चंडीगढ़ DRT के पूर्व पीठासीन अधिकारी को राहत नहीं, हाईकोर्ट ने निलंबन अवधि रखी बरकरार
Shahadat
2 July 2025 12:05 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने रिटायर न्यायिक अधिकारी और चंडीगढ़ के ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) के पूर्व पीठासीन अधिकारी एम.एम. ढोंचक के निलंबन की अवधि बरकरार रखने वाला एकल जज के फैसला बरकरार रखा।
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस रेणु भटनागर की खंडपीठ ने निलंबन की अवधि बढ़ाने के दूसरे आदेश के खिलाफ उनकी याचिका खारिज करने वाले एकल जज के 3 मार्च के आदेश के खिलाफ ढोंचक की अपील खारिज की।
व्यक्तिगत रूप से पेश हुए ढोंचक ने कहा कि उन्हें अपना काम लगन और पेशेवर तरीके से करने के लिए दंडित किया जा रहा है। चूंकि वे वकीलों को समायोजित करने के लिए तैयार नहीं थे, इसलिए उनके खिलाफ झूठी शिकायतें की गईं।
यह तर्क दिया गया कि एकल जज ने गलत राय दी कि उनका निलंबन रद्द करना निष्पक्ष जांच के संचालन के लिए अनुकूल नहीं होगा।
केंद्र सरकार ने कहा कि सक्षम प्राधिकारी के निष्कर्ष सत्यापन योग्य अभिलेखों पर आधारित थे, जिनमें DRT बार एसोसिएशन की लिखित शिकायतें, प्रशासनिक नोटिंग, न्यायिक शिष्टाचार को प्रभावित करने वाले प्रलेखित आचरण और सक्षम प्राधिकारियों द्वारा तैयार रिपोर्ट शामिल हैं।
यह तर्क दिया गया कि ढोंचक अधिकार के तौर पर सक्रिय न्यायिक सेवा में बने रहने की मांग नहीं कर सकते, खासकर तब जब अनुशासनात्मक प्रक्रिया लंबित हो।
अपील खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि जिन आरोपों के आधार पर ढोंचक के खिलाफ कार्यवाही की जा रही है, उनकी प्रकृति गंभीर है और उनके कृत्यों को जनहित के लिए हानिकारक बताया गया है।
इसने नोट किया कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के विभिन्न आदेशों में DRT के पीठासीन अधिकारी के रूप में ढोंचक के आचरण पर तीखी टिप्पणियां की गईं।
हाईकोर्ट ने कहा,
"निलंबन के आदेश या इसकी निरंतरता की जांच को नियंत्रित करने वाले कानून के उपरोक्त सिद्धांतों पर परीक्षण करने पर अपीलकर्ता के निलंबन को बढ़ाने वाले आदेश में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है।"
खंडपीठ ने यह भी कहा कि ढोंचक के निलंबन को जारी रखने के लिए सक्षम प्राधिकारी के समक्ष पर्याप्त सामग्री मौजूद है। यह सक्षम प्राधिकारी का काम होगा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए कि निलंबन के कारण वादियों को परेशानी न हो और DRT अपने कर्तव्यों का निर्वहन करे।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला,
“इसी तरह जबकि हम अपीलकर्ता के इस तर्क से प्रथम दृष्टया सहमत हैं कि प्रतिवादी द्वारा एकल जज के समक्ष प्रस्तुत सीलबंद लिफाफे में निहित उनके निलंबन को जारी रखने के कारणों को विशेषाधिकार के किसी भी दावे के अभाव में उनके समक्ष प्रकट किया जाना चाहिए था। उसी समय इसके कारणों का न केवल प्रतिवादी के उत्तर हलफनामे में खुलासा किया गया, बल्कि एकल जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए संपूर्ण तथ्यों से भी स्पष्ट था। केवल उक्त कारणों से आरोपित निर्णय में कोई त्रुटि नहीं की जा सकती।”
केस टाइटल: एमएम ढोंचक बनाम भारत संघ

