देश के विरुद्ध 'युद्ध छेड़ने' और 'गैर-कानूनी सभा' के अपराधों को BNS से हटाने की मांग वाली याचिका खारिज

Shahadat

10 July 2025 4:53 AM

  • देश के विरुद्ध युद्ध छेड़ने और गैर-कानूनी सभा के अपराधों को BNS से हटाने की मांग वाली याचिका खारिज

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 से राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ने और अवैध जमावड़े के अपराधों को समाप्त करने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की।

    चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस अनीश दयाल की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि वह संसद को इन प्रावधानों को समाप्त करने का निर्देश नहीं दे सकती, क्योंकि ऐसा करना कानून बनाने के समान होगा, जो न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।

    न्यायालय ने उपेंद्र नाथ दलाई द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज की, जिसमें BNSS के अध्याय VII और XI के अंतर्गत आने वाली धारा 147 (राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ना), धारा 158 (कैदियों को शरण देना), धारा 189 (अवैध जमावड़ा) और धारा 197 (शत्रुता को बढ़ावा देना) को समाप्त करने की मांग की गई थी।

    न्यायालय ने टिप्पणी की,

    "उन्मूलन केवल संशोधन अधिनियम पारित करके ही स्वीकार्य है। यह संसदीय कार्य है। हम संसद को ऐसा करने का निर्देश नहीं दे सकते, यह कानून बनाने के समान होगा। यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है।"

    इस जनहित याचिका में की गई प्रार्थनाओं को न्यायालय अपने रिट अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए स्वीकार नहीं कर सकता। तदनुसार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।

    अपनी जनहित याचिका में दलाई ने तर्क दिया कि विचाराधीन प्रावधान जनहित में नहीं हैं। इन्हें समाप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये धाराएं लोकतंत्र विरोधी हैं और संविधान के अनुच्छेद 21, 14 और 19 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।

    याचिका के अनुसार, केंद्र सरकार का इरादा भारतीय न्याय संहिता (BNS) में उल्लिखित धाराओं को "स्वतंत्रता से पहले भारत में ब्रिटिश सरकार की तरह" लागू करके "भारतीयों का दमन" करना है।

    दलाई ने दलील दी कि "सरकार चाहती है कि कोई उसका विरोध न करे" और जो कोई भी सरकार का विरोध करता है और सभा आयोजित करता है, सरकार "जानबूझकर" उसके खिलाफ गैरकानूनी सभा के अपराध में FIR दर्ज कराती है।

    याचिका में आगे कहा गया कि सरकार का विरोध करना या सरकार के काम का विरोध करना देश की अखंडता के लिए खतरा बताकर निर्दोष नागरिकों को राजद्रोह के अपराध से दंडित किया जा रहा है, जो एक अन्याय है।

    याचिका में कहा गया,

    "यहां कोई राजा नहीं है। सभी नागरिक राजा हैं। यहां संविधान के अनुसार, नागरिकों को व्यवस्था और न्याय प्रदान करने के लिए हर पांच साल में चुनाव के माध्यम से सरकार का गठन होता है। इसलिए सरकार का विरोध करना या सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और सभाएँ करना तर्कसंगत है।"

    इसमें आगे कहा गया,

    "एक देश एक भूभाग और लोगों का समूह होता है। इसलिए सरकार की तुलना देश से नहीं की जा सकती। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में जो राजद्रोह और राजद्रोह का वर्णन किया, उसमें क्या अंतर है? लेकिन दुख की बात है कि भारत सरकार ने राजद्रोह की जगह केवल नाममात्र का राजद्रोह दर्ज किया।"

    Title: UPENDRA NATH DALAI v. UNION OF INDIA

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