दिल्ली हाईकोर्ट ने पीएम केयर्स फंड को राज्य घोषित करने की याचिका पर पीएमओ द्वारा दायर "एक पृष्ठ के हलफनामे" पर नाराजगी व्यक्त की

Shahadat

12 July 2022 11:27 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने पीएम केयर्स फंड को राज्य घोषित करने की याचिका पर पीएमओ द्वारा दायर एक पृष्ठ के हलफनामे पर नाराजगी व्यक्त की

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को पीएमओ सचिव को विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें यह घोषणा की गई हो कि संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत पीएम केयर्स फंड "राज्य" है। कोर्ट ने उक्त निर्देश यह कहते हुए दिया कि यह महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसके लिए उचित प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।

    चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने इस मामले में पीएम-केयर्स फंड ट्रस्ट की ओर से पहले दायर एक पृष्ठ के हलफनामे पर भी नाराजगी व्यक्त की। कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह याचिका में उठाई गई चिंताओं को सही ठहराने के लिए पर्याप्त विस्तृत नहीं है।

    प्रधानमंत्री कार्यालय में अवर सचिव द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया कि पीएम केयर्स ट्रस्ट के कामकाज में केंद्र सरकार या राज्य सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।

    पीठ ने कहा,

    "यह इतना महत्वपूर्ण मुद्दा है और केवल एक पृष्ठ का हलफनामा दायर किया गया है। इस जवाब में किसी भी चीज के बारे में कोई जानकारी तक नहीं है।"

    इसमें कहा गया,

    "उचित जवाब दाखिल करें। मुद्दा इतना आसान नहीं है। हमें विस्तृत जवाब की जरूरत है।"

    तदनुसार, कोर्ट ने मामले में विस्तृत जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र को चार सप्ताह का समय दिया।

    कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की,

    "हमें उठाए गए प्रत्येक बिंदु पर विस्तृत आदेश पारित करना होगा।"

    अब इस मामले की सुनवाई 16 सितंबर को होगी।

    सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने जनहित याचिका याचिकाकर्ता सम्यक गंगवाल की ओर से दलील दी कि फंड भारत के संविधान के अर्थ में राज्य के अलावा और कुछ नहीं है और संवैधानिक पदाधिकारियों द्वारा बनाए गए किसी भी फंड को भारत के संविधान से अनुबंधित नहीं किया जा सकता है।

    दीवान ने तर्क दिया,

    "आप एक ढांचा बना सकते हैं लेकिन आप संविधान से छूट का दावा नहीं कर सकते।"

    उन्होंने कहा कि यदि प्रधानमंत्री किसी संस्था को स्थापित करना चाहते हैं तो वह ऐसा कर सकते हैं। हालांकि, यह राज्य के तहत होना चाहिए।

    दीवान ने यह भी तर्क दिया कि फंड सुशासन के लिए विनाशकारी है और भविष्य में कई समस्याएं पैदा कर सकता है।

    मामले के बारे में

    याचिकाकर्ता ने पीएम केयर्स फंड को राज्य घोषित करने की मांग की है।

    उन्होंने कहा कि निम्नलिखित के लिए परिणामी निर्देश आकर्षित होंगे: (i) समय-समय पर फंड की ऑडिट रिपोर्ट का खुलासा करना; (ii) प्राप्त किए गए दान, उसके उपयोग और दान के व्यय पर प्रस्तावों के फंड के तिमाही विवरण का खुलासा करना।

    विकल्प में यह तर्क दिया जाता है कि यदि अनुच्छेद 12 के तहत पीएम केयर्स फंड एक राज्य नहीं है, तो: (i) केंद्र को व्यापक रूप से प्रचार करना चाहिए कि पीएम केयर्स सरकार के स्वामित्व वाला फंड नहीं है; (ii) पीएम केयर्स फंड को अपने नाम/वेबसाइट में "पीएम" का उपयोग करने से रोका जाना चाहिए; (iii) पीएम केयर्स फंड को राज्य के प्रतीक का उपयोग करने से रोका जाना चाहिए; (iv) पीएम केयर्स फंड को अपनी वेबसाइट में डोमेन नाम "gov" का उपयोग करने से रोका जाना चाहिए; (v) पीएम केयर्स फंड को अपने आधिकारिक पते के रूप में पीएम के कार्यालय का उपयोग करने से रोका जाना चाहिए; (vi) केंद्र को कोष में कोई सचिवीय सहायता नहीं देनी चाहिए।

    दूसरी ओर, पीएम केयर्स फंड ने याचिका की योग्यता पर आपत्ति जताते हुए कहा कि आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत याचिकाकर्ता के लिए वैकल्पिक वैधानिक उपाय उपलब्ध हैं।

    योग्यता के आधार पर फंड के संबंध में कहा जाता है कि यह आरटीआई अधिनियम की धारा 2 (एच) के अर्थ के भीतर "सार्वजनिक प्राधिकरण" नहीं है, क्योंकि प्रावधान की अनिवार्य वैधानिक आवश्यकताएं अस्तित्व में नहीं हैं।

    फंड का दावा है,

    "ट्रस्ट के कामकाज में केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई नियंत्रण नहीं है।"

    आगे यह दावा किया गया कि ट्रस्ट पारदर्शिता के साथ कार्य करता है और इसकी निधियों की लेखा परीक्षा लेखा परीक्षक द्वारा की जाती है, जो भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा तैयार किए गए पैनल से चार्टर्ड एकाउंटेंट है।

    गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा पीएम केयर्स फंड के ऑडिट का कोई अवसर नहीं है, क्योंकि यह सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट है।

    केस टाइटल: सम्यक गंगवाल बनाम सीपीआईओ, पीएमओ

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