दिल्ली हाईकोर्ट वुमन लॉयर्स फोरम ने राजीव खोसला को सजा देने के फैसले के खिलाफ बार एसोसिएशन के हड़ताल बुलाने पर एचसीबीए को पत्र लिखा

LiveLaw News Network

11 Nov 2021 8:18 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट वुमन लॉयर्स फोरम ने राजीव खोसला को सजा देने के फैसले के खिलाफ बार एसोसिएशन के हड़ताल बुलाने पर एचसीबीए को पत्र लिखा

    दिल्ली हाईकोर्ट वुमन लॉयर्स फोरम ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष को एक विरोध पत्र लिखा है जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राजीव खोसला को वर्ष 1994 में एक महिला वकील सुजाता कोहली के साथ मारपीट करने का दोषी ठहराने के हालिया फैसले का विरोध करने के लिए हड़ताल का आह्वान करने के जिला न्यायालय बार एसोसिएशन की समन्वय समिति की कार्रवाई की निंदा करते की गई है।

    पत्र में लिखा है,

    "शुरुआत में हम कानून के शासन में विश्वास रखने और कार्यस्थल पर हिंसा के खिलाफ कानून का सहारा लेने के लिए सुजाता कोहली के साहस की सराहना करते हैं। हम ट्रायल कोर्ट की भी सराहना करते हैं कि उसने पहुंच वाले और ताकतवर व्यक्ति के खिलाफ बिना डरे एक स्वतंत्र निर्णय देने का साहस दिखाया।"

    फोरम ने समन्वय समिति की कार्रवाई की भी निंदा की है जिसके द्वारा उक्त निर्णय की जांच करने के लिए एक समिति का गठन किया गया है जिसके बाद एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है।

    पत्र में आगे कहा गया है,

    "यह ट्रायल कोर्ट के खिलाफ डराने-धमकाने के अलावा और कुछ नहीं है।"

    पत्र में "बार के द्वेष" पर भी प्रकाश डाला गया है और कहा गया है कि कई महिला वकीलों ने वर्षों से कानूनी पेशे के भीतर दमनकारी, पितृसत्ता और यौन उत्पीड़न का सामना किया है।

    फोरम ने पत्र में लिखा है,

    "सुजाता कोहली में 27 वर्षों तक कानूनी प्रक्रिया शुरू करने और अपने कारण पर लड़ने का साहस था। हम उनकी सराहना करते हैं।"

    "अन्य बार एसोसिएशनों की चुप्पी महत्वपूर्ण है और यह अथक और दुखद निष्कर्ष की ओर ले जाता है कि बार लिंग मुद्दों, गुंडागर्दी, धमकी और अदालतों की अवमानना ​​​​के लिए खड़े होने और मुद्दा उठाने के योग्य सिद्धांतों के रूप में नहीं मानती, जब तक कि ये हाशिए पर पड़े वकीलों की आवाज को दबाने के लिए नहीं है।यह महिला वकीलों को डराने-धमकाने के लिए उनकी मंज़ूरी व समर्थन और कानून के शासन और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खत्म करने के प्रयासों को भी इंगित करता है।"

    पत्र में आगे कहा गया है कि बार एसोसिएशनों के आचरण ने उन भयावह स्थितियों को उजागर किया है जिनमें महिला वकील अदालतों में काम करती हैं।

    पत्र इस प्रकार इस नोट पर समाप्त होता है कि फोरम समन्वय समिति के उक्त कार्यों की निंदा करने की अपेक्षा करता है।

    दरअसल तीस हजारी कोर्ट के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट गजेंद्र सिंह नागर ने हाल ही में इस मामले में खोसला को दोषी ठहराया था।

    कोर्ट की राय थी कि कोहली की गवाही और खोसला द्वारा बालों और बांहों से खींचे जाने के उनके आरोप और तीस हजारी कोर्ट में अभ्यास करने की अनुमति नहीं देने की धमकी "बिल्कुल सत्य और श्रेय के योग्य" थी।

    शिकायतकर्ता सुजाता कोहली, जो पहले पेशे से वकील थीं, दिल्ली की न्यायपालिका में जज बनीं और पिछले साल जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुईं।

    खोसला के खिलाफ आरोप यह था कि जुलाई 1994 में, जब वह दिल्ली बार एसोसिएशन के सचिव थे, उन्होंने कोहली को एक सेमिनार में शामिल होने के लिए कहा था और उनके मना करने पर उन्हें धमकी दी थी कि बार एसोसिएशन से सभी सुविधाएं वापस ले ली जाएंगी और उन्हें उसकी सीट से भी बेदखल कर दिया जाएगा।

    उनके द्वारा उचित निषेधाज्ञा की मांग करते हुए एक दीवानी मुकदमा दायर किया गया था, हालांकि, उनकी मेज और कुर्सी को उनके स्थान से हटा दिया गया था। उसके बाद शिकायत में उनके द्वारा आरोप लगाया गया था कि जब वह सिविल जज की प्रतीक्षा करते हुए उनकी सीट के पास एक बेंच पर बैठी थी, राजीव खोसला सह-आरोपियों के साथ 40-50 वकीलों की भीड़ के साथ आया था।

    शिकायतकर्ता के अनुसार, सभी ने उन्हें घेर लिया, और खोसला ने आगे बढ़कर उनके बालों से खींचा, बाहों को मोड़ दिया, बालों से घसीटा, गंदी गालियां दीं और धमकाया।

    जहां पुलिस ने अगस्त 1994 में प्राथमिकी दर्ज की थी, वहीं शिकायतकर्ता ने मार्च 1995 में जांच से पूरी तरह से असंतुष्ट होने पर शिकायत का मामला दर्ज कराया था।

    अदालत ने शिकायतकर्ता के मामले का समर्थन नहीं करने वाले पुलिस गवाहों के पहलू पर कहा था,

    "दिल्ली बार एसोसिएशन निर्विवाद रूप से वकीलों का एक बहुत मजबूत और दुर्जेय निकाय है और ज्यादातर जब वकीलों की बात आती है तो पुलिस कोई भी कार्रवाई करने में बहुत धीमी होती है। मामले में आरोपी प्रासंगिक समय में बार का एक प्रमुख नेता थे। संबंधित समय में वह डीबीए के मानद सचिव थे।"

    कोर्ट का विचार था कि किसी को बालों और बांह से खींचने के कार्य से शारीरिक रूप से दर्द होता है और इस प्रकार धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) आईपीसी के तहत अपराध किया गया था क्योंकि शिकायतकर्ता को शारीरिक रूप से चोट पहुंचाई गई थी।

    कोर्ट ने इस प्रकार कहा था:

    "यह सामान्य ज्ञान है कि आजकल लोग आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं और वे किसी भी व्यक्ति के साथ अन्याय होने पर भी चुप रहना सुरक्षित पाते हैं। यह इन दिनों कठोर वास्तविकता बन रहा है। इन दिनों कोई भी किसी को बचाने के लिए या किसी के लिए तब तक गवाही देने के लिए आगे नहीं आता जब तक कि इस मामले में किसी का व्यक्तिगत हित न हो।"

    "शिकायतकर्ता एक वकील थीं, वह सभी कानूनी प्रावधानों के बारे में जानती थीं, अगर उन्हें एक कहानी बनानी होती तो वह आसानी से एक कहानी बना सकती थीं कि अंधेरा होने के बाद उन पर हमला किया गया था या आरोपी द्वारा छेड़छाड़ की गई थी जो कि नहीं है। वर्तमान मामले में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि सिविल जज ले मिलने के बाद दिनदहाड़े कई वकीलों की मौजूदगी में हमला किया गया। एक व्यक्ति के लिए यह असंभव है कि वह इतनी बारीकी से कहानी गढ़े जैसा कि कथित तौर पर शिकायतकर्ता ने किया है।"

    पत्र पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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