दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली दंगे के मामले में आरोपियों को जमानत देने के लिए रविश कुमार के शो के वीड‌ियो पर भरोसा किया

LiveLaw News Network

21 Feb 2021 9:29 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली दंगे के मामले में आरोपियों को जमानत देने के लिए रविश कुमार के शो के वीड‌ियो पर भरोसा किया

    दिल्ली दंगे के मामले में गिरफ्तार तीन व्यक्तियों को जानेमाने पत्रकार रवीश कुमार के शो प्राइम टाइम में दिखाए गए एक वीडियो के कारण रिहाई हासिल हुई है।

    दिल्ली हाईकोर्ट ने रवीश कुमार के वीडियो पर भरोसा करते हुए कहा कि "तीनों व्यक्तियों, जुनैद, चांद मोहम्मद और इरशाद- के खिलाफ" कोई ऐसा सबूत उपलब्ध नहीं है, जो प्रत्यक्ष, परिस्थितिजन्य या फोरेंसिक हो, जिन पर फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगों को दौरान शाहिद नाम के व्य‌क्त‌ि की हत्या का आरोप है। याचिकाकर्ता एक अप्रैल, 2020 से हिरासत में थे।"

    पुलिस के मामले के अनुसार, आरोपी उस मुस्लिम समूह का हिस्सा थे, जो उत्तर पूर्वी दिल्ली के चांद बाग इलाके में सप्तऋषि बिल्डिंग की छत पर, दूसरी इमारतों की छतों पर खड़े हिंदू समूहों पर फायरिंग और पथराव के जरि हमला करने के लिए जमा हुए ‌थे। पुलिस ने आरोप लगाया गया कि उस प्रक्रिया में, सप्तऋषि भवन की छत पर मौजूद शाहिद बंदूक की गोली से मारा गया।

    अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के खिलाफ दायर आरोप पत्र में एनडीटीवी वीडियो का हवाला दिया था। जमानत के लिए बहस करते समय याचिकाकर्ताओं के वकील एडवोकेट सलीम मलिक ने बताया कि 3 आरोपी व्यक्ति एनडीटीवी वीडियो में नहीं दिख रहे हैं, जिस पर अभियोजन पक्ष ने भरोसा किया है। वकील ने बहस के दौरान एनडीटीवी वीडियो चलाया और दिखाया कि दंगों में शामिल व्यक्तियों के चेहरे वीडियो को बड़ा करने पर दिखाई दे रहे हैं; हालांकि, इसमें कोई भी याचिकाकर्ता नहीं दिखा था।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत की एकल पीठ ने शाहिद के शरीर में लगी बंदूक की गोली की प्रकृति का विश्लेषण करने के बाद पाया कि यह लंबी दूरी से लगी गोली थी, न कि नजदीकी रेंज का शॉट था।

    इस संबंध में, बेंच ने एनडीटीवी वीडियो का उल्लेख किया, जिसमें दिखाया गया था कि मोहन नर्सिंग होम की इमारत की छत से बंदूक से गोलीबारी हुई थी, जो सप्तऋषि भवन के सामने थी। प्रवेश और निकास के घावों की प्रकृति से, और वीडियो के विश्लेषण से भी, पीठ ने कहा कि संभवतः मोहन नर्सिंग होम से लंबी दूरी से गोली लगी है। इसके अलावा, चूंकि गोली के घाव का निशान नीचे की ओर था, इसलिए फायरिंग ऊंचाई से हुई होगी। इसलिए, मोहन नर्सिंग होम बिल्डिंग से बंदूक की गोली निकलने की संभावना है, जो सप्तऋषि भवन की तुलना में अधिक ऊंचाई पर थी।

    ज‌स्ट‌िस कैत ने कहा, "यहां यह उल्लेख करना उचित है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में, घाव की दिशा, जिसमें गोली ने शरीर में प्रवेश किया है, वह बाईं ओर है, जो नीचे की ओर जा रही है और दाईं ओर से बाहर निकल रही है। जिसका अर्थ है, चोट ऊंचाई से और दूर से लगी थी, इस प्रकार, यह इस संभावना को स्थापित करता है कि गोली मोहन नर्सिंग होम या सप्तऋषि भवन के बाईं ओर स्थित किसी भवन से निकली है और वह ऊंचाई पर है, जो सप्तऋषि भवन के सामने और तिरछी तरफ है, और सप्तऋषि भवन की तुलना में अधिक ऊंचाई पर है।"

    पीठ ने आगे कहा कि यदि गोली को करीबी रेंज से फायर किया गया होता तो यह बाईं ओर से शरीर में प्रवेश करने और दाहिनी ओर से बाहर निकलने के बजाय, सीधे चली गई होती और वह भी नीचे की ओर से गई होती। इसके अलावा, क्लोज़-रेंज शॉट, के मामले में गनशॉट अवशेष में जैसे कि कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, घाव के प्रवेश पर मौजूद रहते हैं, लेकिन, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस तरह के अवशेषों के उपलब्ध होने का उल्लेख नहीं किया गया था।


    NDTV वीडियो में मोहन नर्सिंग होम बिल्डिंग से गोलीबारी दिखाई गई

    इसके बाद, जस्टिस कैत ने कहा कि एनडीटीवी वीडियो में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि हेलमेट पहना एक व्यक्ति मोहन नर्सिंग होम के ऊपर से फायरिंग कर रहा था। उस वीडियो में, फायरिंग केवल मोहन नर्सिंग होम बिल्डिंग से दिखाई दी है, ना कि सप्तऋषि बिल्डिंग से होती हुई दिखाई दी है। पीठ ने आगे कहा कि पुलिस ने जांच में केवल एक तरफ की इमारतों पर ध्यान केंद्रित किया, मोहन नर्सिंग होम की तरफ से गोलीबारी की अनदेखी की है।

    निर्णय में महत्वपूर्ण अवलोकन इस प्रकार हैं:

    "जैसा कि याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने प्रस्तुत किया है कि पुलिस द्वारा भरोसा किया गए वीडियों में ही, ठीक 10 मिनट वीडियो चलाने के बाद, यह दिखता है कि एनडीटीवी के प्राइमटाइम एंकर रविश कुमार ने कहा कि मोहन नर्सिंग होम अस्पताल में एक व्यक्ति राइफल निकाल रहा है और हेलमेट पहना हुआ है, एक अन्य व्यक्ति है जो हथियार को रूमाल के साथ कवर कर रहा है और बाद में, उन्हें वीडियो में भी देखा जा सकता है। लेकिन जांच एजेंसी ने इमारत के एक तरफ ही ध्यान केंद्रित किया है, ऐसा प्रतीत होता है। हालांकि अभियोजन पक्ष ने स्वीकार किया कि दोनों पक्षों के उपद्रवी एक-दूसरे पर पथराव कर रहे थे और गोलीबारी कर रहे थे। आगे, इस वीडियो में गोलीबारी केवल मोहन नर्सिंग होम से की जा रही है, न कि सप्तऋषि भवन से।"

    यह मानना ​​मुश्किल है कि याचिकाकर्ता अपने समुदाय के एक व्यक्ति को मार देंगे

    न्यायालय ने यह भी माना कि यह विश्वास करना कठिन है कि याचिकाकर्ता दंगे के दौरान अपने ही समुदाय के व्यक्ति को मार देंगे।

    कोर्ट ने कहा, "न तो आरोपियों का कोई मकसद था...और न ही अभियोजन पक्ष ने पूरे मामले में किसी भी मकसद का आरोप लगाया है। इस प्रकार, यह मानना ​​मुश्किल है कि याचिकाकर्ता सांप्रदायिक दंगे का इस्तेमाल अपने समुदाय के व्यक्ति को मारने के लिए कर सकते हैं।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस अभी तक मुख्य हमलावर को गिरफ्तार नहीं कर सकी है, जिसने गोली चलाई थी, जिससे शाहिद मारा गया था और याचिकाकर्ताओं से हथियार की किसी भी तरह की कोई बरामदगी नहीं हुई है।

    कोर्ट ने 1 अप्रैल, 2020 से हिरासत में चल रहे याचिकाकर्ताओं को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया, यह देखते हुए कि अभी मुकदमे में आरोप तय नहीं किए गए हैं, जिसमें काफी समय लगने की संभावना है।

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