैरकानूनी रूप से जमा होने (Unlawful Assembly) के अन्य आरोपों को बरकरार रखा।

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने आरोपी सुमित, नरेश, उदय सिंह, दर्शन, विनोद कुमार और देवराज को भारतीय दंड संहिता की धारा 436 के तहत आरोपों से भी आरोपमुक्त कर दिया। आईपीसी की धारा 436 के तहत घर को नष्ट करने के इरादे से आग या विस्फोटक पदार्थ द्वारा शरारत करने का अपराध आता है।

    न्यायाधीश ने आईपीसी की धारा 147 (दंगा करना), धारा 148 (घातक हथियार से लैस होकर दंगा करना), धारा 149 (गैरकानूनी रूप से जमा होकर प्रत्येक सदस्य सामान्य वस्तु के अभियोजन में किए गए अपराध का दोषी), धारा 188 (लोक सेवक के आदेश की अवज्ञा), धारा 392 (डकैती), धारा 454 (अतिचार या घर-तोड़ना), धारा 427 (पचास रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाने वाली शरारत), धारा 435 (नुकसान पहुंचाने के इरादे से आग या विस्फोटक पदार्थ से शरारत), धारा 380 (आवास गृह में चोरी) आदि) और धारा 34 (अपराध का सामान्य आशय) के तहत आरोपों को बरकरार रखा। ।

    यह घटनाक्रम खजूरी खास पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई 2020 की एफआईआर 256 में आया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि दूसरों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ लूटपाट, आगजनी आदि के लिए एक गैरकानूनी रूप से लोग जमा हुए थे।

    एफआईआर एक शाहिद की शिकायत पर दर्ज की गई थी, जिसने आरोप लगाया था कि उसकी दुकान, जिसमें अन्य सामानों के अलावा 95,000 रुपये नकद थे, उसे लूट लिया गया। आरोप है कि भीड़ ने सामान को भी क्षतिग्रस्त कर दिया, उसे दुकान के बाहर लाकर उसमें आग लगा दी।

    आगे की जांच के दौरान पुलिस को अलग-अलग गवाह मिले और उनके बयान दर्ज किए। एक चश्मदीद ने भीड़ को दिखाते हुए एक वीडियो भी सौंपा। दो पुलिस अधिकारियों ने भी कई आरोपी व्यक्तियों की पहचान की थी और इस प्रकार, पहचान के आधार पर आरोपियों को चार्जशीट किया गया।

    अदालत ने कहा कि जब घटना हुई तो शिकायतकर्ता अपनी दुकान पर मौजूद नहीं था और जबरन वसूली का कोई आरोप नहीं लगाया गया। न्यायाधीश ने इस प्रकार राय दी कि अधिक से अधिक इसे चोरी का मामला कहा जा सकता है।

    अदालत ने कहा कि

    " हालांकि, उक्त चोरी को डकैती का रंग नहीं मिला क्योंकि शिकायतकर्ता वहां शारीरिक रूप से मौजूद नहीं था और इसलिए, चोट लगने या गलत तरीके से रोके जाने या तत्काल मृत्यु, चोट, गलत संयम आदि के डर से होने की कोई संभावना नहीं थी। "

    अदालत ने कहा ,

    "शुरुआती शिकायत में शिकायतकर्ता ने कहा कि वह अपने घर के लिए निकल गया था। हालांकि, पूरक बयान में वह अपनी दुकान के बाहर कहीं अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए संशोधित वर्ज़न के साथ आया था, लेकिन इस बयान में भी उसने ऐसा कुछ नहीं कहा, जिसमें ऐसी कोई शिकायत या आरोप, जो इस चोरी को डकैती बनाने के लिए आईपीसी की धारा 390 के तहत निर्धारित मानदंडों को पूरा कर सके।"

    तदनुसार, न्यायालय का विचार था कि आरोपियों पर डकैती के अपराध का आरोप नहीं लगाया जा सकता क्योंकि आवश्यक सामग्री शिकायतकर्ता या अन्य गवाहों द्वारा लगाए गए आरोपों और बयान से संतुष्ट नहीं थी।

    कोर्ट ने आदेश दिया,

    "आरोपी व्यक्तियों को इस मामले में आईपीसी की धारा 395 के साथ-साथ आईपीसी की धारा 436 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोपमुक्त किया जाता है। चूंकि अन्य कथित अपराध मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय हैं, इसलिए मामला सीएमएम (उत्तर पूर्व) , कड़कड़डूमा कोर्ट, दिल्ली को इस मामले में कानून के अनुसार आगे बढ़ने के लिए वापस भेजा जाता है।"

    केस टाइटल : राज्य बनाम विनय आदि

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