दिल्ली हाईकोर्ट ने राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति के खिलाफ याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

LiveLaw News Network

27 Sept 2021 5:17 PM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति के खिलाफ याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में आईपीएस ऑफिसर राकेश अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। याचिक सद्रे आलम नामक एक व्यक्ति ने दायर की है।

    चीफ जस्टिस डीएन पटेल और ज‌स्टिस ज्योति सिंह की खंडपीठ अस्थाना की नियुक्ति के खिलाफ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) के हस्तक्षेप आवेदन पर भी फैसला सुनाएगी। सीपीआईएल ने आरोप लगाया है कि आलम की याचिका सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सीपीआईएल की ओर से दायर याचिका की "कॉपी-पेस्ट" है।

    बेंच ने याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट बीएस बग्गा, सीपीआईएल के एडवोकेट प्रशांत भूषण, केंद्र की ओर से पेश सॉल‌ीसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता और राकेश अस्थाना की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी को सुना।

    इससे पहले सीपीआईएल ने मामले पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। शीर्ष न्यायालय ने 25 अगस्त याचिकाकर्ता को दिल्ली हाईकोर्ट को स्थानांतरित कर दिया था और हाईकोर्ट से दो सप्ताह के भीतर मामले पर निर्णय लेने का अनुरोध किया था।

    याचिकाकर्ता/हस्तक्षेपकर्ता प्रस्तुतियां

    याचिकाकर्ता और हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश वकीलों ने निम्नलिखित आधारों पर अस्थाना की नियुक्ति का विरोध किया है:

    -अस्थाना के पास छह महीने का न्यूनतम अवशिष्ट कार्यकाल नहीं था;

    -दिल्ली पुलिस आयुक्त की नियुक्ति के लिए यूपीएससी पैनल नहीं बनाया गया था;

    -न्यूनतम दो वर्ष के कार्यकाल के मानदंड को नजरअंदाज कर दिया गया था;

    -उन्होंने इंटर-कैडर प्रतिनियुक्ति के लिए सुपर-टाइम स्केल को पार कर लिया है।

    सुपरटाइम स्केल

    सुपरटाइम स्केल 14 साल पूरे होने पर डीआईजी और 18 साल पूरे होने पर आईजी का ग्रेड पे है। हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट प्रशांत भूषण के अनुसार, अस्थाना वेतन बैंड 17 पर हैं, जबकि एक व्यक्ति अपने कैडर में 9 वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद और अपने गृह कैडर में पे मैट्रिक्स में लेवल 14 तक पहुंचने के बाद ही इंटर-कैडर प्रतिनियुक्ति का पात्र है।

    भूषण ने तर्क दिया, "अस्थाना पहले ही सुपरटाइम स्केल पर पहुंच चुके हैं, इसलिए उनकी इंटर-कैडर प्रतिनियुक्ति का कोई सवाल ही नहीं है। यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से जारी नवीनतम कार्यालय ज्ञापन के अनुसार, इंटर-कैडर प्रतिनियुक्ति वेतनमान 14 तक की जा सकती है। वह स्केल 17 पर हैं, जो उच्चतम है।"

    यूपीएससी की ओर से चयनित पैनल से होती है नियुक्ति

    भूषण ने तर्क दिया कि प्रकाश सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले के बाद यूपीएससी द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, " इस उद्देश्य के लिए यूपीएससी द्वारा चुने गए तीन व्यक्तियों में से नियुक्ति की जानी है। इसलिए सबसे पहले, यूपीएससी को सेवा की लंबाई, अनुभव की सीमा आदि के आधार पर सूचीबद्ध अधिकारियों की एक सूची तैयार करनी चाहिए। इस मामले में, यूपीएससी द्वारा कोई भूमिका नहीं निभाई गई है। इससे सलाह भी नहीं ली गई है। यह एक और उल्लंघन है।"

    उन्होंने कहा कि जबकि केंद्र का दावा है कि प्रकाश सिंह का फैसला केवल राज्यों में नियुक्त डीजीपी पर लागू नहीं होता है, हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी स्थिति पर विचार किया है, जहां पुलिस प्रमुख डीजीपी नहीं बल्कि कमिश्नर हो सकते हैं। इसलिए इसमें केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया।

    भूषण ने कहा, "केवल इसलिए कि ऑपरेटिव निर्देश "डीजीपी" कहता है, इसका मतलब यह नहीं है कि यह कमिश्नर पर लागू नहीं है। पूरा निर्णय सामान्य रूप से पुलिस प्रमुख के बारे में बात करता है।"

    हस्तक्षेपकर्ता ने एक और तर्क दिया कि अस्थाना के पास छह महीने का न्यूनतम शेष कार्यकाल नहीं था, जो कि लागू वैधानिक नियमों के तहत जरूरी है। " उनके नाम को सीबीआई निदेशक के रूप में खारिज कर दिया गया था क्योंकि एक व्यक्ति के पास कम से कम 6 महीने का शेष कार्यकाल होना चाहिए। तीन उल्लंघन हैं। सबसे पहले, यूपीएससी से परामर्श नहीं किया गया है। दूसरा, उन्हें एक वर्ष के लिए नियुक्त किया गया है, जबकि यह 2 वर्ष के लिए होना चाहिए। तीसरा, उनका 6 महीने का शेष कार्यकाल नहीं है, जो पुलिस प्रमुख के रूप में नियुक्ति के लिए आवश्यक है।"

    भूषण ने यह तर्क भी दिया कि एजीएमयूटी कैडर से दिल्ली पुलिस आयुक्त की नियुक्ति न करने का हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।

    दो साल के न्यूनतम कार्यकाल के मानदंड को नजरअंदाज करने पर भूषण ने तर्क दिया कि डीजीपी की नियुक्ति विशुद्ध रूप से योग्यता के आधार पर 2 साल की सेवा के लिए होनी चाहिए, चाहे सेवानिवृत्ति कुछ भी हो। लेकिन अस्थाना को एक साल का एक्सटेंशन दिया गया है।

    उन्होंने कहा कि सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारियों की नियुक्ति की अनुमति नहीं है।

    उन्होंने प्रस्तुत किया कि नियमों के अनुसार, सेवानिवृत्ति के बाद कोई नियुक्ति नहीं की जा सकती है। हालांकि 3 महीने जैसी छोटी अवधि के लिए छूट के कुछ अपवाद हैं। लेकिन ऐसा तब होता है जब पदधारी अधिकारी कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण काम पर ध्यान दे रहा हो।सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पूर्व में इसी तरह की प्रक्रिया का पालन करते हुए आठ नियुक्तियां की गई हैं। हालांकि, उनमें से किसी को भी याचिकाकर्ताओं ने चुनौती नहीं दी और केवल अस्थाना की नियुक्ति ही उन्हें परेशान कर रही है।

    उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं के कुछ व्यक्तिगत प्रतिशोध हो सकते हैं लेकिन जनहित याचिका दुश्मनी साधने के लिए एक मंच नहीं है।

    प्रकाश सिंह का फैसला केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू नहीं होता

    एसजी ने दावा किया कि प्रकाश सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी अंतिम ऑपरेटिव निर्देश राज्य में डीजीपी की नियुक्ति के लिए लागू थे। उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि निर्देश केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू होंगे, "जैसा भी मामला हो। इसलिए, सभी निर्देश केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू नहीं होते हैं।"

    उन्होंने कहा कि निर्णय 2006 में दिया गया था और इस प्रकार, यह ध्यान रखना प्रासंगिक है कि हितधारकों ने समय के साथ इसकी व्याख्या कैसे की है। उन्होंने समकालीन व्याख्या के सिद्धांत का हवाला दिया कि यदि किसी कानून के किसी विशेष प्रावधान की लंबी अवधि के लिए किसी विशेष तरीके से व्याख्या की गई है तो वह कानून बन जाता है।

    एसजी मेहता ने आगे तर्क दिया कि राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते दिल्ली के अपने विशिष्ट कारक हैं, जो अन्य स्‍थानों पर मौजूद नहीं हैं। यहां होने वाली किसी भी घटना का सीमाओं से परे दूरगामी प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार, दिल्ली पुलिस आयुक्त की तुलना किसी अन्य से नहीं की जा सकती...

    एसजी ने दावा किया कि एआईएस (डीसीआरबी) नियमों के नियम 16 ​​को देखने से पता चलता है कि सेवानिवृत्ति से परे सेवा में विस्तार देने में पूर्ण रोक के रूप में नहीं माना जा सकता है। सक्षम प्राधिकारी अखिल भारतीय सेवा के सदस्यों को विस्तार देने का विधिवत हकदार है। मेहता ने शर्तों में छूट पर अपने तर्क के पूरक के लिए अखिल भारतीय सेवा (सेवा की शर्तें-अवशेष मामले) नियम, 1960 के नियम 3 का उल्लेख किया। उन्होंने दोहराया कि अतीत में, याचिकाकर्ताओं द्वारा इसी तरह की नियुक्तियों को चुनौती नहीं दी गई थी।

    राकेश अस्थाना की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि जनहित याचिका सेवा मामलों में सुनवाई योग्य नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान याचिका एक "प्रॉक्सी लिटिगेशन" है क्योंकि इस तथ्य के अलावा कि याचिकाकर्ता सद्रे आलम एक वकील हैं, रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि उनकी चिंता क्या है।

    रोहतगी ने आरोप लगाया था कि कॉमन कॉज और सीपीआईएल नाम के संगठन अस्‍थाना के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने की आड़ में व्यक्तिगत प्रतिशोध ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि याचिका दायर करने के अलावा, ये संगठन अपने दावों को उठाने के लिए सोशल मीडिया का भी सहारा ले रहे हैं।

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