दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग रेप केस में दो अलग-अलग चार्जशीट दाखिल करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाई

LiveLaw News Network

26 Nov 2021 9:18 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक नाबालिग रेप केस मामले में दो अलग-अलग आरोप पत्र दाखिल करने के लिए एक जांच अधिकारी और एसएचओ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का निर्देश देने वाले निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी।

    न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा 24 नवंबर 2021 के आदेश के संचालन पर रोक लगा दी। उन्होंने दिल्ली पुलिस से स्टेटस रिपोर्ट मांगने के बाद यह आदेश दिया।

    अपने आदेश में ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि पुलिस अधिकारियों की कार्रवाई पूरी तरह से दुर्भावनापूर्ण और शातिर थी।

    ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 166, 166(ए), 167, 191. 193, 195, 201, 218 और धारा 219। 26 के तहत किए गए दंडनीय अपराध को देखते हुए आदेश दिया था कि संबंधित आईओ और एसएचओ के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जाए। साथ ही नवंबर से पहले एक अनुपालन रिपोर्ट मांगी थी।

    इसलिए एसएचओ और आईओ द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई। इसमें 24 नवंबर, 2021 के आदेश के साथ-साथ पिछले आदेशों को भी चुनौती दी गई थी। इन आदेशों में कोर्ट ने कहा था कि मामले में की गई जांच एक मजाक के अलावा और कुछ नहीं है।

    याचिका में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ उक्त टिप्पणी और निर्देश को हटाने की भी मांग की गई।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा ने शुक्रवार को हुए सुनवाई के दौरान, प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं की ओर से कोई जानबूझकर या प्रेरित कार्य नहीं किया गया और यह केवल एक अनजाने में हुई त्रुटि थी।

    उन्होंने प्रस्तुत किया कि पुलिस फाइल पर रखा गया आरोप पत्र कुछ भिन्न है, जिसके लिए संशोधन किए गए और इसे अदालत के रिकॉर्ड पर दायर किया गया।

    याचिकाकर्ताओं के साथ-साथ राज्य द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया कि पुलिस फ़ाइल में रखी गई चार्जशीट की प्रति अदालत के रिकॉर्ड पर दर्ज नहीं की गई।

    इसके अलावा, अतिरिक्त लोक अभियोजक ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ की जा रही उचित कानूनी कार्रवाई के पहलू के संबंध में ट्रायल कोर्ट के आदेशों के संदर्भ में जांच जारी है।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि जो न्यायालय के रिकॉर्ड में रखा गया है वह केवल संशोधित आरोप पत्र है। याचिकाकर्ताओं की ओर से केवल एक अनजाने में त्रुटि हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से कोई जानबूझकर कार्य नहीं किया गया।

    कोर्ट ने लूथरा की दलीलें भी दर्ज कीं। उन्होंने कहा कि अदालत के रिकॉर्ड पर केवल फिजिकल संशोधित आरोपपत्र दायर किया गया था। अनजाने में उसी का ई-चालान पुलिस पर दर्ज किया गया और एक सीडी तैयार की गई।

    लूथरा ने यह भी कहा कि जब शिकायतकर्ता के वकील ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष आरोपपत्र की प्रति मांगने के लिए एक आवेदन किया तो अदालत के कर्मचारियों ने अनजाने में संशोधित चार्जशीट की आपूर्ति करने के बजाय जांच अधिकारी से परामर्श किए बिना पुलिस फाइल से चार्जशीट की प्रति बना ली।

    पक्षकारों को सुनते हुए कोर्ट ने आदेश दिया:

    "याचिका के गुण और दोषों पर किसी भी टिप्पणी के बिना यह आवश्यक माना जाता है कि राज्य मामले में अपनी स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करे। इसके अलावा निचली अदालत के रिकॉर्ड को उसके फिजिकल और ई रूप में सुनवाई की अगली तारीख के लिए मांगा जाए। शिकायतकर्ता और आरोप पत्र की आपूर्ति की मांग करने वाले आरोपी द्वारा दायर किए गए आवेदनों को भी संबंधित जिला और सत्र न्यायाधीश की देखरेख में रिकॉर्ड पर रखा जाना चाहिए।"

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "मामले को नौ दिसंबर को फिर से अधिसूचित करने का निर्देश दिया जाता है, जिस तारीख तक आदेश दिनांक 24.11.2021 के संचालन पर रोक लगा दी गई।"

    ट्रायल कोर्ट ने 18 नवंबर के आदेश में पुलिस के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा था,

    "अपनी सनक, मूड़ और विकृता के अनुसार, यदि यह जारी रहा और अधिकारियों से सख्ती से नहीं निपटा गया तो जनता पुलिस प्रणाली में अपना विश्वास खो देगी। उन्होंने न केवल अदालत / न्यायिक प्रणाली का मजाक उड़ाया है बल्कि लोगों के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग भी किया है। उन्होंने सेवा और रक्षा करने का संकल्प लिया है।"

    इसने यह भी कहा कि यह पुलिस द्वारा सत्ता के दुरुपयोग का एक उत्कृष्ट मामला है, जहां अदालत के साथ धोखाधड़ी की गई।

    इस पृष्ठभूमि में याचिका इस प्रकार कहा गया:

    "एलडी एएसजे ने दो आरोपपत्रों के अस्तित्व के कथित भ्रम को देखने में गलती की। जानबूझकर आरोपी को पूर्वाग्रहित करने के लिए दायर किया गया। यह गलत है, जैसा कि संशोधित चार्जशीट में दस्तावेजों के अवलोकन से स्पष्ट है, जो समान हैं और आरोपी द्वारा कुछ छुपाए या रोके गए को नहीं दिखाते हैं। 19.06.2021 को फिजिकल रूप से न्यायालय में दायर संशोधित आरोपपत्र अंतिम आरोपपत्र है, जिस पर आगे की कार्यवाही शुरू की जानी है। मामले में सीआरपीसी की धारा 173 (8) के तहत आगे की जांच अभी भी लंबित है। "

    यह 14 साल की नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म का मामला है।

    नाबालिग से रेप और अपहरण के आरोप में आरोपी को मार्च में गिरफ्तार किया गया था। उस पर आईपीसी की धारा 363, 366, 376, 342 और धारा 506 और पोक्सो अधिनियम की धारा छह के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

    केस का शीर्षक: सतीश कुमार और अन्य बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य)

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